तालिबान ने अफगानिस्तान के निमरोज (Nimruz) प्रांत की राजधानी जरंज (Zaranj) पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया और गवर्नर के पैलेस पर भी कब्जा कर लिया है। हालाँकि, यह खबर पहली नजर में महीनों से चल रहे अफगान संघर्ष की एक ‘रूटीन न्यूज’ लग सकती है, लेकिन वास्तविकता में यह भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है। जरंज पर तालिबान का कब्जा हो जाने के बाद ईरान में भारत की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘चाबहार पोर्ट’ प्रभावित हो सकती है।
अफगानिस्तान में अमेरिका और नाटो सेनाओं की वापसी के साथ शुरू हुआ संघर्ष अब बढ़ता जा रहा है। तालिबान और अफगानिस्तान की सेना के बीच भीषण युद्ध चल रहा है, जिसमें कभी तो अफगानी सेना हावी होती दिखाई देती है, लेकिन तालिबान भी लगातार शहरों पर कब्जा करता जा रहा है। सड़कों, सैन्य चौकियों और महत्वपूर्ण इन्फ्रास्ट्रक्चर पर कब्जा करके तालिबान अफगानिस्तान की सेनाओं के मूवमेंट को ब्लॉक करना चाहता है, ताकि किसी प्रकार की सहायता एक स्थान से दूसरे स्थान तक न पहुँचाई जा सके। इसी क्रम में तालिबान ने निमरोज प्रांत की राजधानी जरंज पर कब्जा कर लिया। सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो सामने आए हैं, जहाँ तालिबानी आतंकी प्रांत के गवर्नर के पैलेस पर ‘पार्टी’ करते हुए देखे जा सकते हैं। इसके अलावा, जरंज के करेंसी एक्सचेंज पर भी तालिबान का कब्जा हो चुका है।
Taliban at Nimroz Governor’s palace after the fall of Zaranj. Zaranj, capital of Nimroz is near border with Afghanistan & strategic in terms of connectivity with Chabahar. pic.twitter.com/2Qnw1fzo0w
— Sidhant Sibal (@sidhant) August 12, 2021
Zaranj’s main currency exchange market is now in control of Taliban insurgents. pic.twitter.com/bxhHhbj5c4
— Pedro 47 (@CombatJourno) August 6, 2021
जरंज पर कब्जा चिंता का विषय क्यों?
जरंज पर तालिबान का कब्जा होना भारत के लिहाज से उचित नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि जरंज के साथ भारत के भी हित जुड़े हुए हैं। यह हित है, ईरान में भारत द्वारा निर्मित जा रहे चाबहार पोर्ट की सुरक्षा का। हालाँकि, जरंज से चाबहार पोर्ट की दूरी लगभग 900 किमी है तो ऐसे में तालिबान सीधे तौर चाबहार पर हमला या कब्जा नहीं कर सकता, लेकिन चिंता की बात है जरंज की रणनीतिक स्थिति। दरअसल जरंज, अफगानिस्तान और ईरान की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित है और अफगानिस्तान के देलाराम (Delaram) से जरंज तक सड़क निर्माण भारत द्वारा ही कराया गया था, जिसके माध्यम से भारत की योजना अफगानिस्तान के गारलैंड हाइवे होते हुए हेरात, कांधार, काबुल और मजार-ए-शरीफ तक पहुँचने की थी।
ओमान की खाड़ी में स्थित चाबहार पोर्ट और उसके बाद अफगानिस्तान, भारत की उस रणनीति का एक हिस्सा हैं, जहाँ भारत, पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान समेत मध्य-पूर्वी एशिया के देशों तक अपनी पहुँच बढ़ा सकता है। कजाखिस्तान, तजीकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और किर्गिस्तान जैसे देशों में भारत के व्यापार को पहुँचाने के लिए चाबहार पोर्ट और अफगानिस्तान बहुत महत्व के क्षेत्र हैं। इसके अलावा अफगानिस्तान के माध्यम से भारत न केवल मध्य-पूर्व एशिया, बल्कि रूस और यूरोप तक भी अपनी पहुँच को मजबूत कर सकता है। अफगानिस्तान के जरंज पर तालिबान के कब्जे के कारण अफगानिस्तान को नुकसान तो होगा ही, भारत को भी अपनी रणनीति में परिवर्तन करना पड़ेगा।
निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेशी मामलों के मंत्री एस. जयशंकर इस पूरे घटना क्रम में नजर रखे हुए हैं और इस मामले में अपने समकक्षों के संपर्क में भी हैं। लेकिन, भारत के लिए यह चिंता का विषय है, क्योंकि पहले ही कई बार यह ख़बरें आ चुकी हैं कि पाकिस्तान और ISI, अफगानिस्तान में भारत की सहायता और भारत की ही फंडिंग के माध्यम से बनाई गई सम्पत्तियों को निशाना बनाना चाहते हैं। इसमें पाकिस्तान के कई सैन्य अधिकारी एवं आतंकी इस काम में तालिबान की सहायता कर रहे हैं। ऐसे में पाकिस्तान, तालिबानी आतंकियों द्वारा जरंज जैसे सीमाई और रणनीतिक इलाकों में कब्जा करने का लाभ अवश्य उठाना चाहेगा।