प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पोलैंड के दौरे पर वहाँ की राजधानी वारसॉ पहुँचे। मध्य यूरोप में स्थित इस देश की 72% जनसंख्या ईसाई है। 10वीं सदी के अंत में पोलन जनजाति के शासक मिएश्को प्रथम के ईसाई बन जाने के बाद ये देश कैथोलिक बहुल हो गया। उनके द्वारा स्थापित पिएस्ट राजवंश ने 400 वर्षों तक इस देश में शासन किया, ऐसे में उन्हें पोलैंड का संस्थापक भी कहा जाता है। जीवन के उच्च-स्तर, आर्थिक स्वच्छंदता और अधिक आय की वजह से ये देश समृद्ध है, यहाँ के लोग खुश रहते हैं।
1979 के बाद नरेंद्र मोदी पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो पोलैंड जा रहे है, 45 वर्ष पहले मोरारजी देसाई वारसॉ पहुँचे थे। पीएम मोदी ने राष्ट्रपति एंड्रेज सेबेस्टियन डूडा के साथ मुलाकात की और प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क के साथ द्विपक्षीय बैठक की। साथ ही उन्होंने पोलैंड में भारतीय समाज के साथ भी संवाद किया। आपको ये जान कर आश्चर्य होगा कि पिछले 164 वर्षों से पोलैंड में संस्कृत पढ़ाई जा रही है। भारत के इतिहास, यहाँ की संस्कृति, धर्म और सभ्यता को लेकर वहाँ शोध होते रहे हैं।
एक और जानने वाली बात ये भी है कि पोलैंड में समय के साथ भारतीय दर्शन और सनातन धर्म के मूल्यों का भी समर्थन बढ़ा है, वहाँ के लोग भारत से प्रभावित हैं। क्राकोव स्थित देश के सबसे पुराने जगियेलोनियन विश्वविद्यालय में सन् 1860-62 के दौरान संस्कृत पढ़ाया जाना शुरू हुआ था। प्रोफेसर लियोन मान्कोव्स्की ने यहाँ पहली बार संस्कृत चेयर की स्थापना की। उन्होंने न सिर्फ कानून और दर्शन में डॉक्टरेट की उपाधि पाई थी, बल्कि वो जर्मनी के दूसरे सबसे पुराने लीपज़िग विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्रोफेसर भी थे।
पोलैंड में संस्कृत भाषा का 164 वर्ष पुराना इतिहास
सन् 1893 में पोलैंड के विश्वविद्यालय में संस्कृत चेयर की स्थापना कर वो इसके प्रमुख बने। उनके बाद 1916 में आंद्रेज गाव्रोन्स्की ने इस विभाग को सँभाला। उन्होंने इस दौरान बौद्ध धर्म और रामायण को लेकर शोध-पत्र प्रकाशित किए। 100 से भी अधिक भाषाओं के जानकार आंद्रेज गाव्रोन्स्की ने 1913 से JU में इंडोलॉजी से संबंधित लेक्चर देना शुरू किया था। उन्होंने पोलैंड में पहली बार संस्कृत की किताब लिखी, जो आज तक पढ़ाई जाती है।
संस्कृत और सांस्कृतिक भाषाशास्त्र के चेयर की प्रमुख आगे चल कर हेलेना विलमन-ग्राबोस्का बनीं, जो यूनिवर्सिटी की पहली महिला प्रोफेसरों में से एक थीं। उन्होंने सन् 1928 में ये पद सँभाला। उन्होंने खुद के खर्च से वहाँ भारत से संबंधित पुस्तकालय की स्थापना की और कोर्स के आयाम को बढ़ाया। 1970 के दशक में भाषाविद तादेउज़ पोबोज़्नियाक ने वहाँ हिंदी का कोर्स शुरू करवाया। यूनिवर्सिटी और वारसॉ के ओरिएंटल इंस्टिट्यूट में 1932 में स्थापित इंडोलॉजी डिपार्टमेंट मध्य यूरोप में भारतीय अध्ययन का सबसे बड़ा केंद्र है।
पॉज़्नान स्थित एडम मिकीविक्ज़ विश्वविद्यालय और लोअर सिलेसियन वोइवोडीशिप स्थित व्रोकला विश्वविद्यालय में भी भारतीय भाषाओं, धर्म, संस्कृति और इतिहास की पढ़ाई होती है। 2022 में पोलैंड की एक लाइब्रेरी की दीवारों पर उपनिषदों के वाक्य लिखी हुई तस्वीरें वायरल हुई थी। वारसॉ यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी की दीवार पर भी वैदिक संस्कृत के श्लोक लिखे हुए हैं। पोलैंड और भारत के रिश्ते प्रगाढ़ होने का एक कारण संस्कृत से पोलैंड का पुराना कनेक्शन भी है।
