भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ सड़कों पर उतरे विद्यार्थियों और पुलिस की झड़प में 105 से अधिक लोगों की मौत हो गई है। लगातार हिंसा और आगजनी के बाद दंगा को नियंत्रित करने के लिए सेना को लगा दिया गया है। वहीं, ये भी कहा जा रहा है कि बांग्लादेश में हो रही हिंसा में विदेशी ताकतों का हाथ है, क्योंकि वहाँ की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने उनके हाथों की कठपुतली बनने से मना कर दिया था।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, बांग्लादेश जारी हिंसा के बीच शुक्रवार (19 जुलाई 2024) को 52 से ज़्यादा लोग मारे गए। शुक्रवार को प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेश के नरसिंगडी जिले की एक जेल से सैकड़ों कैदियों को छुड़ा लिया। इसके बाद उन्होंने जेल में आग लगा दी। सभी सार्वजनिक समारोहों, रैलियों और जुलूसों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके साथ ही इंटरनेट सेवा भी बंद कर सेना को उतार दिया गया है।
इससे एक दिन पहले कोटा विरोधी प्रदर्शनकारियों ने राजधानी ढाका में सरकारी प्रसारक बांग्लादेश टेलीविजन (बीटीवी) के मुख्यालय में आग लगा दी थी। इस हिंसा में अब तक 105 की लोगों की मौत हो गई है, जबकि 1500 से अधिक लोग घायल हैं। वहीं, ढाका में मेट्रो, पूरे देश में ट्रेन सेवा और न्यूज का प्रसारण रोकना पड़ा। सेंट्रल बैंक और प्रधानमंत्री ऑफिस की वेबसाइट हैक कर ली गई।
दरअसल, 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को 30% कोटा बहाल करने के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ था। यह आंदोलन लगभग एक महीने से ज़्यादा समय से चल रहा था। इस कोटा को बहाल करने को लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना की नेतृत्व वाली बांग्लादेश आवामी लीग की सरकार का कहना है कि स्वतंत्रता सेनानी के परिवार इसके हकदार हैं।
वहीं, कट्टर इस्लामी छवि रखने वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की प्रमुख खालिदा जिया इसका विरोध कर रही हैं। खालिदा को चीन का करीबी माना जाता है, जबकि हसीना को भारत का। अभी कुछ दिन पहले ही चीन की यात्रा पर गई शेख हसीना ने अपनी आधिकारिक यात्रा को बीच में खत्म करके वापस बांग्लादेश लौट आई थीं। वहीं, अमेरिका भी हसीना सरकार का विरोधी है।
हाल ही में प्रधानमंत्री शेख हसीना ने एक चौंकाने वाला दावा किया कि बांग्लादेश और म्यांमार के कुछ हिस्सों को मिलाकर ‘पूर्वी तिमोर जैसा एक ईसाई देश’ बनाने की साजिश रची जा रही है। उन्होंने कहा कि वह ऐसा नहीं होने देंगी। उन्होंने कहा, “पूर्वी तिमोर की तरह… वे बांग्लादेश (चटगाँव) और म्यांमार के कुछ हिस्सों को लेकर बंगाल की खाड़ी में एक ईसाई देश बनाएँगे।”
उन्होंने दावा किया कि इस वर्ष जनवरी में बांग्लादेश चुनावों से पहले उनसे मिलने आए एक ‘अंग्रेज’ ने उन्हें आश्वासन दिया था कि यदि वह उन्हें बांग्लादेश की धरती पर एक एयरबेस बनाने की अनुमति देंगी तो ‘कोई समस्या नहीं होगी’। दरअसल, शेख हसीना का इशारा स्पष्ट तौर पर अमेरिका की ओर की था। वहीं, इस हिंसा में अब चीन का नाम भी लिया जा रहा है।
हिंसा को लेकर भारत ने कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन कहा है कि पड़ोसी देश में रहने वाले लगभग 15,000 भारतीय नागरिक ‘सुरक्षित और स्वस्थ’ हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने नियमित मीडिया ब्रीफिंग में हिंसक विरोध प्रदर्शनों को लेकर भारत के नज़रिए से पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए कहा, “हम इसे बांग्लादेश का आंतरिक मामला मानते हैं।”
हिंसा का कारण
दरअसल, बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में कुछ समूहों के लिए 2018 तक 56% आरक्षण का प्रावधान था। इन्हें बांग्लादेश में बेहद आकर्षक माना जाता है। इन समूहों में विकलांग व्यक्ति (1%), स्वदेशी समुदाय (5%), महिलाएँ (10%), अविकसित जिलों के लोग (10%) और 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार (30%) शामिल हैं।
इससे योग्यता के आधार पर चयन के लिए केवल 44% सीटें बचीं। साल 2018 में छात्र समूहों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिसके कारण हसीना सरकार ने कोटा पूरी तरह से खत्म कर दिया। फिर जून 2024 में हाई कोर्ट फिर बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले को पलट दिया और स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों के लिए 30% आरक्षण को खत्म करने को अवैध ठहराया।