चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लिंक वाली भारत में काम कर रही कम से कम सात चीनी कंपनियों की पहचान की गई है, जिनमें हुवाई, अलीबाबा समेत 7 बड़ी कंपनियों के नाम शामिल हैं। ये उन 7 कंपनियों की सूची में शामिल हैं, जिनके खिलाफ भारतीय खुफिया सूत्रों ने रिपोर्ट दी है कि इन सभी के सम्बन्ध चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) से जुड़े हुए हैं।
चीन के इन बड़े नामों को भारत सरकार द्वारा 59 चीनी ऐप पर प्रतिबंध लगाने के बाद चिन्हित किया गया है, जिसने चीन की कम्युनिस्ट सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स को एकबार फिर सरदर्द देने का काम कर दिया है और नतीजा यह है कि ग्लोबल टाइम्स ने एक बार फिर अपने ‘लेखों’ के माध्यम से ‘रवीश रोना’ शुरू कर दिया है।
The Indian economy will suffer as New Delhi plans to sanction several Chinese companies in the country, using “military connection” as an excuse, because #India can’t find an ideal replacement from other countries: Chinese analysts https://t.co/m5WGWygxmw pic.twitter.com/02CQTFzRSL
— Global Times (@globaltimesnews) July 21, 2020
ग्लोबल टाइम्स की मानें तो भारत की अर्थव्यवस्था को ऐसा करने से बहुत नुकसान उठाना पड़ सकता है। ग्लोबल टाइम्स की इस हरकत पर सामान्य शब्दों में कहा जा सकता है कि बर्बाद भारत की अर्थव्यवस्था होगी और दर्द चीन को हो रहा है, बड़ी विडंबना है।
चीन से व्यापार को लेकर भारत के इस आक्रामक रवैए पर खिसियाए हुए ग्लोबल टाइम्स ने ‘रवीश रोना’ करते हुए लिखा है कि भारत ऐसा चीनी सेना के विरोध में नहीं बल्कि ‘घरेलू राष्ट्रवाद’ के लिए कर रहा है।
ग्लोबल टाइम्स जिस घरेलू राष्ट्रवाद का जिक्र अपने इस लेख में कर रहा है उसका इशारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत‘ की घोषणा की ओर है। पीएम मोदी ने कहा था कि हमें कोरोना महामारी को अवसर में बदलते हुए विदेशों पर अपनी निर्भरता को कम करके स्वदेशी के महत्व पर जोर देना होगा।
ग्लोबल टाइम्स ने इस लेख में प्रलाप करते हुए लिखा है कि जब चीन ने भारत से सीमा विवाद पर बात करने के प्रयास किए तो भारत ने और सेना बल झोंका और चीनी कम्पनियों का बहिष्कार करने का फैसला किया।
सरकार का कहना है कि फिलहाल इन्हें चिन्हित किया गया है और इन पर क्या एक्शन लिया जाएगा, इस सम्बन्ध में अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है। ये सभी सातों चीनी कंपनियाँ मोबाइल और टेक सेक्टर से नहीं जुड़ी हैं, लेकिन इन्होंने भारत की विभिन्न इंडस्ट्रीज में विशाल स्तर का निवेश किया है।
इनमें अलीबाबा, टेनसेंट, हुवाई, Xindia स्टील्स लिमिटेड जैसे नाम भी शामिल हैं, जो भारत और चीन के बीच सबसे बड़े संयुक्त उपक्रमों में से एक माना जाता है। इसके अलावा, झिंगांग कैथे इंटरनेशनल ग्रुप – जिसने छत्तीसगढ़ में 1,000 करोड़ रुपए के निवेश के साथ विनिर्माण सुविधा स्थापित की है और चीन इलेक्ट्रॉनिक्स प्रौद्योगिकी समूह निगम और SAIC मोटर निगम लिमिटेड भी शामिल हैं।
अलीबाबा ने भारत के मशहूर भारतीय स्टार्टअप कंपनियों में निवेश किया है, जिनमें पेटीएम, जोमेटो, बिग बास्केट, स्नैप डील, एक्सप्रेसबीज आदि शामिल हैं। वहीं, टेनसेंट ने बड़ा निवेश भारतीय टेक सेक्टर में किया है, जिनमें 400 मिलियन डॉलर का निवेश ओला कैब्स में और 700 मिलियन डॉलर का निवेश फ्लिपकार्ट में शामिल है।
दरअसल, गलवान घाटी में जारी गतिरोध के बीच भारत सरकार द्वारा चीनी सामान और चीन के बहिष्कार के मन्त्र को अब भारत के साथ ही अन्य बड़े देशों ने भी अपनाने का विचार किया है।
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने भी जून में उन 20 कंपनियों की सूची बनाई थी, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे चीन की सेना (PLA) के स्वामित्व या नियंत्रण में हैं, जिस कारण उन पर अतिरिक्त अमेरिकी प्रतिबंधों की संभावना है।
चीन पर प्रतिबंध आरोपित करने के साथ ही भारत अमेरिकी कंपनियों को अपने देश लाने की कोशिशें कर रहा है। सरकार ने अप्रैल माह में 1,000 से अधिक अमेरिकी मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों से संपर्क कर उन्हें चीन से कारोबारी गतिविधियों को समेटकर भारत लाने का ऑफर दिया है।
गौरतलब है कि ये कंपनियाँ 550 से अधिक उत्पाद बनाती हैं। भारत सरकार का मुख्य ध्यान मेडिकल उपकरण, फूड प्रोसेसिंग यूनिट, टेक्सटाइल्स, लेदर और ऑटो पार्ट्स निर्माता कंपनियों को आकर्षित करने पर है। यही नहीं, कोरोना वायरस की महामारी के बाद यूरोपीय संघ के सदस्य भी चीन के आपूर्तिकर्ताओं पर अपनी निर्भरता कम करने की योजना बना रहे हैं।