हाल ही में ईरान में हुए महिलाओं के आंदोलन ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा। एक मौलाना ने तो यहाँ तक दावा किया है कि मुल्क की 75,000 में से 50,0000 मस्जिदें बंद हो चुकी हैं। ईरान में हाल ही में हिजाब और बुर्का के खिलाफ लाखों महिलाएँ सड़क पर उतरीं। अब मौलाना मोहम्मद अबोलघासीम दौलाबी ने मुल्क में मस्जिदों के बंद होने पर चिंता जाहिर की है। ये सब तब हो रहा है, जब ईरान एक इस्लामी मुल्क है।
जिस मौलाना ने ये जानकारी दी है, वो ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की सरकार और मुल्क के मौलानाओं के बीच सेतु का काम करते हैं। उन्होंने गुरुवार (1 जून, 2023) को कहा कि नमाजियों की संख्या भी कम होती जा रही है। उन्होंने कहा कि इस मुल्क का निर्माण इस्लाम के इर्दगिर्द हुआ है, ऐसे में इसके लिए नमाज पढ़ने वालों और मस्जिदों की सदस्यता लेने वालों की संख्या कम होता बहुत बड़ी चिंता का विषय होना चाहिए।
दौलाबी विशेषज्ञों की एक समिति के भी सदस्य हैं। यही वो समिति है, जो ईरान के सुप्रीम लीडर का चुनाव करती है। उन्होंने कहा कि ईरान के समाज में मजहब के प्रति कम होती रुचि के कारण मस्जिद बंद हो रहे हैं। उन्होंने मजहबी शिक्षाओं को लेकर फैले मिथक के साथ-साथ लोगों को समृद्धि से वंचित कर के मजहब के नाम पर गरीब बनाए जाने को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि मजहब के नाम पर लोगों को अपमानित भी किया जा रहा है।
Islam is dying in the Muslim world. Two-thirds of Iran's mosques are closed. Pakistani scholars are openly weeping about apostasy. Madrassas are filled with ex-Muslims pretending to believe in order to avoid persecution.
— Dr. David Wood (@Acts17David) June 4, 2023
DAWAH: "You see! Islam will conquer the world!" https://t.co/uSeDv4g0bF
उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में लोगों के मन में ये भावना बैठ गई है कि ईरान की सत्ता क्रूर है और इसकी तानाशाही का आधार इस्लाम ही है। उन्होंने सितंबर 2022 के बाद मुल्क भर में हुए विरोध प्रदर्शन को भी इसका ही परिणाम बताया। ईरान की लगभग 60% मस्जिदें बंद हो चुकी हैं क्योंकि नमाजी आ ही नहीं रहे। उन्होंने कहा कि जब किसी मजहब के परिणामों की चर्चा होती है, तो लोग उसी आधार पर उसे छोड़ने या उसमें जाने का निर्णय लेते हैं।