आख़िरकार नेपाल की समाजवादी पार्टी की पूर्व नेता और सांसद सरिता गिरी को नेपाल के नए नक़्शे का अपने विरोध का नतीजा भुगतना ही पड़ा। उनकी सदन की सदस्यता आधिकारिक तौर पर रद्द कर दी गई है। जिसके साथ ही उनकी लॉ-मेकर की भूमिका भी छीन ली गई है।
इसके पहले उनके राजनीतिक दल ने उन्हें दल से निकाल दिया था और प्रतिनिधि सदन से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। दल के मुताबिक़ अब पूर्व सांसद सरिता गिरी ने उस संवैधानिक संशोधन का विरोध किया था जिसके तहत नेपाल का नया मानचित्र लागू किया जाना है।
नेपाल की समाजवादी पार्टी ने संघीय संसद के सचिवालय को एक पत्र लिखकर इस बात का ज़िक्र किया था कि सरिता गिरी को इसकी सूचना दे दी जाए कि उन्हें दल से बाहर निकाल दिया गया है।इसके बाद संघीय संसद के सचिव भरत राज गौतम ने सरिता गिरी को एक अधिसूचना जारी की। उसमें उन्होंने लिखा कि सरिता गिरी को अब लॉ-मेकर की भूमिका से मुक्त कर दिया गया है। फिलहाल यह पद पूर्णतः रिक्त है।
इस मामले पर अब भारत भी सक्रिय हो चुका है, भारत ने एक कूटनीतिक दाँव खेलते हुए नेपाल के नए मानचित्र के कदम पर विरोध दर्ज कराया है। इसके बाद विदेश मंत्रालय ने राष्ट्रीय सदन की डेलीगेट, मैनेजमेंट एंड गवर्नमेंट एश्योरेंस कमेटी को भारत द्वारा भेजे गए पत्र के बारे में सूचित किया। जिसके बाद गुरूवार के दिन हुई समिति की बैठक में राम नारायण बिदारी ने संसदीय समिति को भारत के इस कूटनीतिक विरोध के बारे में बताया।
बिदारी ने कहा, “भारत ने नेपाल के नए मानचित्र पर विरोध दर्ज कराया है, साथ ही भारत ने इस नए मानचित्र में किए गए बदलावों को सिरे से नकारा है।” नेपाल ने राजनीतिक और प्रशासनिक रूप से परिवर्तित इस मानचित्र को 20 मई के दिन जारी किया था।
नेपाल सरकार द्वारा जारी किए गए मानचित्र में कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को नेपाल का हिस्सा बताया गया था। वहीं सरिता गिरी ने भारत के कुछ इलाकों को नेपाल में शामिल करने वाले मानचित्र का विरोध किया था। जिसके बाद उनके राजनीतिक दल समाजवादी पार्टी ने उनकी सदस्यता समाप्त करने की सिफारिश कर दी थी।
इसके बाद समाजवादी पार्टी के महासचिव राम सहाय प्रसाद यादव की अगुवाई में दल के एक टास्क फ़ोर्स ने सरिता गिरी की पार्टी सदस्यता और संसदीय सीट समाप्त करने की सिफारिश की। इस टास्क फ़ोर्स के दूसरे सदस्य मोहम्मद इश्तियाक के अनुसार सरिता गिरी ने दल के संसदीय निर्देशों का पालन नहीं किया
जिसके आधार पर उनके खिलाफ यह माँग उठाई गई है। यह संविधान संशोधन विधेयक कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा समेत मानचित्र में तमाम संशोधन करने के लिए प्रस्तावित किया गया था। जिसका सांसद गिरी ने विरोध किया और यह हमारे दल के निर्देशों का उल्लंघन था।
सांसद सरिता गिरी का क़सूर केवल इतना था कि उन्होंने नए नक्शे के लिए संविधान में संशोधन के लिए सरकार से सवाल कर दिया। वह केवल इतना जानना चाहती थीं कि किस आधार पर तमाम इलाकों को नेपाल में शामिल करने का दावा किया जा रहा है? उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा कि कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा पर दावा करने के लिए सरकार के पास कोई आधार नहीं है।
इसके बाद वह एक-एक करके लगभग सारे ही राजनीतिक दलों के निशाने पर आ गईं। उन्हें चौतरफा दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, उनके घर पर हमला हुआ और उन्हें लगातार धमकियाँ मिलने लगी। यहाँ तक कि उन पर खुद की पार्टी के लोग तक तंज कस रहे हैं, उन्हें भारत की भक्त तक कहा जाने लगा।