भारत में पोलैंड का चित्रकार
आइए, अब भारत-पोलैंड के शुरुआती इतिहास की भी बात कर लेते हैं जिसे शोधार्थी और लेखक क्रिज़्सटॉफ़ इवानेक ने ‘X’ पर साझा किया है और पीएम मोदी भी इससे प्रभावित हुए। उन्होंने बताया है कि पोलैंड ने कभी UK-फ़्रांस की तरह भारत पर कभी आक्रमण नहीं किया। 18वीं सदी में ‘नेप्चून’ और ‘कोन पोल्स्की’ नामक 2 जहाज व्यापारी के लिए बंगाल की खाड़ी में घुसे, लेकिन फिर पता चला कि ऑस्ट्रेलियाई जहाजियों ने पोलैंड के नाम का इस्तेमाल किया था, ताकि वो ब्रिटिश-डच के एकाधिकार को चुनौती दे सकें।
लेकिन, अंग्रेजों और नीदरलैंड्स ने मिल कर उन्हें रोक दिया। पोलिश चित्रकार स्टीफन नोरब्लिन ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भाग कर भारत में शरण ली। महाराजा उम्मेद सिंह बहादुर के राजमहल में आज भी उनकी बनाई पेंटिंग लगी हुई है, जिसमें उन्होंने भित्ति-चित्र बनाए थे। जर्मनी के आक्रमण के बाद उस दौरान रोमानिया, तुर्की और इराक होकर लगभग 300 पोलिश नागरिक भाग कर भारत आए थे। बॉम्बे में पोलैंड का काउंसलेट था, अधिकतर ने वहाँ शरण ली।
स्टीफन नोरब्लिन के बारे में बता दें कि उनके दादा जीन-पियरे नॉरब्लिन डी ला गौरडाइन लोकप्रिय पेंटर रहे थे और उनकी पत्नी लेना ज़ेलिचोस्का अभिनेत्री थीं। उन्होंने गुजरात के मोरबी में, रामगढ़ में और जोधपुर के उम्मेद सिंह के पास रोजगार पाया और चित्र बनाए। सन्न 1943 में उम्मेद भवन का कार्य पूरा हुआ और इंटीरियर डिजाइन के लिए लंदन से आ रहे जहाज को जर्मनी ने डुबो दिया था। आज वहाँ ता होटल चलता है और स्टीफन नोरब्लिनने जिस कमरे में भित्ति चित्र बनाए उसे विशेष तौर पर प्रचारित किया जाता है।
युद्ध खत्म होने के बाद दोनों पति-पत्नी अमेरिका में बस गए। हालाँकि, स्टीफन नोरब्लिन ने जहाँ 1952 में आत्महत्या कर ली वहीं 6 वर्ष बाद उनकी पत्नी भी चल बसीं। 1944 में बॉम्बे में जन्मा उनका बेटा एंड्रू अमेरिका में आगे चल कर संगीतकार बना। आपको ये जान कर भी हैरानी होगी कि चंडीगढ़ का ऑरिजिनल मास्टरप्लान भी एक पोलिश आर्किटेक्ट मैसीज नोविकी ने तैयार किया था। वो 1950 में बॉम्बे से न्यूयॉर्क जाते समय एक प्लेन क्रैश में मारे गए थे।
कला को लेकर भी भारत और पोलैंड का रहा जुड़ाव
एक और जिस कनेक्शन के बारे में लेखक क्रिज़्सटॉफ़ इवानेक ने बताया है वो फ़िल्मी है। दिलीप कुमार की एक फिल्म आई थी 1958 में, ‘मधुमती’ नाम की। बिमल रॉय की इस फिल्म में पहली बार पुनर्जन्म को दिखाया गया था। इसका एक गाना है – ‘दिल तड़प-तड़प के कह रहा’, जिसे मुकेश और लता मंगेशकर ने गाया है। ये गाना पोलैंड के एक लोकगीत पर आधारित था। सलिल चौधरी ने इस फिल्म का संगीत बनाया। संगीत बनाए जाने के बाद फिल्म के बोल लिखे गए थे।
इसी तरह एक कहानी पोलैंड के यहूदी मौरिसी फ़्राइडमैन की भी है जो भारत आकर रमन महर्षि और जिड्डु कृष्णमूर्ति के शिष्य बने। उन्होंने हिन्दू धर्म अपना लिया और अवध का संविधान तैयार करने में महात्मा गाँधी की मदद की। जब भारत 17वीं शताब्दी में कपड़ों का हब हुआ करता था तब यहाँ से कपास के बने कपड़े पोलैंड जाते थे। मालवा में कॉटन की खेती सबसे अधिक होती थी, पोलैंड इसका सबसे बड़ा बाजार था। अपने आमिर खान की ‘फना’ फिल्म देखी होगी, उसकी शूटिंग पोलैंड में हुई थी।
There are quotes from Rigveda and the Upanishads engraved into the walls of the Warsaw University Library. They were selected by a Polish Sanskrit scholar, Professor Joanna Jurewicz. Recently, she was awarded an ICCR award for her work (mostly on Rigveda). pic.twitter.com/FfaNU5V0KQ
