21वीं सदी में, यानी जेनेटिक इंजीनियरिंग, रोबोटिक्स और आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस के इस अति वैज्ञानिक युग में किसी देश में Covid-19 जैसे वायरस का संक्रमण सम्भवतः एक वैज्ञानिक भूल से निर्मित अविष्कार होता है। लेकिन बीते साल के दिसम्बर माह में चीन के वुहान प्रांत से शुरू हुए इस वायरस के उद्गम और प्रभाव पर अब कई समानांतर थ्योरी भी सामने आ रही हैं। इसकी उत्पत्ति को लेकर बायो टेरेरिज्म जैसे विभिन्न विवादास्पद सिद्धान्त सामने आना स्वाभाविक भी है। खासकर संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इसे चायनीज वायरस नाम देने से इस महामारी के प्रति लोग सतर्क होते नजर आ रहे हैं।
जहाँ एक ओर रूस, अरब, सीरिया, जैसे देश चीन में फैले कोरोना वायरस के लिए अमेरिका और इजरायल को दोष दे रहे हैं वहीं अमेरिका खुद चीन को ही कोरोना का जनक बता रहा है। इस बीच सबसे दिलचस्प बात यह है कि अपने बयानों को साबित करने के साक्ष्य किसी के पास नही हैं, लेकिन अपने-अपने तर्क सभी के पास हैं।
इससे पहले रूस 1980 के शीत युद्ध के दौर में एचआईवी के संक्रमण के लिए भी अमेरिका को जिम्मेदार बता चुका है। जबकि अरबी मीडिया का कहना है कि अमेरिका और इजरायल ने चीन के खिलाफ मनोवैज्ञानिक और आर्थिक युद्ध के उद्देश्य से इस जैविक हथियार का प्रयोग किया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस कोरोना वायरस की उत्पत्ति चीनी शहर वुहान के समुद्री जीवों को बेचने वाले बाज़ार से हुई है। ये बाज़ार जंगली जीवों, जैसे- साँप, रैकून और साही के अवैध व्यापार के लिए चर्चित था।
सार्स, Covid-19, नोवेल कोरोना वायरस, आदि शब्द आम जनता के लिए नए हो सकते हैं, लेकिन विज्ञान के क्षेत्र से जुड़े और विज्ञान में दिलचस्पी रखने वाले लोग जानते हैं कि कोरोना वायरस कोई नया शब्द नहीं है। वर्ष 2002 से 2003 के बीच जिस तरह से सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिन्ड्रोम (सार्स, SARS) ने तबाही मचाई थी, उससे कहीं ज्यादा बड़ी महामारी बनकर अब नोवेल कोरोना वायरस उभरकर सामने आया है।
16-17 मई 2003 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) SARS की महामारी पर पहली ग्लोबल बैठक का जिनेवा, स्विट्जरलैंड में आयोजन किया। इस बैठक के 2 प्रमुख उद्देश्य थे:
- 1- इस वायरस द्वारा जनित महामारी पर तत्कालीन सेन्सस डॉक्यूमेंट तैयार करना।
- 2- अतिरिक्त किसी महामारी पर शोध की प्लानिंग और जानकारी में मौजूद खामियों को तलाशना।
एक अध्ययन में बताया गया है कि अभी तक मौजूद जानकारी के अनुसार इस वायरस की एक बड़ी फैमिली है, जिसमें से केवल छह वायरस ही इंसान को संक्रमित कर सकते हैं। माना जा रहा है कि इंसानों में बीमारी फैलाने वाला कोरोना वायरस इस फैमिली का सातवाँ सदस्य है। SARS-CoV, MERS-CoV and SARS-CoV-2 गंभीर रोग पैदा कर सकते हैं, जबकि HKU1, NL63, OC43 और 229E में हल्के लक्षण देखे जा सकते हैं।
