Friday, November 15, 2024
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तीन बीघा कॉरिडोर: बांग्लादेशियों को आने-जाने के लिए भारत ने दी जमीन… लेकिन स्थानीय भारतीय मनाते हैं शहीद दिवस

स्थानीय भारतीय बिना किसी प्रतिबंध के ‘तीन बीघा कॉरिडोर’ के माध्यम से बांग्लादेशी लोगों के आवागमन को लेकर संतुष्ट नहीं। भारतीयों द्वारा हर साल 26 जून को तीन बीघा आंदोलन में मारे गए आंदोलनकारियों की याद में शहीद दिवस मनाया जाता है।

‘तीन बीघा गलियारा या कॉरिडोर’, सुनने में भले ही जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा ही लगे लेकिन भारत और बांग्लादेश के संबंधों में इसका बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान है। यह गलियारा (कॉरिडोर) दो पड़ोसी देशों के बीच उस सीमाई सामंजस्य की कहानी कहता है, जिसके लिए सालों तक दोनों ही देशों की सरकारों के बीच बैठकें हुईं, समझौते हुए और उसके बाद कहीं अंतरराष्ट्रीय सीमा के उलझे हुए दाँव-पेंच सुलझ पाए।

26 जून 1992, यह वही तारीख थी जब भारत ने बांग्लादेश के लोगों को सहूलियत देने और कई सालों से चले आ रहे सीमा संकट को समाप्त करने की पहल की। इसी दिन भारत ने बांग्लादेश को 178 मीटर लंबा और 85 मीटर चौड़ा भूखंड 99 सालों की लीज पर दे दिया था, जिससे बांग्लादेश के नागरिक बिना किसी प्रशासनिक समस्या के अपने देश में आवागमन कर सकें। लेकिन यह ‘तीन बीघा गलियारा या कॉरिडोर’ है क्या और भारत द्वारा बांग्लादेश को इसे लीज पर देने की आवश्यकता ही क्यों पड़ी? क्या है इस छोटे से भूखंड का इतिहास? आगे ऐसे ही कुछ प्रश्नों के उत्तर ढूँढते हैं।

तीन बीघा गलियारे के अस्तित्व में आने की यात्रा

यह तब शुरू हुआ, जब भारत का विभाजन हुआ। भारत और पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) की सीमा का निर्धारण रैडक्लिफ अवॉर्ड (सर सिरिल रैडक्लिफ) के द्वारा किया गया। इसके तहत दोनों देशों के बीच लगभग 4,096 किलोमीटर की सीमा का निर्धारण हुआ। हालाँकि सीमा निर्धारण के बाद भी विवाद की स्थिति बनी रही। दोनों ही देशों के बीच कई ऐसे क्षेत्र थे, जो एक देश में स्थित थे लेकिन उन तक पहुँचने के लिए दूसरे देश के प्रशासनिक क्षेत्र से होकर जाना पड़ता था। इसके कारण दोनों ही देशों के नागरिकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा।

इसे देखते हुए 16 मई 1974 को भारत और बांग्लादेश (तब बांग्लादेश, पाकिस्तान से आजाद हो चुका था और एक नया देश बन चुका था) के बीच एक समझौता हुआ। इस समझौते को ‘लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट’ कहा गया। इस समझौते के तहत यह तय हुआ कि भारत आधा बेरुबाड़ी संघ अपने पास रखेगा और बदले में बांग्लादेश को दहग्राम-अंगरपोटा का अधिकार क्षेत्र प्राप्त हुआ। यही वह समझौता था, जब पहली बार ‘तीन बीघा गलियारे की अवधारणा सामने आई। लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट में यह सुनिश्चित किया गया कि भारत, बांग्लादेश को तीन बीघा जमीन भी देगा, जिससे बांग्लादेश के निवासी सरलता से आवागमन कर सकें। हालाँकि तब संवैधानिक सीमाओं के चलते ‘तीन बीघा गलियारा’ अस्तित्व में नहीं आ सका।

