चीन में बिना किसी अपराध के, बिना मुक़दमा चलाए क़रीब 10 लाख से अधिक समुदाय विशेष के अल्पसंख्यकों को कई गुप्त क़ैदख़ानों में हिरासत में रखा गया है। इन कैदियों में अधिकांश युवा हैं। जिनका अपराध कुछ नहीं लेकिन लगभग पूरे विश्व में अधिकांश आतंकी घटनाओं में समुदाय विशेष की संलिप्तता देख कर चीन ने उन्हें पोटेंशिअल आतंकी या हमलावर मान कर सालों से कई कैम्पों में तगड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच रख रहा है।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, हाल ही में बीबीसी की एक टीम को पश्चिमी चीन के शिनजियांग में बने कुछ ऐसे ही कैंपों में जाने का अवसर मिला। इससे पहले भी कई अंतराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने चीन में इस समुदाय के नारकीय जीवन के बारे में दिखाया था। चीन में उन्हें बिना किसी कारण के सिर्फ पूरे विश्व में बने बेहद ख़राब या दूसरे शब्दों में कहें तो आतंकी इमेज के कारण उन्हें तहखानों जैसे जेल में रखा जा रहा है। जिसे चीनी सरकार सुधार गृह या स्कूल भी कहती है। उनका अपराध क्या है? कुछ नहीं लेकिन इस पर वामपंथी पत्रकारों ने शायद ही कभी आपको कुछ बताया हो। जो लगातार हिन्दू संस्कृति के प्रति नफ़रत का बीज बो रहे हैं। ऐसे वामपंथी पत्रकारों ने इस मुद्दे पर चुप्पी ही बेहतर समझी क्योंकि वहाँ उसी विचारधारा की सरकार है जिसका नासूर ये वर्षों से ढोते आ रहे हैं। चीन में आज तक वामपंथियों को तानाशाही नज़र नहीं आई।
बीबीसी के अनुसार, चीन ने पहले तो शिनजियांग में ऐसे किसी कैंप के होने की बात से इनकार किया लेकिन बाद में दावा किया कि ये वो महज स्कूल हैं जहाँ इस्लामिक चरमपंथी विचारधारा का शिकार हुए लोगों को सही राह दिखाई जाती है। जबकि सच्चाई यही है चीन की कि वह कितना भी छुपाने की कोशिश करे जब-तब उसके इन तहखानों वाले स्कूलों की सच्चाई सामने आती रहती है। रिपोर्ट के अनुसार, कहा गया कि यह सभी लड़के और लड़कियाँ स्टूडेंट हैं और अपनी मर्जी से यहाँ ब्रेन वाश के लिए आए हैं।
सोचने वाली बात यहाँ यह है कि आखिर कौन अपनी मर्जी से कैद होना चाहेगा। वो भी कब तक कुछ पता नहीं, अपनी मर्जी से जहाँ खुश होने की छूठ भी न हो उसे स्कूल तो नहीं कहा जा सकता। इन कैद खानों में खुशी या नृत्य और संगीत की छूट तब मिलती है जब कोई सरकारी अधिकारी या बड़ा पत्रकार इस कैदखानों में रहने वालों से मिलने आता है। यदि कोई चीनी अधिकारियों के आदेश के अनुसार ऐसा नहीं करता है तो उसे यातनाएँ दी जाती हैं। इन कैदखानों में रह रहे युवाओं को पत्रकारों के सामने ऐसा दिखाया गया जैसे यहाँ ये अपनी मर्जी से कैद हों। चीनी अधिकारियों के अनुसार, इन युवाओं को वहाँ उनकी कट्टरपंथी विचारधारा को बदलने के लिए रखा गया है।
पत्रकार जीतनी देर तक इन कैम्पों में होते हैं सरकारी अधिकारी उन पर कड़ी निगाह रखते हैं। शिनजियांग में ऐसे ही बड़े-बड़े कई कैंप हैं जहाँ की दीवारें इतनी ऊँची हैं कि बाहरी दुनियाँ से संपर्क पूरी तरह कट चुका है। विचारधारा बदलने के नाम पर वहाँ धार्मिक शिक्षा पर पूरी तरह प्रतिबन्ध है, यहाँ तक की धर्म के प्रैक्टिस पर भी, सख्त नियंत्रण है। फिलहाल, कहा जा रहा है कि वहाँ कैद में इन युवाओं को चीनी भाषा की शिक्षा दी जा रही है।
