Saturday, November 16, 2024
Homeरिपोर्टअंतरराष्ट्रीयअमेरिका के बाद अब मिस्र: 4000 बलिदानी भारतीय सैनिकों को नमन करेंगे PM मोदी,...

अमेरिका के बाद अब मिस्र: 4000 बलिदानी भारतीय सैनिकों को नमन करेंगे PM मोदी, बोहरा मुस्लिमों की 1000 वर्ष पुरानी मस्जिद में भी जाएँगे

राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी के निमंत्रण पर मिस्र की राजकीय यात्रा पर जा रहे पीएम मोदी अल-हकीम मस्जिद जाएँगे। काहिरा स्थित इस ऐतिहासिक मस्जिद का नाम 16वें फातिमिद खलीफा अल-हकीम (985-1021) के नाम पर रखा गया है। मस्जिद का निर्माण मूल रूप से अल-हकीम के पिता खलीफा अल-अजीज ने 10वीं शताब्दी के अंत में शुरू कराया था, जिसे 1013 में पूरा किया गया था।

अपनी चार दिवसीय राजकीय यात्रा पर 21 जून 2023 को अमेरिका पहुँचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) 24 जून 2023 को वहाँ से मिस्र के लिए रवाना होंगे। मिस्र में वे प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना के लिए शहीद होने वाले 4,000 से ज्यादा भारतीय जवानों को श्रद्धांजलि देंगे। इसके साथ ही वे बोहरा समुदाय से जुड़े अल-हकीम मस्जिद भी जाएँगे।

मिस्र की राजकीय यात्रा पर जाने वाले पीए मोदी की यात्रा विवरण को लेकर भारतीय राजदूत ने जानकारी दी है। मिस्र की राजधानी काहिरा में भारत के राजदूत अजीत गुप्ते ने कहा, पीएम अल-हकीम मस्जिद का दौरा करेंगे, जो 11वीं शताब्दी में फातिमिद राजवंश के दौरान बनाई गई थी। बोहरा समुदाय फातिमिद वंश से आया है। ये 1970 से मस्जिद का जीर्णोद्धार कर उसका रखरखाव कर आ रहे हैं। पीएम काहिरा में हेलियोपोलिस वॉर मेमोरियल भी जाएँगे।”

हेलियोपोलिस वार मेमोरियल

पीएम मोदी 25 जून 2023 को भारत लौटने से पहले काहिरा में हेलियोपोलिस कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव सीमेटरी (पोर्ट ट्वेफिक) पर जाएँगे। यह सीमेटरी उन 4,000 भारतीय जवानों की याद में बनाया गया है, जिन्होंने पहले विश्व युद्ध के दौरान मिस्र और फिलिस्तीन में मित्र देशों की सेनाओं की तरफ से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे। पीएम मोदी इन शहीद जवानों की समाधियों पर जाकर श्रद्धांजलि देंगे।

यह पहला मौका नहीं है जब प्रधानमंत्री प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में वीरगति को प्राप्त होने वाले भारतीय जवानों को विदेश में जाकर याद कर रहे हैं। साल 2015 में उन्होंने फ्रांस दौरे पर लिल्ले में न्यूवे-चैपल वॉर मेमोरियल जाकर हजारों वीरगति प्राप्त भारतीय जवानों को श्रद्धांजलि दी थी। पिछले साल विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी मिस्र दौरे के दौरान पोर्ट ट्वेफिक जाकर जवानों को नमन किया था।

बताते चलें कि 1914 से 1919 से चले प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन ने 11 लाख भारतीय जवानों को लड़ने के लिए भेजा था। इनमें से 74,000 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए थे। इन भारतीय जवानों को फ्रांस, ग्रीस, उत्तरी अफ्रिका, मिस्र, फिलिस्तीन और ईराक में दफना दिया गया था। इसके अलावा 70,000 भारतीय जवान अपाहिज होकर वापस लौटे थे।

