Sunday, November 17, 2024
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क्रिकेट में घुस गया कोरोना के टाइम ‘थूक जिहाद’ लाने वाला तबलीगी जमात, पाकिस्तानी खिलाड़ी हो गए ‘मुसलमान’ और खेल को बना दिया ‘उम्माह का मैदान’

तबलीगी जमात को लेकर जहाँ पाकिस्तान के खिलाड़ी तक इतने उत्साहित दिखते हैं तो वहीं कुछ देशों ने तो इसे कट्टरपंथी संगठन बताते हुए प्रतिबंध भी लगाया हुआ है। 2013 में कजाकिस्तान ने इस पर प्रतिबंध लगाया था। इसके बाद ईरान, रूस, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान आदि देशों में भी यह प्रतिबंधित हुआ।

पाकिस्तान के कुछ खिलाड़ी पिछले दिनों तबलीगी जमात के कार्यक्रम में दिखे तो उनके अपने ही लोगों ने उनसे सवाल करने शुरू कर दिए। कहा गया कि दीनी काम करना अच्छी बात लेकिन पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ी होने के नाते उन्हें खेल पर भी ध्यान देना चाहिए। साथ ही उस आवाम का भी ख्याल करना चाहिए जो उनसे हर मैच में उम्मीद लगाकर बैठती है और हमेशा निराश होती है।

एपेक्स स्पोर्स्ट द्वारा साझा वीडियो में मोहम्मद रिजवान, इफ्तिखार अहमद और अब्बास अफरीदी दिख रहे हैं। दावा है कि ये खिलाड़ी पेशावर में हुए तबलीगी जमात के कार्यक्रम में हैं। ये वीडियो ठीक रिजवान के उस पुराने बयान के बाद सामने आई है जहाँ उन्होंने एक इंटरव्यू में क्रिकेट और पाकिस्तान से ऊपर इस्लाम को बताया था।

रिजवान ने बताया खुद को इस्लाम का प्रतिनिधि

मीडिया इंटरव्यू में रिज़वान ने कहा था, “मैं ये समझता हूँ कि हर एक इंसान 2 चीजों का ब्रांड एम्बेसडर होता है। वो पहले इस्लाम का एम्बेसडर है। जब इस्लाम का एम्बेसडर होता है तब उसके लिए पाकिस्तान मायने नहीं रखता। वो अगर मुसलमान है तो पूरी दुनिया में इस्लाम का प्रतिनिधित्व करता है। दूसरी ओर अगर वह पाकिस्तान का ब्रांड एम्बेसडर है तब उसके लिए मायने नहीं रखता कि वह कौन से सूबे से है। वह फिर पाकिस्तान का प्रतिनिधि बन जाता है।”

पाकिस्तान के ये खिलाड़ी जिस तबलीगी जमात में दिखे हैं वो भारत में साल 2020 में खूब चर्चा में रहा था। उस समय तबलीगी जमात के लोगों पर कोरोना संक्रमण फैलाने के आरोप लगे थे। पुलिस की छानबीन में ये भी सामने आया था कि प्रशासन के मना करने के बावजूद ये लोग एक साथ इकट्ठा होकर रह रहे थे और जब इन्हें आइसोलेशन में डाला वहाँ भी ये लोग थूक फेंक फेंककर कोरोना फैलाते दिखे थे।

तबलीगी जमात क्या और इसके उद्देश्य

तबलीगी जमात की शुरुआत 1920 के आसपास सुन्नी इस्लाम के प्रचार के लिए भारत से हुई थी। आशीष नौटियाल अपने लेख में तबलीगी जमात के प्रमुख उद्देश्यों के बारे में बताते हैं और जानकारी देते हैं कि तबलीगी जमात का मकसद समुदाय के लोगों को प्राचीन इस्लामी पद्धतियों की ओर ले जाने की प्रेरणा देना था। इससे जुड़े लोग जुड़े लोग पारंपरिक इस्लाम को मानते हैं और इसी के मूल का प्रचार-प्रसार दुनियाभर में करते हैं। इन्हीं उद्देश्यों के जरिए वे इस्लाम को पुनर्जीवित करने का काम करते हैं। आज इस संगठन की पकड़ इतनी मजबूत हो गई है कि ये 213 देशों तक फैल चुका है। बताया जाता है कि दुनिया भर में इसके 15 करोड़ से ज्यादा सदस्य हैं और संगठन लगातार बढ़ ही रहा है।

तबलीगी जमात के उद्देश्य

  • कलिमा (एकेश्वरवाद के अंतर्गत यह घोषणा कि दुनिया में सिर्फ और सिर्फ एक अल्लाह ही भगवान है और प्रोफेट मोहम्मद उनके दूत हैं)
  • सलात (पाँच वक्त की नमाज)
  • इल्म-ओ-ज़िक्र (मजहबी ज्ञान)
  • इक्राम-ए-मुस्लिम (मजहब के लोगों का आपस में एक-दूसरे का सम्मान करना और मदद करना- भाईचारा)-
  • इख्लास-ए-निय्यत (इरादे की ईमानदारी)
  • तफ्रीह-ए-वक़्त (रोजाना के कामों से दूर रहकर समय का इस्तेमाल अल्लाह के संदेश को घर-घर तक पहुँचाना)
    इनके अलावा एक सातवाँ और शायद सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है- दावत-ओ-तबलीग (मस्जिद में आने की दावत: धर्मांतरण का हिस्सा)