गार्जियन की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने पिछले कई सालों में समुदाय विशेष को पोटेंशिअल आतंकी मानते हुए शिनजियांग के मुस्लिम बहुल इलाकों में भी इस मजहब के समर्थकों को बहुत थोड़े में समेट दिया है। चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने वहाँ लगभग 5000 के आस-पास मस्जिदों को धराशाई कर चुकी है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2016 से अब तक अकेले शिनजियांग प्रांत में ही 25 से अधिक मस्जिदों को पूरी तरह नष्ट कर दिया गया है।
‘द गार्डियन’ ने कुछ अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर चीन की 100 मस्जिदों को ट्रैक किया। इसमें उसने पाया कि 91 में से 31 मस्जिदों को बड़ी क्षति पहुँचाई गई है, वो भी मात्र 3 वर्षों के भीतर। इनमें से 15 मस्जिदों को तो गायब ही कर दिया गया, वहीं कुछ के गुम्बद गायब हैं तो कुछ की मीनारें ही उड़ा दी गई हैं। कुछ मस्जिदों से उनका गेटहाउस ही गायब है। इसके अलावा 9 अन्य छोटे-मोटे मस्जिदों को भी ख़ासा नुकसान पहुँचाया गया है। चीन ने चुन-चुन कर उन मस्जिदों को ज्यादा तबाही पहुँचाई है, जहाँ उइगर भारी संख्या में जाया करते थे। चीन उइगरों को अपने लिए सबसे ज़्यादा खतरनाक मानता है।
चीन में उइगरों पर की जा रही कठोर कार्रवाई के पीछे, उसका यह विचार है कि समुदाय विशेष में पोटेंशिअल आतंकी होने की संभावना होती है। दूसरा चीन उन पर वर्षों से सख्ती बरतता आ रहा है जिससे भी सुरक्षा में ढील दिए जाने के कारण उनका आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने की संभावना ज़्यादा मानते हुए चीनी अधिकारियों का साफ कहना है कि हम घटना का इंतज़ार नहीं कर सकते, इसलिए पहले से ही इन्हें नियंत्रण में रखा है। यहाँ तक आतंकी हमले के डर से चीन की सरकार ने जगह-जगह कैमरे लगा रखे हैं। कायदे से नमाज की भी इन लोगों को छूट नहीं है, विशेष अवसरों पर चीनी अधिकारियों और कैमरों की निगरानी में उन्हें नवाज की छूट मिलती है। जिसका तोड़ चीन ने नई पीढ़ी के बच्चों को ब्रैनवॉश कर, वो ऐसी प्रैक्टिस करें ही नहीं ऐसा तोड़ निकाल लिया है। इसके अलावा सादे कपड़ों में लगभग हर जगह तैनात सुरक्षाकर्मी भी आते-जाते इस समुदाय पर कड़ी नज़र रखते हैं। वहाँ की सरकार और सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी इस्लाम मज़हब को ही अपने लिए खतरा मानती है।
मस्जिदों को ढहाने के क्रम में चीन वहाँ के उइगरों की हर पुरानी पहचान को नष्ट कर रही है। यहाँ तक कि चीन के होतन के पास युटियन एटिका (Yutian Aitika) नामक एक मस्जिद था, जिसका इतिहास काफ़ी पुराना है। ये पिछले 800 वर्षों से यहाँ स्थित था। ये अपने इलाक़े का सबसे बड़ा मस्जिद था। अब इसी जगह बस कुछ खँडहर बचा है। चीन में मौजूद इस्लाम के अनुयाइयों का कहना है कि चीन इस्लाम का चीनीकरण करने के लिए एक अभियान चला रहा है, जिसके तहत मस्जिदें तोड़ी जा रही हैं और उइगरों को गिरफ़्तार कर प्रताड़ित किया जा रहा है। राहिले दावुत, जो चीन में स्थित मस्जिदों एवं दरगाहों के बारे में लिख रहे थे, वो अचानक से गायब हो गए।
Prominent Uighur activist Omer Kanat expresses serious concerns over China demolishing numerous mosques and shrines pic.twitter.com/blURE0LgfR
— TRT World (@trtworld) May 8, 2019