— Krzysztof Iwanek (@Chris_Iwanek) August 21, 2024
हैदराबाद में एक स्टेशनरी कंपनी है Kaybee नाम की, जिसकी स्थापना किरा बानासिन्स्का नामक एक पोलिश महिला ने की थी। ये इक्विपमेंट मनुफैक्टर कंपनी आज तक चल रही है। वो और उनके पति भारतीय नागरिक बन गए थे। इसी तरह पोलैंड में 19वीं सदी में एक महान कवि हुए हैं एडम मिकीविक्ज़ नाम के, जिन्होंने अपने लेखन में हिन्दू धर्म के सिद्धांतों का इस्तेमाल किया है। उन्होंने अपना अधिकतर समय पेरिस में पलायन कर के बिताया था, जहाँ वो पूरी दुनिया में रुचि रखने वाले विद्वानों के संपर्क में आए थे।
पेरिस के कॉलेज में लेक्चरर रहने के दौरान वो वेदों और भगवद्गीता से उद्धरण देते थे। उनकी ‘Pan Tadeusz’ जैसी कविताओं को पढ़ने पर प्रतीत होता है कि इसमें जिन मानवीय कर्तव्यों की बात की गई है वो हिन्दू धर्म से प्रेरित है। खासकर कर्म और धर्म के सिद्धांत के आधार पर उन्होंने काफी लिखा है। उन्होंने यूरोपियन भाषाओं में अनुवाद किए गए प्राचीन भारतीय साहित्यों का अध्ययन किया। यहाँ पोलैंड के एक थिएटर निर्देशक जेरज़ी ग्रोटोव्स्की का जिक्र करना भी बनता है।
उन्होंने कालिदास रचित ‘शकुंतला’ पर थिएटर नाटक तैयार किया। उन्होंने योग को भी महत्व दिया और कहा कि अनुशासन व एकाग्रता के लिए ये ज़रूरी है। इसके लिए वो नटराज का उदाहरण देते थे, जिनका चेहरा एक योगी की तरह एकाग्र है लेकिन जिनके शरीर के अंग एक ख़ास नृत्य की मुद्रा में हैं। वो कथकली नृत्य की भावमुद्राओं से भी काफी प्रभावित थे। 1970 के आसपास उन्होंने भारत में जम कर भ्रमण किया। उनका मानना था कि योग-अध्यात्म को थिएटर और अभिनय के साथ जोड़ा जाना चाहिए।
जाम साहेब ने पोलिश बच्चों को दी शरण
पोलैंड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘जाम साहेब’ को भी श्रद्धांजलि देने पहुँचे, जिन्हें वहाँ नायक की तरह पूजा जाता है। सितंबर 1939 में जब पोलैंड में नाज़ी जर्मनी ने कहर बरपाया, तब से ही पोलिश नागरिकों का पलायन शुरू हो गया था। ऐसे में 1000 पोलिश शरणार्थियों ने सोवियत रूस में पलायन किया। हालाँकि, रूस सहित कई देशों ने उन्हें नकार दिया तो अंत में वो बॉम्बे पहुँचे। ब्रिटिश शासकों ने भी उन्हें रखने से नकार दिया, तब भारत का एक राजा मदद के लिए आगे आया।
नवानगर के दिग्विजय सिंहजी ने उन्हें शरण दी। न सिर्फ शरण दी, बल्कि उनके लिए शिक्षा, आवास और सुरक्षित माहौल की भी व्यवस्था की। बालाचडी में इन्हें बसाया गया। अधिकतर बच्चों की उम्र 2-15 वर्ष के बीच थी और वो युद्ध में अनाथ हो गए थे। उन्हें ठीक से भोजन मिले, इसके लिए पोलैंड से रसोइये भी मँगाए गए। बच्चे महाराजा को ‘बापू’ कह कर पुकारते थे और महाराजा उनके लिए उपहार लेकर समय-समय पर उनसे मिलने जाते रहते थे। आज वारसॉ के रॉयल लाज़िएन्की पार्क में उनकी प्रतिमा लगी हुई थी।
आज जो पोलैंड के राष्ट्रपति हैं, उनके परिवार के कई लोगों को भी द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत में शरण मिली थी। जब वो भारत के दौरे पर आए थे तो उन्होंने जामनगर जाकर महाराजा के वंशजों से मुलाकात की थी। 2017 के उस दौरे में उन्होंने भारत द्वारा दिए गए मदद के लिए देश के नागरिकों को धन्यवाद दिया था। इन पोलिश बच्चों में से कई को उनके परिवार से धीरे-धीरे मिलाया गया, कुछ लंबे समय तक भारत में रहे। इनमें से कइयों ने भारत में लेकर अपने अनुभव लेखन के जरिए साझा किया।