तबलीगी जमात कई मुल्कों में बैन

तबलीगी जमात को लेकर जहाँ पाकिस्तान के खिलाड़ी तक इतने उत्साहित दिखते हैं तो वहीं कुछ देशों ने तो इसे कट्टरपंथी संगठन बताते हुए प्रतिबंध भी लगाया हुआ है। 2013 में कजाकिस्तान ने इस पर प्रतिबंध लगाया था। इसके बाद ईरान, रूस, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान आदि देशों में भी यह प्रतिबंधित हुआ।

2021 में सऊदी सरकार ने इस ग्रुप को समााज के लिए खतरा और आतंकवाद के द्वारों में से एक बताया था। साथ ही सऊदी इस्लामिक मामलों के मंत्रालय ने मस्जिद में उपदेशकों को आदेश दिया था कि वे लोगों को तबलीगी जमात के बारे में आगाह करें। तब, सरकार ने मस्जिदों से इस संगठन के पथभ्रष्टता, विचलन और खतरे के बारे में भी बताने को कहा था।

कई पाकिस्तानी खिलाड़ी दिखे तबलीगी जमातों में

तबलीगी जमात जैसे मजहबी संगठनों के कार्यक्रमों में पाकिस्तान खिलाड़ियों का नजर आना कोई नया नहीं है। साल 2023 में पाकिस्तान के पूर्व खिलाड़ी शाहिद अफरीदी भी तबलीगी जमात के कार्यक्रम में भाग लेते हुए दिखे थे। कार्यक्रम में चाय पीते उनकी वीडियो और फोटोज भी सामने आई थी। शाहिद अफरीदी के अलावा शाहीन अफरीदी भी इसका हिस्सा हैं। वहीं पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर सईद अनवर भी तबलीगी जमात के प्रचारक बनकर खुलेआम धर्मांतरण को सही बताते दिख चुके हैं।

इसके अलावा पाकिस्तान क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान इंजमाम-उल-हक की बात करें तो माना जाता है कि इंजमाम के इस संगठन से जुड़ने के बाद ही तमाम खिलाड़ी तबलीगी जमात से जुड़े। पाकिस्तान का पूर्व क्रिकेटर मिस्बाह-उल-हक भी तबलीगी जमात का हिस्सा है…ऐसे ही तमाम नाम हैं जो पाकिस्तान क्रिकेट को छोड़कर मजहब का प्रचार-प्रसार करने में लगे हुए हैं… और पिछले कुछ सालों में देखें तो ये सब कुछ ज्यादा ही बढ़ा है।

याद करिए 90 के दशक में जब आप क्रिकेट देखते होंगे तो आपको ये सारी चीजें नहीं देखने को मिलती होंगी क्योंकि खिलाड़ियों में खेल वाला स्पिरिट रहता था, मगर अब खिलाड़ी मैच में अच्छा प्रदर्शन करें न करें पर इस्लाम की बातें करना नहीं छोड़ते। रिजवान की बात से साफ है कि वो इस्लाम को पहले नंबर पर मानते हैं और फिर पाकिस्तान को तो सोचिए ऐसी मानसिकता वाला व्यक्ति क्यों पिच पर मुल्क के लिए खेलने को प्राथमिकता देगा। इन खिलाड़ियों के रवैये को देखते हुए कई पाकिस्तानी खेल पत्रकार कहते भी चुके हैं कि 1990 से 2000 तक ऊँचाइयों पर रहने वाली टीम के गर्त में जाने का कारण सिर्फ यही है कि खिलाड़ियों में मजहब घुस गया है।

मजहब और खेल दो अलग चीज

मालूम हो कि किसी धर्म या मजहब का अनुसरण करना और देश के लिए खेलना दो अलग चीजें हैं। कई देशों के कई खिलाड़ी हैं जो काफी धार्मिक हैं मगर जब वो पिच पर उतरते हैं तो वो अपने देश और अपनी टीम के लिए शत-प्रतिशत देते हैं। उनका उद्देश्य वहाँ अपने धर्म का प्रचार नहीं होता बल्कि उद्देश्य होता है कि वो कैसे भी करके अपने देश और देशवासियों को गौरवान्वित करवाएँ। वो खेल को प्रोफेशनल जीवन का हिस्सा मानते हैं जबकि धर्म को निजी। भारत के विराट कोहली, साउथ अफ्रीका के केशव महाराज जैसे खिलाड़ी इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। पाकिस्तान के खिलाड़ियों को और कुछ नहीं तो इन्हीं से सीखने की जरूरत है कि खेल और मजहब को अलग-अलग रखा जाए और जैसे मजहब के लिए निष्ठा दिखाते हैं वैसे ही खेल में भी दिखाएँ।

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