इस युद्ध में भारतीय जवानों को 9,200 से अधिक वीरता पुरस्कार मिले थे, जिनमें ब्रिटिश सेना का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार विक्टोरिया क्रॉस भी शामिल थे। इस युद्ध ने उत्कृष्ट पराक्रम दिखाने के लिए 11 भारतीयों को विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था। इन जवानों को ब्रिटिश सेना की तरफ से महज 15 रुपए महीना वेतन मिलता था।

बोहरा समुदाय का अल-हकीम मस्जिद

राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी के निमंत्रण पर मिस्र की राजकीय यात्रा पर जा रहे पीएम मोदी अल-हकीम मस्जिद जाएँगे। काहिरा स्थित इस ऐतिहासिक मस्जिद का नाम 16वें फातिमिद खलीफा अल-हकीम (985-1021) के नाम पर रखा गया है। मस्जिद का निर्माण मूल रूप से अल-हकीम के पिता खलीफा अल-अजीज ने 10वीं शताब्दी के अंत में शुरू कराया था, जिसे 1013 में पूरा किया गया था।

काहिरा के बीचों बीच स्थित अल-हकीम मस्जिद शहर की दूसरी सबसे बड़ी और चौथी सबसे पुरानी मस्जिद है। 13,560 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैली इस मस्जिद में चार बड़े हॉल हैं। जहाँ नमाज अता की जाती है, वह सबसे बड़ा हॉल है। यह करीब 4,000 वर्ग मीटर जितना बड़ा है। प्रधानमंत्री मोदी अल-हकीम मस्जिद में लगभग आधा घंटा बिताएँगे और बोहरा समुदाय के लोगों से मुलाकात करेंगे।

दरअसल, इस्लाम मानने वाले 72 फिरकों में बँटे हैं। इनमें से एक बोहरा समुदाय भी है। दाऊदी बोहरा समुदाय शिया मुस्लिम के सदस्य हैं। ये लोग फातिमी इस्लामी तैय्यबी विचारधारा को मानते हैं। बोहरा मुस्लिम की शुरुआत मिस्र में हुई और फिर यमन होते हुए 11वीं सदी में इस समुदाय के कुछ लोग भारत आकर बस गए। गुजरात और महाराष्ट्र में ज्यादा है। बाद में बोहरा मुस्लिमों ने अपने संप्रदाय की गद्दी को यमन से गुजरात के पाटन जिले में मौजूद सिद्धपुर में स्थानांतरित कर दिया।

इस संप्रदाय का एक धर्मगुरु होता है। पिछले करीब 400 सालों से भारत से ही इसका धर्मगुरु चुना जा रहा है। वर्तमान में इस समुदाय के 53वें धर्मगुरु डॉ. सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन हैं। दाऊदी बोहरा समुदाय मुख्य रूप से इमामों के प्रति अपना अकीदा रखता है। दाऊदी बोहरा समुदाय के 21वें और अंतिम इमाम तैयब अबुल कासिम थे। इनके बाद 1132 से आध्यात्मिक गुरुओं की परंपरा शुरू हो गई, जो दाई अल मुतलक सैयदना कहलाते हैं।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

छत्तीसगढ़ में ‘सरकारी चावल’ से चल रहा ईसाई मिशनरियों का मतांतरण कारोबार, ₹100 करोड़ तक कर रहे हैं सालाना उगाही: सरकार सख्त

छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा प्रभावित जशपुर जिला है, जहाँ ईसाई आबादी तेजी से बढ़ रही है। जशपुर में 2011 में ईसाई आबादी 1.89 लाख यानी कि कुल 22.5% आबादी ने स्वयं को ईसाई बताया था।

ऑस्ट्रेलिया में बनने जा रहा है दुनिया का सबसे ऊँचा श्रीराम मंदिर, कैंपस में अयोध्यापुरी और सनातन विश्वविद्यालय भी: PM मोदी कर सकते हैं...

ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में बन रहे भगवान राम के मंदिर में अयोध्यापुरी और सनातन विश्वविद्यालय भी मौजूद हैं। यह विश्व का सबसे ऊँचा मंदिर होगा।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -