कई विकासशील देशों में गरीबी, बेरोजगारी और कर्ज तले डूबे लोग अपनी किडनी बेचने को मजबूर हो जाते हैं। कुछ लोग मजबूरी में अपना गुर्दा (Kidney) बेच देते हैं तो कुछ लोगों को धोखे में रखकर उनकी किडनी निकाल ली जाती है। इन देशों में मानव अंगों के कारोबार के लिए कई रैकेट काम करते हैं। मानव अंगो के तस्कर पकड़े भी जाते हैं लेकिन फिर भी यह अवैध कारोबार दिन ब दिन फलता फूलता जा रहा है। इस लेख में हम दक्षिण एशियाई देशों में अवैध अंग बाजारों और उनकी वजह से बने ‘किडनी गाँवों’की चर्चा करेंगे।
भारत और चीन जैसे बड़े देशों के बीच स्थित नेपाल के बागमती अंचल के काभ्रेपलाँचोक इलाका किडनी वैली के नाम से मशहूर है। पिछले 20 सालों में इलाके के सैकड़ों लोग अपना गुर्दा बेचने के लिए या तो स्वेच्छा से भारत आए हैं या उनको धोखे से लाया गया है। कुछ लोगों को झूठा लालच देकर शिकार बनाया गया है। एक अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2009 में कावरे (काभ्रेपलाँचोक) के लगभग 300 लोगों की किडनी अवैध रूप से निकाल ली गई थी।
पीबीएस की एक रिपोर्ट में नेपाल के मानवाधिकार आयोग के हवाले से बताया गया है कि काभ्रेपलाँचोक के होकसे गाँव में 150 से ज्यादा लोगों ने अपनी किडनी बेच दी है। अंग तस्करों ने लोगों की गरीबी और अशिक्षा का फायदा उठाकर उन्हें अपना शिकार बनाया।
पीबीएस की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, किडनी वैली के ही दूसरे जामदी गाँव (Jamdi village) के हर दूसरे घर में कम से कम एक व्यक्ति ऐसा जरूर मिल जाएगा जिसने पैसों के लिए अपनी किडनी बेच दी हो। होकसे या जामदी जैसे गाँव में गरीबी बहुत ज्यादा है। जिसकी वजह से यहाँ के लोग जीवन यापन के लिए अपनी एक किडनी बेच देते हैं। 2015 में प्रकाशित के स्टडी के मुताबिक होकसे गाँव के 300 लोगों ने अपनी किडनी मात्र $200 USD (आज के हिसाब से लगभग 16 हजार रुपए) में ही बेच दी। किडनी हासिल करने के लिए तस्कर यहाँ के भोले-भाले लोगों को गलत जानकारियाँ भी देते हैं। रिपोर्टों के अनुसार। तस्कर लोगों को लालच देते हुए कहते हैं कि किडनी निकालने के बाद उसकी जगह दूसरी किडनी उग आएगी।
कुछ लोगों को बताया जाता है कि उनकी एक किडनी किसी काम की नहीं है। गाँव के मासूम लोग उनकी बातों में फँस जाते हैं और कुछ रुपयों के लालच में अपना बहमूल्य अंग उन तस्करों को दे देते हैं। कुछ मामलों में गैरजरूरी ऑपरेशन के बहाने लोगों को बिना जानकारी के उनका अंग निकाल लिया जाता है।
आपको बता दें कि प्रत्यारोपण के लिए मानव अंगों को बेचना नेपाल में अपराध है। इसके अलावा मानव अंगों को निकाला जाना और उन्हें एक से दूसरे स्थान पर ले जाया जाना भी गैर कानूनी है। गरीबी और अंग तस्करों के अलावा वर्ष 2015 में आए भयानक भूकंप ने भी लोगों को अपना गुर्दा बेचने के लिए मजबूर किया।
नेपाल के जनअधिकार संरक्षण मंच (Forum for Protection of People’s Rights) की एक रिपोर्ट के अनुसार सच्चाई सामने आने के बाद भी पीड़ीत केस फाइल करने को तैयार नहीं थे। दरअसल नेपाली कानून के मुताबिक अंगो को बेचना भी कानूनन अपराध की श्रेणी में आता है अतः जाँच और पकड़े जाने के भय से कई पीड़ीत अपना गाँव छोड़कर फरार हो गए और अपने साथ हुई ज्यादति क छिपाने लगे।
अफगानिस्तान का किडनी वैली
फिलहाल नए किडनी वैली के रूप में अफगानिस्तान के गाँवों को देखा जा रहा है। तालिबानी शासन आने (2021) के बाद अफगानिस्तान में लोगों का बुरा हाल है। देश में महंगाई चरम पर है। लोगों के पास रोजगार नहीं हैं और लोग खाने को तरस रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की अक्टूबर 2022 की रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान में आवश्यक वस्तुओं की कीमत में 35% तक की वृद्धि हो गई है। महँगाई बढ़ने की वजह से गरीब परिवारों को जीवित रहने के लिए अधिक कर्ज लेने या संपत्ति बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
