ट्रंप ने अपनी जीत से पहले ही ये सुनिश्चित कर दिया था कि भारतीयों की भागीदारी उनके कार्यकाल में भी बनी रहे। दरअसल, उन्होंने अपनी सरकार में जिन्हें उपराष्ट्रपति चुना है वो जेडी वेंस है और वेंस की पत्नी उषा चिलुकुरी एक भारतीय हैं।
वामपंथियों के निशाने पर उषा चिलुकुरी
जेडी के उपराष्ट्रपति बनने के बाद उषा चिलुकुरी अमेरिका की द्वितीय महिला होंगी। इन चुनावों से पहले जब जेडी वेंस के नाम का ऐलान हुआ था तब वामपंथियों ने सोशल मीडिया पर उषा को बहुत ट्रोल किया था। उन्हें उनके हिंदू होने के कारण सोशल मीडिया पर निशाना बनाया गया था। उन्हें गालियाँ दी गई थीं। उनकी और जेडी की शादी पर सवाल उठाए गए थे। कहा गया था कि ये सब सिर्फ हिंदू वोट पाने के लिए किया गया है। हालाँकि अब इन सबपर विराम है। चारों ओर अगर किस्से हैं तो सिर्फ इसके कैसे उषा के आने से जेडी वेंस की जिंदगी बदली।
भारत से कैसे जुड़े जेडी वेंस
आपको जानकर हैरानी होगी कि वेंस की सफलता में उषा का बड़ा हाथ रहा है और आज JD वेंस भी अपने स्पष्ट विचारों के लिए जाने जाते हैं। उषा से उनकी मुलाकात येल यूनिवर्सिटी में पढ़ने के दौरान हुई थी। इसके बाद दोनों में प्रेम सबंध हो गए 2014 में दोनों ने शादी कर ली। दिलचस्प बात ये है कि जेडी वेंस और उषा की शादी हिंदू पंडित द्वारा तमिल रीति-रिवाज ही कराई गई थी। इसके बाद जेडी वेंस भारत और भारतीयों से, उनकी संस्कृति से स्वत: जुड़ते गए। आज उनकी छवि भारत के समर्थक के तौर पर जानी चाती है। उन्होंने 2022 में रिपब्लिकन पार्टी से चुनाव लड़के सांसद पद हासिल किया था और 2024 में वह उपराष्ट्रपति पद के लिए चुने गए।
भारतीय लोगों का उनसे लगाव उनके भारतीय कनेक्शन यानी उषा के कारण अधिक है। पेशे से सफल वकील उषा भले अमेरिका में जन्मीं लेकिन उनकी जड़े भारत की है। उनके माता-पिता का नाता भारत के आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले से है। 1980 के दशक में अमेरिका जाने के बाद भी उषा के परिवार ने अपने धर्म को नहीं छोड़ा और बेटी को संस्कृति से जोड़े रखा।
जेडी वेंस से शादी के कारण उषा वामपंथियों के निशाने पर रहीं और ये ट्रोलिंग तब और अधिक हुई जब वेंस को उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाया गया, लेकिन सोशल मीडिया पर कभी उनकी कोई गलत प्रतिक्रिया नहीं देखी गई। आज उनके उसी संयम का परिणाम है कि वो अमेरिका की द्वितीय महिला कहलाई जाएँगी।
अमेरिका में भारतीयों का रुतबा
बता दें कि अमेरिका में हुए चुनाव सिर्फ डोनाल्ड ट्रंप की जीत या जेडी वेंस के उपराष्ट्रपति बनने को लेकर नहीं हैं। अमेरिका के लोगों ने ट्रंप को राष्ट्रपति बनाकर उस सोच भी हराया है जो हिंदुओं को और भारतीयों को अपना निशाना बनाते हैं। इसके अलावा ये यह भी बताता है कि अमेरिका की आबादी में भले ही भारतवंशी कम हैं लेकिन उनका प्रभाव बहुत ज्यादा है। कारण दो हैं। राजनीति और बिजनेस।
आपने देखा होगा कि अमेरिका की बड़ी-बड़ी कंपनियों में टॉप पोस्ट पर कई भारतीयों का बोलबाला रहा है। फिर चाहे माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ के तौर पर चुने गए सत्या नडेला हों, गूगल के सीईओ रहे सुंदर पिचई हों, हॉटमेल के सहसंस्थापक सबीर भाटिया हों। इन सभी नामों के कारण भारत हमेशा से अमेरिका में अपनी शीर्ष जगह पाता रहा है। रही बात वामपंथियों की तो उन्हें उस व्यक्ति से समस्या है जिसकी जड़ें हिंदुत्व से जुड़ी हों। उषा अकेली नहीं है जिन्हें निशाना बनाया गया।
तुलसी गबार्ड को भी इससे पहले उनकी हिंदू पहचान के कारण निशाना बनाया जा चुका है। 2020 में तुलसी गबार्ड ने अमेरिकी कॉन्ग्रेस की सदस्य चुने जाने के बाद सोशल मीडिया पर कहा भी था कि कॉन्ग्रेस के लिए जब भी वो चुनावी तैयारी करती हैं या राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल होती हैं, तब-तब उन्हें हिंदूफोबिया का अनुभव होता है। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका में नेता और मीडिया न सिर्फ इसे बर्दास्त करते हैं, बल्कि इसे बढ़ावा भी देते हैं।