इसमें बताया गया है कि कुछ देशों के दावों के विपरीत SARS-CoV-2 को किसी प्रयोगशाला में नहीं बनाया जा सकता है, ना ही इसे किसी जैविक युद्ध के उद्देश्य से तैयार किया जा सकता है और यह हर हाल में एक पशुजन्य रोग ही है। SARS-CoV-2 बीटा CoVs केटेगरी से सम्बंधित है और अन्य CoVs की तरह ही, यह अल्ट्रावायलेट किरणों और गर्मी के प्रति संवेदनशील है।
वैज्ञानिकों ने पाया कि SARS-CoV-2 स्पाइक प्रोटीन का RBD हिस्सा मानव कोशिकाओं के उस बाहरी हिस्से के मोलिक्युलर ढाँचे को प्रभावित करने के लिए विकसित हुआ था, जिसे ACE2 कहा जाता है। यह रक्त प्रेशर को नियंत्रित करने में सहयोगी एक रिसेप्टर है। SARS-CoV-2 स्पाइक प्रोटीन मानव कोशिकाओं को बाँधने में इतना प्रभावी था कि वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि यह प्राकृतिक चयन का परिणाम था, न कि किसी आनुवांशिक इंजीनियरिंग का।
क्योंकि CoVID-19 बीमारी के पहले मामलों को वुहान के हुआनन सीफूड होलसेल मार्केट के सीधे संपर्क से जोड़ा गया था, इसलिए पशु-से-मानव संचरण को इसके संक्रमण का प्रमुख तंत्र माना गया था। फिर भी, बाद के मामले इस प्रकार के संचरण तंत्र से जुड़े नहीं थे। इसलिए, यह निष्कर्ष निकाला गया कि वायरस को मानव-से-मानव में भी प्रेषित किया जा सकता है, और कोरोना वायरस से संक्रमित लोग ही COVID-19 के प्रसार का सबसे बड़ा स्रोत हैं।
ह्यूमन कोरोना वायरस (HCoV) की पहचान पहली बार 1960 के दशक में हुई थी। 2003 के बाद पाँच नए प्रकार के मानव कोरोना वायरस खोजे जा चुके हैं। किन्तु 2003 के बाद से चीन से SARS का प्रसार आरम्भ हुआ। इस SARS वायरस फैमिली का पुराने किसी प्रकार के कोरोना वायरस से सम्बन्ध नहीं था, जिस कारण इसे तीसरा कोरोना परिवार माना गया। 2002-03 में कुल 8,098 लोग SARS कोरोना वायरस से संक्रमित हुए, जिनमें से 774 लोग संक्रमण के कारण मारे गए। उसके कारणों की पूरी जाँच आज तक भी नहीं हो सकी किन्तु चीन के जंगली पशुओं के मांस के व्यापार से उसका सम्बन्ध जरूर स्थापित हो चुका है। वर्तमान में जो महामारी पूरे विश्व में फैली है, वह बिल्कुल नए प्रकार का कोरोना वायरस है जिसका प्रचलित नाम COVID-19 है।
हॉर्सशू चमगादड़ से मानव तक SARC वायरस के संक्रमण का सफर
एक अन्य अध्ययन में बताया गया है कि ये नया कोरोना वायरस चीनी हॉर्सशू चमगादड़ में मिलने वाले वायरस से मिलता जुलता है। हालाँकि, इस पर अभी तक भी आखिरी राय नहीं बन पाई है कि आज जिस स्थिति से चीन के बाद पूरा विश्व जूझ रहा है, उसके लिए यही चमगादड़ ज़िम्मेदार है। लेकिन यह सम्भव है कि इन चमगादड़ों के शरीर से वायरस दूसरे जानवर के शरीर में आया हो।
सबसे पहले जब इस वायरस के संक्रमण की ख़बर मिली तो वैज्ञानिकों का कहना था कि ये इंसानों से इंसानों में नहीं फैलता लेकिन बाद में पता चला है कि इस वायरस से संक्रमित एक व्यक्ति 1.4 से लेकर 2.5 लोगों को संक्रमित कर सकता है। यही वजह है कि जब तक शोधकर्ता किसी निर्णय तक पहुँचते कि शहरों को पूरी तरह ठप कर के ही इसके संक्रमण को रोका जा सकता है। तब तक यह कई देशों में फैल चुका था।