‘द ऑफिस ऑफ कोऑर्डिनेशन ऑफ ह्यूमेरिटेरियन अफेयर्स (OCHA)’ ने पिछले साल नवंबर में एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें दिखाया गया था कि अफगानिस्तान में गरीबी दर जो 2020 में 47% थी 2021 में बढ़कर 70% और 2022 में 97% तक पहुँच गई। परिणामस्वरूप 97% अफगानिस्तानी गरीबी रेखा से नीचे रहने को मजबूर हैं। ऐसे में अफगानिस्तान के लोगों को परिवार चलाने के लिए अपनी किडनी बेचना एक जरिया दिखा।
अफगानिस्तान के हेरात शहर से सटे शेनशायबा गाँव में 90 फीसदी पुरुष अपनी एक किडनी तस्कारों को बेच चुके हैं। इस तरह ये गाँव भी एक किडनी वाला बन गया है। फरवरी 2022 की फ्राँस 24 की रिपोर्ट में बताया गया है कि हेरात में दर्जनों लोगों ने पैसों के बदले अपनी किडनी बेच दी है।
हेरात में 5 लाख 75हजार बेरोजगार लोगों में से एक 32 वर्षीय नूरुद्दीन ने एएफपी से अपना दर्द साझा किया। उन्होंने कहा, “मैं किडनी बेचना नहीं चाहता था लेकिन मेरे लिए कोई दूसरा विकल्प नहीं था।” नूरुद्दीन अपने पेट के बाईं ओर ऑपरेशन से बने लंबे तिरछे निशान को दिखाते हुए कहा कि मैंने अपनी किडनी अपने बच्चों के लिए बेची।
भारत का किडनी बाजार
भारत में 1980 और 1990 के दशक में चेन्नई अंग व्यापार का केंद्र था। विलीवक्कम शहर के गुर्दा व्यापार की कहानी ने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का भी ध्यान आकर्षित किया। किडनी के अवैध कारोबार के लिए इस जगह को किडनीवक्कम जैसा नाम दिया गया। भारत में भले ही शरीर के अंगों की बिक्री गैरकानूनी हो लेकिन कानून में खामियों के कारण अवैध किडनी व्यापार जारी रहा। परोपकार की आड़ में गुर्दे की जमकर खरीद फरोख्त की गई।
कर्ज तले दबे गरीबों को अपनी किडनी खोने के दर्द से ज्यादा इस बात का संतोश था कि उनके परिवार पर से कर्ज का बोझ कम हो गया है। ऐसे गरीबों ने अपनी तरह के और लोगों को किडनी बेचने को प्रेरित किया जिसका फायदा शहर के दलालों और कुछ चिकित्सकों ने उठाया। चेन्नई में विल्लीवक्कम, तमिलनाडु के पल्लीपलायम और कुमारपलायम, बंगलौर के करीब मगाडी जैसे स्थान धीरे-धीरे किडनी बेचने का केंद्र बनने लगे। साल 1980 के अंत तक पल्लीपलायम और कुमारपलायम वर्चुअल किडनी फार्म बन गए थे।
तमिलनाडु के चेन्नई स्थित विलीवक्कम के भारती नगर की झुग्गी में 1987 से 1995 तक गुर्दा व्यापार चला। इस झुग्गी को किडनी नगर या किडनी-वक्कम के नाम से जाना जाता था। यहाँ किडनी की तलाश में विदेशों से भी लोग आते थे। कथित तौर पर कुछ महिलाओं ने पैसों के लिए किडनी बेची तो कई मामलों में दहेज के लिए पैसों का इंतजाम करने के लिए लोगों ने अपनी किडनी बेचने की बात सामने आई। इसके अलावा अपने पति को खो चुके महिलाओं को भी अपनी किडनी बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा।
जब आप सबसे हताश होते हैं…किडनी दलाल आते हैं
पत्रकार स्कॉट कार्नी ने अपनी किताब द रेड मार्केट में 2004 की सुनामी से बचे लोगों के लिए बने एक शरणार्थी शिविर के बारे में लिखा है। उन्होंने लिखा है कि कैंप की महिलाओं की मजबूरी और लोगों की हताशा का फायदा उठाकर अंग तस्करों ने थोड़े से पैसों के बदले उनकी किडनी निकाल ली। हालाँकि, तमिलनाडु ने अंग व्यापार केंद्र से अंग दान केंद्र बनने तक का लंबा सफर तय किया है। 2015 में, मन की बात कार्यक्रम के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राज्य में आए इस परिवर्तन की सराहना की थी।