पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यक समुदायों की कम उम्र की लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन जारी है। एसोसिएटेड प्रेस ने ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट्स के हवाले से कहा कि कोरोना वायरस को लेकर लगाए गए लॉकडाउन के समय इस बुरे चलन में और भी अधिक इजाफा हुआ। इसके पीछे का कारण लोगों का सोशल मीडिया पर अधिक समय तक एक्टिव रहना बताया गया है। इसमें बताया गया कि अधिक समय तक सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने के कारण ये युवतियाँ उनके जाल में आसानी से फँस जाती हैं।
पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों की 1000 लड़कियों का हर साल इस्लाम में होता है धर्मांतरण
रिपोर्ट बताती है कि 12 से 25 साल के बीच की 1000 ईसाई, सिख और हिंदू महिलाओं का अपहरण, बलात्कार किया गया और उन्हें शादी कर इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर किया गया। ऐसे पीड़ितों के परिवारों के सीमित आर्थिक साधनों के कारण कई मामले तो सामने ही नहीं आ पाते हैं और उनकी रिपोर्ट ही नहीं लिखवाई जाती।
ईसाइयों से जुड़े दो नए मामले भी सामने आए, जिनमें आरज़ू नाम की 13 वर्षीय ईसाई लड़की का अपहरण किया गया और फिर इस्लाम में परिवर्तित कर बलात्कार किया गया। इतना ही नहीं इसके बाद 44 साल के अपहरणकर्ता अली अजहर के साथ जबरन उसका निकाह करवा दिया गया। वहीं, 14 वर्षीय नेहा को जबरन ईसाई धर्म से इस्लाम में परिवर्तित करवाकर उससे दोगुनी उम्र के व्यक्ति से निकाह करवाया गया।
लड़कियों को ज्यादातर उनके ही परिचितों और रिश्तेदारों द्वारा या बड़े पुरुषों द्वारा दुल्हन की तलाश में अपहरण किया जाता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि लड़कियों के माता-पिता जमींदारों या साहूकारों से ऋण लेते हैं, लेकिन उसे चुका नहीं पाते हैं, जिसके बाद जमींदार ऋण के भुगतान के रुप में जबरन उनकी लड़कियों को अपने कब्जे में ले लेता है।
पुलिस भी इस मामले में सताए हुए अल्पसंख्यकों की मदद न के बराबर ही करती है। पाकिस्तान के स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग के अनुसार, एक बार इस्लाम में परिवर्तित हो जाने के बाद, लड़कियों की शादी अक्सर उम्रदराज पुरुषों या उनके अपहरणकर्ताओं से जल्दी से कर दी जाती है।
पाकिस्तान में है जबरन धर्मांतरण पैसा कमाने का बिजनेस
बाल संरक्षण कार्यकर्ताओं का कहना है कि पाकिस्तान में जबरन धर्मांतरण एक धंधा है, जिसमें इस्लामिक धर्मगुरु शामिल हैं, जो निकाह करवाते हैं। इसके अलावा, मजिस्ट्रेट भी भ्रष्ट स्थानीय पुलिस अपराधियों की जाँच से इनकार करने में मदद करते हैं।
जिब्रान नासिर नाम के एक कार्यकर्ता ने इन्हें ‘माफिया’ करार देते हुए कहा कि ये गैर-मुस्लिम लड़कियों को फँसाता है, क्योंकि वे अधिक उम्र के पुरुषों के लिए सबसे कमजोर और सबसे आसान लक्ष्य होते हैं। इसका लक्ष्य यह है कि इस्लाम में नए धर्मान्तरित लोगों की तलाश करने के बजाय कुँवारी दुल्हनों को निशाना बनाया जाए।
पाकिस्तान के 220 मिलियन लोगों में से 3.6 प्रतिशत अल्पसंख्यक हैं, जो अक्सर भेदभाव का शिकार होते रहते हैं। उचित जाँच का अभाव, अभियुक्तों का अभियोजन और अगवा किए गए पीड़ितों को उनके अभिभावकों के साथ पुनर्मिलन के अधिकार से वंचित करना इस्लामी शिकारियों के लिए अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना और आसान बना देता है।
इस सबसे इतर, अगर कोई कभी इन अत्याचारों के खिलाफ बोलने की हिम्मत करता है, उस पर ईश निंदा का आरोप लगा दिया जाता है। कुल मिलाकर देखा जाए तो पाकिस्तान के इस्लामी गणराज्य में न्याय मिलना दुर्लभ है।