हाल के कुछ दिनों से पड़ोसी देश म्यांमार से बड़ी संख्या में शरणार्थी भारत के पूर्वोत्तर राज्य मिज़ोरम में घुस रहे हैं। इन शरणार्थियों में बड़ी संख्या में म्यांमार के फौजियों की भी है। ये सभी लोग म्यांमार की सेना और विद्रोही समूहों के बीच जारी लड़ाई से बच कर भागे हैं। बीते एक माह से यह लड़ाई और भीषण हो गई है।
मिजोरम में बड़ी संख्या में शरणार्थी आने के कारण अब यह प्रश्न उठ रहा है कि क्या भारत एक और शरणार्थी संकट के मुहाने पर खड़ा है? म्यांमार में लड़ रहे विद्रोहियों के हाथ में देश का बड़ा हिस्सा सैन्य शासन से निकलकर उनके हाथों में आ चुका है। देश के राष्ट्रपति भी चिंता जता चुके हैं कि अगर समय रहते इन्हें नहीं रोका गया तो देश टूट सकता है।
क्यों म्यांमार में लड़ रहे हैं सेना और सशस्त्र समूह?
दरअसल, म्यांमार में वर्ष 2021 में सेना ने लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार का तख्तापलट कर दिया था। म्यांमार की सेना (Junta) तब से देश में शासन चला रही है। म्यांमार की सेना ने आंग सान सू की अगुवाई वाली सरकार को सत्ता से बाहर करके उस पर नियंत्रण कर लिया था।
म्यांमार में वैसे भी सैन्य शासन का पुराना इतिहास रहा है। साल 1962 से लेकर साल 2011 तक वहाँ सैन्य शासन में रहा है। म्यांमार में लोकतांत्रिक सुधारों की माँग आंग सान सू की लंबे समय से करती आ रही हैं। साल 2011 में उन्होंने सफलता भी पाई थी और देश में पहली बार आम चुनाव हुए थे।
चुनावों में आंग सान सू की पार्टी को जोरदार जीत मिली थी। इसके पश्चात 2010 और 2020 में भी उनकी पार्टी को जीत मिली थी। लोकतांत्रिक सरकार के कारण देश पर सेना की पकड़ ढीली होती जा रही है। इसके बाद सेना ने साल 2021 में सैन्य तख्तापलट करके लोकतांत्रिक सुधारों को रोक दिया। तब से वहाँ सैन्य शासन है।
जहाँ पहले सेना के शासन के विरुद्ध कोई बड़े आन्दोलन नहीं होते थे, वहीं 2021 के तख्तापलट के बाद स्थितियाँ बदल गई हैं। 2021 के तख्तापलट के बाद लोकतंत्र समर्थकों के एक धड़े ने सेना के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह कर दिया। हालाँकि, उन्हें शुरुआत में कोई विशेष सफलता नहीं मिली, लेकिन अब म्यांमार के बड़े हिस्सों को कब्जों में ले रहे हैं।
म्यांमार की सेना के खिलाफ चल रहे इस अभियान को लड़ाई में शामिल समूहों ने नेशनल यूनिटी गवर्मेंट का नाम दिया है। इसमें पीपल्स डिफेन्स फ़ोर्स, चिनलैंड डिफेंस फ़ोर्स, बर्मा कम्युनिस्ट पार्टी समेत अन्य कई लड़ाके समूह शामिल हैं। इनकी माँग है कि देश में सेना को सत्ता समेत अन्य कामकाज से बाहर किया जाए।
अब यह शरणार्थी संकट क्यों खड़ा हुआ?
वर्तमान शरणार्थी संकट के पीछे सेना और इन विरोधी समूहों की लड़ाई है। भारत की 1,600 किलोमीटर से अधिक लंबी सीमा म्यांमार से लगती है। वर्ष 2021 के तख्तापलट के बाद लगातार छोटी-छोटी संख्या में शरणार्थी भारत आ रहे थे।
अक्टूबर माह में म्यांमार में सैन्य शासन के विरुद्ध लड़ने वाले तीन सशस्त्र समूहों- तांग नेशनल लिबरेशन आर्मी, अराकान आर्मी और म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स आर्मी ने ‘ऑपरेशन 1027’ नाम से एक अभियान चालू किया था। इन्होंने अपने गठबंधन का नाम ‘थ्री ब्रदरहुड अलायन्स’ रखा है।
तब से लगातार म्यांमार-चीन सीमा पर स्थित शान राज्य और भारत सीमा पर स्थित चिन (Chin) राज्य में विद्रोही समूहों ने बड़े हिस्सों पर कब्जा कर लिया है। इन्होंने सेना को भी बड़ा नुकसान पहुँचाया है। म्यांमार के इन विद्रोही समूहों ने शान राज्य में सेना की सैकड़ों पोस्ट पर हमला करके इन पर कब्ज़ा कर लिया है।
अलायन्स का कहना है कि उसने अब तक 150 मिलिट्री पोस्ट और 6 शहरों पर अपना कब्जा जमा लिया है। म्यांमार के सैनिक यहाँ से भाग रहे हैं। भाग ना पाने वाले सैनिक या तो मारे जा रहे हैं या फिर आत्मसमर्पण कर रहे हैं। एक जानकारी के अनुसार, अब तक 400 से अधिक सैनिक विद्रोही समूहों के समक्ष आत्मसमर्पण कर चुके हैं।
चिन राज्य में इन विद्रोही समूहों ने हाल ही में हमला करके 2 सैन्य पोस्ट पर कब्जा कर लिया था। इसके डर से बड़ी संख्या में सैनिक और आम नागरिक भाग कर भारत में घुस रहे हैं। इन्हें अभी शरणार्थी कैम्पों में रखा गया है। यहाँ इन्हें खाना-पानी दिया जा रहा है।
म्यांमार के कम-से-कम 26,000 लोग भारत में शरण माँग रहे हैं। 2021 में भी बड़ी संख्या में लोग म्यांमार से भागकर भारत आए थे, लेकिन स्थितियाँ थोड़ी सुधरने पर उन्हें वापस भेज दिया गया था। बड़ी संख्या में म्यांमार के नागरिकों का भारत में इलाज चल रहा है। यदि यह समस्या जल्द नहीं सुलझती है तो शरणार्थियों की संख्या बढ़ सकती है।