बांग्लादेश हिंदुओं के लिए नरक बन गया है। वहाँ हर तरफ डर का साया है। ढाका विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र 26 वर्षीय निलय कुमार बिस्वास का कहना है कि आरक्षण विरोधी आंदोलन धीरे-धीरे एक ऐसे आंदोलन में बदल गया है, जिसमें देश में हिंदू अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा, “मैं अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता में रातों को सो नहीं पाता हूँ।”
निलय बिस्वास बांग्लादेश में जारी हिंदू विरोधी हिंसा एवं धार्मिक घृणा के एकमात्र शिकार हिंदू समुदाय के छात्र निलय कुमार बिस्वास नहीं हैं। वहाँ, का हर हिंदू कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी और खालिदा जिया की पार्टी के निशाने पर आ गया है। हालात ये हैं कि अब बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी 24% से घटकर 8% रह गई है। निलय ने भी शेख हसीना के खिलाफ प्रदर्शन में भाग लिया था।
यहाँ महत्वपूर्ण बात ये है कि पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) और प्रतिबंधित बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों ने भी छात्र आंदोलन की आड़ में हाथ मिला लिया। इसके परिणामस्वरूप शेख हसीना को मजबूरन इस्तीफा देना पड़ा और जल्दी-जल्दी में बांग्लादेश को छोड़कर भारत आना पड़ा।
उस समय से कट्टरपंथी इस्लामी हिंदुओं को लगातार निशाना बना रहे हैं। उनके मंदिरों को नष्ट कर रहे हैं। उनके घरों को आग लगा रहे हैं। उनकी महिलाओं का शोषण कर रहे हैं। यह सब एक लोकतांत्रिक क्रांति के नाम पर किया जा रहा है। 5 अगस्त के बाद से ये घटनाएँ और भी बढ़ गई हैं, जब सोशल मीडिया और समाचार आउटलेट पर हिंदुओं पर कई हमलों की चिंताजनक रिपोर्टें सामने आई हैं।
बांग्लादेश में हुए छात्र आंदोलन में जोश के साथ हिस्सा लेने वाले हिंदू छात्र-छात्राओं को अब सड़कों पर अल्पसंख्यकों का खून बहाने वाले इस्लामवादियों का सामना करना पड़ रहा है। यह बदसूरत सच्चाई हिंदू छात्रों के लिए एक झटका है, जो अपने खिलाफ हो रहे बेवजह दंगों से उतने ही चिंतित और हैरान हैं।
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे के बाद निलय कुमार बिस्वास पूरी रात सो नहीं पाए हैं। उन्होंने कहा कि वे ढाका में काफी सुरक्षित महसूस करते हैं, लेकिन रात में वे बांग्लादेश की राजधानी के बाहर रहने वाले दोस्तों और परिवार के लोगों की परेशानी भरी कॉल की वजह से सो नहीं पाते।
उन्होंने कहा कि अंतरिम सरकार की स्थापना तक बांग्लादेशी लोगों, खासकर हिंदुओं को एक-दूसरे का ख्याल रखने की जरूरत है। द प्रिंट को उन्होंने कहा, “अधिकांश पुलिस स्टेशन खाली रहते हैं। जब हत्यारी भीड़ उत्पात मचाती है तो आम बांग्लादेशी असहाय होकर देखते हैं। अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय ऐसे समय में विशेष रूप से असहाय महसूस करता है, क्योंकि हम आसान लक्ष्य होते हैं।”
पिछले साल ढाका विश्वविद्यालय के मास कम्युनिकेशन और पत्रकारिता विभाग से सामाजिक विज्ञान में मास्टर डिग्री प्राप्त करने वाले बिस्वास ने बताया कि बड़ी संख्या में हिंदू छात्रों ने कोटा सुधार प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था, जिसके कारण शेख हसीना को बाहर होना पड़ा। उन्होंने कहा कि मुस्लिम ही नहीं, बल्कि कई हिंदू छात्र चाहते थे कि सरकारी नौकरियों में कोटा प्रणाली में सुधार किया जाए।
बिस्वास ने कहा, “प्रदर्शन के दौरान हम अपने साथी मुस्लिम छात्रों के साथ चले, उम्मीद के गीत गाए, फासीवाद के खिलाफ नारे लगाए और पुलिस की लाठी और गोलियों का सामना किया। आज बांग्लादेश में फैली अराजकता में हिंदू मंदिरों पर हमला किया जा रहा है, हमारे घरों को लूटा जा रहा है, आग लगाई जा रही है, हमारी जान खतरे में है।”
कोटा के खिलाफ आंदोलन में हिंदू छात्रों ने खून बहाया: बिस्वास
उन्होंने दावा किया कि हिंदुओं पर हमलों के बीच हिंदू अपने साथी मुस्लिमों के पास मदद के लिए गए हैं। उन्होंने कहा, “मेरे मुस्लिम दोस्त भीड़ को मंदिरों और हिंदू घरों में तोड़फोड़ करने और आग लगाने से रोकने के लिए पहरा दे रहे हैं। सोशल मीडिया पर नेकदिल मुस्लिम नागरिकों की अपील है कि देश को अंधकार में न जाने दें। यह साथी मुसलमान ही हैं जो हमारी रक्षा कर सकते हैं। हम और किससे मदद माँगे?”
बिस्वास को डर है कि अगर अंतरिम प्रशासन जल्दी से स्थापित नहीं किया गया तो विनाश और हो सकता है। उन्होंने कहा, “बांग्लादेश को मुस्लिमों, हिंदुओं और सभी अन्य धर्मों के नागरिकों के साथ एक नई शुरुआत की जरूरत है। लोग सांप्रदायिक दंगों से प्रभावित जिलों की सूची बना रहे हैं। मैं यही प्रार्थना कर सकता हूँ कि सूची और लंबी न हो। पहले ही समुदाय बहुत कुछ खो चुका है।”
प्रदर्शन में भाग लेने वाली छात्रा का दर्द
बिस्वास की तरह ही यूनिवर्सिटी की छात्रा आरिया भौमिक ने भी शेख हसीना के पद से हटने का स्वागत करते हुए बांग्लादेश के झंडे के साथ जश्न मनाई थी और इसकी कई तस्वीरें भी पोस्ट की थीं। उन्होंने लिखा था, “बंगाल के लोग अब आज़ाद हैं।” एक अन्य पोस्ट में उन्होंने लिखा, “मैं हिंदू हूँ और बांग्लादेश में हर धर्म के मेरे दोस्त मेरी रक्षा के लिए यहाँ हैं। हमने मिलकर बांग्लादेश को बनाया है। हम एकजुट हैं।”
आरिया की गलतफहमी कट्टरपंथियों ने तुरंत दूर कर दी। उन्हें मुस्लिम बहुल देश में एक हिंदू के जीवन की कीमत का एहसास हुआ तो उन्होंने एक अन्य पोस्ट में अपील की, “हम धर्म की परवाह किए बिना एकजुट हैं। हमने धर्म नहीं, केवल मानवता देखी है और अब हम हिंदुओं पर हमला किया जा रहा है। यह समय है कि हम अपनी आवाज़ उठाएँ, इस अन्याय के खिलाफ़ अपना रुख़ स्पष्ट और मज़बूत करें।”
हालाँकि, आरिया को यह एहसास नहीं था कि भले ही यह यह उनके लिए सच हो, लेकिन एक इस्लामवादी दुनिया को इस्लाम के चश्मे से देखता है। विरोध प्रदर्शन उनके लिए हिंदुओं पर हमला करने का एक साधन मात्र है। आरिया ने कई समाचार लेखों के स्क्रीनशॉट भी अपलोड किए, जिनमें हिंदुओं, उनके घरों और मंदिरों पर हुए हमलों का विवरण दिया गया था।
इनमें प्रसिद्ध बांग्लादेशी संगीतकार राहुल आनंद भी शामिल हैं। कट्टरपंथियों ने उनके घर को आग लगा दी और उनके सामान को लूट लिया था। इस तरह, जिन हिंदू छात्र-छात्राओं ने बांग्लादेश को अपना देश माना और आंदोलन में खड़े रहे, वे आज अपने परिवारों, मित्रों और साथी हिंदुओं के जीवन और सम्मान की भीख माँगने पर मजबूर हो गए हैं कि उन्हें बख्श दिया जाए।