राहिले का कहना था कि जिस तरह से चीन की नीतियाँ चल रही हैं, उससे लगता है कि कुछ दिनों बाद उइगरों को अपने इतिहास एवं संस्कृति का ज्ञान ही नहीं रहेगा। उधर चीन ने शिनजियांग में रमजान महीना शुरू होते ही सरकारी अधिकारियों, छात्रों और बच्चों के रोज़ा रखने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।
चीन भले ही दूसरे देशों में व्याप्त आतंक पर ढूलमूल रवैया अपनाता आया हो, खासकर भारत के प्रति यहाँ तक कि चीन भारत को अस्थिर करने के लिए लगातार पाकिस्तान और वहाँ के आतंकियों को बचाता और समर्थन देता आया हो। लेकिन, चीन ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि उसने 2014 से अब तक 12,995 आतंकियों को गिरफ़्तार कर चुकी है, उनसे 2,052 विस्फोटक सामग्री को जब्त किया गया, 1,588 हिंसक एवं आतंकी गैंगों को नेस्तनाबूत किया, 30,645 लोगों को 4,858 अवैध धार्मिक गतिविधियों (illegal religious practices) के लिए दण्डित किया। चीन ने आँकड़े गिनाते हुए कहा कि कई तो ऐसे आतंकी थे जिन्होंने दंड पाने के बावजूद फिर से वही कार्य किया। ऐसे लोगों पर और भी अधिक सख्ती से कार्रवाई की गई। चीन ने कहा है कि शासन से लेकर स्कूलों तक, हर जगह मज़हबी बीज बोए जा रहे थे, जिस पर क़ाबू पाने के लिए हरसंभव प्रयास किए गए। यहाँ तक की चीन पिछले कई सालों से वहाँ के समुदाय विशेष के अधिकांश बच्चों को उनकी माँ के गोद से छीनकर ऐसे ही कैम्पों में भेज देता है।
यहाँ तक कि अब चीन इस्लाम के मूल स्वरुप को ही बदलने की दिशा में आगे बढ़ चुका है। चीनी अधिकारियों को लगता है कि इस मज़हब के मूल में ही हिंसा है और ऐसे माहौल में रहने से बच्चों के पोटेंशिअल आतंकी बनने की संभावना को ध्यान में रखते हुए चीन इस्लामी दर्शन में ही बड़े बदलाव की तरफ बढ़ चुका है। चीन के अंग्रेजी अख़बार ग्लोबल टाइम्स के अनुसार चीन के सरकारी अधिकारियों ने आठ इस्लामी संगठनों के प्रतिनिधियों से बातचीत के बाद ये तय किया कि इस्लाम को समाजवाद (कम्युनिष्ट) के मूल्यों के अनुरूप ढाला जाएगा और उसके अनुसार उनका मार्गदर्शन किया जाएगा।
बता दें कि चीन के इतिहास में सबसे शक्तिशाली नेताओं में से एक माने जाने वाले राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व वाली सरकार ने अपने देश में एक ‘सीनीफीकेशन’ अभियान शुरू किया है जिसके अंतर्गत ये निर्णय लिए गए और कुछ महीने में ही चीन के युन्नान प्रांत में प्रशासन ने हुइ मुस्लिम अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित किए गए तीन मस्जिदों को बंद कर दिया था।
इस तरह की गतिविधियों के पीछे, चीन का ये दावा है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग को इस्लामी चरमपंथियों और आतंकवादियों से ख़तरा है। चीन के अधिकारियों के मुताबिक़ अलगाववादी चीन के बहुसंख्यक हुन और मुस्लिमों के बीच एक खाई पैदा करना चाहते हैं। लेकिन मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि चीन अल्पसंख्यकों की “नैतिक सफाई” कर रहा है। वह दिन दूर नहीं जब चीन अपनी सरजमीं से या तो इस्लाम को पूरी तरह मिटा देगा या उनकी मजहबीं परम्पराओं से लेकर, सभी मजहबी व्यवहार पूरी तरह बदल देगा। जिस तरह से चीन कार्य कर रहा है। उसकी शख्त नीतियों को देखते हुए, ऐसी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।