फोटो सोर्स : coochbehar.nic.in

इसके बाद 1982 में एक बार फिर इसके लिए प्रयास किया गया लेकिन तब भी कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका। हालाँकि दोनों देशों की सरकारों के प्रयास के बाद अंततः 26 जून 1992 को बांग्लादेश के लोगों के आवागमन के लिए ‘तीन बीघा गलियारा’ प्रतिदिन 6 घंटे के लिए खोला गया। 1996 में 6 घंटे के इस समय को बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया गया। हालाँकि क्षेत्र पर पूरा नियंत्रण भारत का ही बना रहा।

‘तीन बीघा गलियारा या कॉरिडोर’ को लेकर सबसे बड़ा समझौता सितंबर 2011 में ढाका में हुआ। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के बीच एक समझौता संपन्न हुआ। इस समझौते के तहत यह निर्णय लिया गया कि भारत के द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र में पड़ने वाला 178 x 85 वर्ग मीटर का भूखंड बांग्लादेश को 99 सालों की लीज पर दिया जाता है। अंततः दोनों देशों के बीच इस समझौते के बाद ‘तीन बीघा गलियारा’ अस्तित्व में आया।

2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता में आने के बाद भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा पर स्थित एन्क्लेव्स के हस्तांतरण की प्रक्रिया को तेजी से पूरा करने की प्रतिबद्धता जाहिर की गई। इसके लिए जून 2015 में 100वाँ संविधान संशोधन किया गया और इसके तहत बांग्लादेश को भारत की जमीन पर स्थित 111 एन्क्लेव्स हस्तांतरित कर दिए गए। साथ ही बांग्लादेश के अधिकार क्षेत्र में स्थित 51 बांग्लादेशी एन्क्लेव्स भारत को प्राप्त हुए।

एन्क्लेव्स को समझने के लिए: भारत की जमीन में बांग्लादेश का टुकड़ा, उसी बांग्लादेशी टुकड़े के अंदर भारत की जमीन (मैप साभार: जिन थॉर्प, वॉशिंगटन पोस्ट)

दोनों देशों के बीच सीमाओं के स्पष्ट निर्धारण के क्षेत्र में यह सबसे बड़ा कदम माना गया। हालाँकि इस संविधान संशोधन के माध्यम से एन्क्लेव्स के हस्तांतरण के बाद भी दहग्राम-अंगरपोटा एन्क्लेव अभी भी उसी स्थिति में है और ‘तीन बीघा गलियारा’ ही वह जमीन का एक भाग है, जो बांग्लादेश को अपने इन एन्क्लेव्स से जोड़ता है।

भौगोलिक स्थिति :

तीन बीघा भारत में पश्चिम बंगाल राज्य के कूचबिहार जिले के मेखलीगंज ब्लॉक के दक्षिण-पूर्व में स्थित भूमि की एक लंबी पट्टी है। भौगोलिक रूप से यह भूभाग फुलकदबरी ग्राम पंचायत (उत्तर में) और कुचलीबाड़ी ग्राम पंचायत (दक्षिण में) [दोनों भारत से संबंधित हैं] और दहग्राम (पश्चिम में) और पनबारी मौजा (पूर्व में) [दोनों बांग्लादेश से संबंधित हैं] से घिरा हुआ है।

फोटो सोर्स : coochbehar.nic.in

जमीन की तीन बीघा पट्टी, मेखलीगंज के 10 किमी दक्षिण पूर्व में है। यह रणनीतिक रूप से पश्चिम में दहग्राम और अंगरपोटा के बांग्लादेश परिक्षेत्रों और पूर्व में बांग्लादेश के पनबारी मौजा के बीच स्थित है। दोनों एन्क्लेव बांग्लादेश के पटग्राम पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।  

तीन बीघा गलियारे पर आंदोलन

हालाँकि क्षेत्र के भारतीय लोग बिना किसी प्रतिबंध के ‘तीन बीघा कॉरिडोर’ के माध्यम से बांग्लादेशी लोगों के आवागमन को लेकर संतुष्ट नहीं है। विशेष तौर पर कुचलीबाड़ी क्षेत्र में रहने वाले लोगों को तीन बीघा गलियारे से बांग्लादेशी लोगों के आवागमन के दौरान अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। भारतीयों द्वारा हर साल 26 जून को तीन बीघा आंदोलन में मारे गए दो आंदोलनकारियों की याद में शहीद दिवस मनाया जाता है।

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ओम द्विवेदी
ओम द्विवेदी
Writer. Part time poet and photographer.

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