1 दिसम्बर 2017 को नेचर में प्रकाशित एक लेख में बताया गया है कि चीन भर में चलाए गए खोजी अभियान के बाद, आखिरकार घातक सार्स वायरस की उत्पत्ति को ढूँढ लिया था। चीन के युन्नान प्रांत की एक दूरस्थ गुफा में, विषाणु विज्ञानियों ने ‘हॉर्सशू चमगादड़ों’ की एक एकल आबादी की पहचान की, जिसने कि वर्ष 2002 में मनुष्यों में भी पैर पसार लिए थे और तकरीबन 800 लोगों की मौत का कारण बना। शोधकर्ताओं ने कहा था कि मौत के लिए जिम्मेदार यह वायरस आसानी से चमगादड़ों की ऐसी आबादी से ही आया होगा।
उन्होंने आगाह किया था कि ऐसी ही कोई बिमारी भविष्य में भी जन्म ले सकती है। 2002 के उत्तरार्ध में, एक रहस्यमयी निमोनिया जैसी बीमारी के मामले दक्षिण-पूर्वी चीन के गुआंगडोंग प्रांत में सामने आने लगे। इस बीमारी को SARS नाम दिया गया, जिसने उस समय भी वैश्विक आपातकाल को जन्म दिया। वर्ष 2003 में यह देखते ही देखते दुनिया भर में फैल गया, जिससे हजारों लोग संक्रमित हुए।
वैज्ञानिकों ने इसके लिए जिम्मेदार कोरोना वायरस को ढूँढ निकाला और उसी के जैसे जैनेटिकली सामान वायरस गुआंगडोंग प्रांत के पशु बाजार में बिकने वाले उदबिलाव (Paguma larvata) में भी पाया। कोरोना वायरस के वाहक की तलाश वैज्ञानिक निरंतर करते आए हैं, इस बार कोरोना वायरस के मानव तक संक्रमण के लिए पेंगोलिनो को जिम्मेदार बताया जा रहा है। कुछ चीनी वैज्ञानिकों ने करीब हजार जानवरों पर परीक्षण करके इस निष्कर्ष तक पहुँचें थे।
2003 की महामारी के बाद किए गए सर्वेक्षणों में बताया गया कि SARS संबंधित कोरोनो वायरस बड़ी संख्या में चीन के हॉर्सशू चमगादड़ (राइनोफस-2) में संचरण कर रहे थे। साथ ही यह सुझाव दिया कि संभवतः चमगादड़ों से ही यह घातक रोग उत्पन्न हुआ था, और बाद में उदबिलाव के माध्यम से यह मनुष्यों तक पहुँचा। लेकिन महत्वपूर्ण जीन, जो कि एक वायरस को कोशिकाओं को संक्रमित करने और संक्रमित करने की अनुमति देता है, मानव और ज्ञात चमगादड़, दोनों में अलग थे, जिस कारण से यह इस परिकल्पना पर संदेह के लिए थोड़ा सा जगह छोड़ता है।
इसके बाद इन चमगादड़ों की खोज के लिए अभियान चलाए गए, इसमें सबसे मुश्किल काम सुदूर जगहों और गुफाओं को लोकेट करना था। दक्षिण-पश्चिमी चीन के युन्नान में एक विशेष गुफा को खोजने के बाद, जिसमें कोरोनो वायरस के लक्षण मानव संस्करणों के समान दिखते थे। शोधकर्ताओं ने वहाँ पाँच साल बिताए और वहाँ मौजूद चमगादड़ों की निगरानी की।
उनके लिए आश्चर्य का विषय अब यह था कि युन्नान प्रान्त में किसी भी मनुष्य को प्रभावित किए बिना मानव आबादी से हजारों किलोमीटर दूर रहने वाले चमगादड़ों से SARC वायरस आखिर उन तक पहुँचा कैसे? लेकिन उन्होंने अनुमान लगाया कि शायद ऐसे ही चमगादड़ों की कोई बड़ी आबादी किसी अन्य कस्बे के निकट मौजूद रही होगी। उन्होंने इसके बाद सतर्क किया था कि 2003 की ही भाँती यह वायरस आगे भी कोई बड़ी आपदा पैदा कर सकता है।