Sunday, November 17, 2024
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फैक्ट चेक’ की आड़ लेकर भारत में ‘प्रोपेगेंडा’ फैलाने की तैयारी कर रहा अमेरिका, 1.67 करोड़ रुपए ‘फूँक’ तैयार कर रहा ‘सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स’ की फौज

यूएस स्टेट डिपार्टमेंट पूरी दुनिया में जो डर्टी ट्रिक अपनाता रहा है, वो अब तक भारत में करीब-करीब फेल ही रहा है। हालाँकि इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि अमेरिका ने भारत में ऐसी कोशिशें न की हो, लेकिन अब वो अपनी कोशिशों को नेक्स्ट लेवल पर ले जाने की तैयारी कर रहा है।

अमेरिकी विदेश विभाग के पब्लिक डिप्लोमेसी सेक्शन (पीडीएस) ने ‘मीडिया के प्रति जागरूक युवाओं को सशक्त बनाने’ के अपने अभियान के तहत भारत में फैक्ट चेकर्स की भर्ती के लिए 2,00,000 डॉलर (लगभग 1.67 करोड़ रुपए) की घोषणा की है। इस योजना के माध्यम से अमेरिकी सरकार ‘ऑनलाइन मैनिपुलेशन’, बाहरी ताकतों के असर से निटने, डिजिटल माध्यमों की सुरक्षा और क्षेत्रीय सुरक्षा को मजबूत करने का दावा करता है। यूएस स्टेट डिपार्टमेंट इस साल 1 सितंबर से भारत के पाँच शहरों कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई, मुंबई और दिल्ली में इस काम को अंजाम देने वाला है।

भारत के अंदर अपने नरेटिव को बढ़ावा देने के लिए कथित ‘फैक्ट चेकर्स’ की फौज को तैयार करने की योजना को चतुराई से ‘डिजिटल लिटरेसी’ का नाम दे रहा है, लेकिन इनका काम होगा भारत में अमेरिकी नरेटिव को बढ़ावा देना। यूएस स्टेट डिपार्टमेंट इस बारे में अपनी मंशा और अपना एजेंडा दोनों ही साफ कर चुका है।

यूएस स्टेट डिपार्टमेंट की तरफ से ग्रांट का प्रपोजल

यूएस स्टेट डिपार्टमेंट ने इस काम के पीछे की वजह बताते हुए कहा, “भारत में युवा आबादी के बीच सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल होता है। हाल ही में भारतीय, यूरोपीय और अमेरिकी थिंक टैंक्स ने अपने रिसर्च में पाया है कि भारत में ‘जोड़-तोड़’ वाली सामग्री यानि एडिटेड आईटम्स सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ा रही हैं और संस्थागत विश्वास को खत्म कर रही हैं। इसकी वजह से भारत-अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों में तनाव पैदा हो रहा है, जिसके चलते भारत-अमेरिका के बीच सहयोग के प्रयासों और कूटनीतिक संबंधों के लिए खतरा पैदा हो रहा है।”

वैसे, ये भी बता दें कि भारत में अमेरिकी दूतावास और काउंसुलेट पहले से ही ‘फेक न्यूज’ से निपटने के नाम पर ‘लर्निंग टू डिस्कर्न (L2D)’ जैसे ट्रेनिंग प्रोग्राम चला रहे हैं।

फैक्ट चेक की आड़ में अमेरिकी असर को बढ़ाना

ऑपइंडिया ने पाया है कि यूएस स्टेट डिपार्टमेंट ‘मीडिया सेवी युवाओं के सशक्तिकरण’ प्रोजेक्ट के नाम पर 160 युवाओं को यूथ मास्टर ट्रेनर (YMT) के तौर पर ट्रेनिंग देने की तैयारी कर रहा है, जिसके लिए 320 सत्र आयोजित होंगे और वो फिर आगे इन्फ्लूएंसर के तौर पर 32000 लोगों को प्रभावित करेंगे। इनमें से 60 लोगों को आगे की ट्रेनिंग के लिए चुना जाएगा, जिनके टारगेट पर 36 हजार लोग होंगे। ये सभी लोग भारत के अंदर अमेरिका के पक्ष में माहौल बनाने के लिए तैयार किए जाएँगे, ताकि भारत के अंदर अमेरिका को लेकर निगेटिव ‘फीलिंग्स’ को खत्म किया जा सके।

साफ है कि अमेरिकी प्रोजेक्ट का मकसद भारतीय युवाओं का ब्रेनवॉश कर अमेरिकी तरीके से सोचने और अमेरिका के पक्ष में सोचने के लिए तैयार किया जाएगा। भले ही अमेरिका इसे कोई भी नाम दे, लेकिन हकीकत यही रहेगी कि ये कथित इन्फ्लूएंसर या फैक्ट चेकर अमेरिकी बोली बोलने के लिए तैयार किए जा रहे हैं। मकसद साफ है कि अगर कभी भारत और अमेरिका के बीच किसी तरह का तनाव भी हो, तो इन इन्फ्लूएंसर्स का इस्तेमाल कर भारत में भारत के ही खिलाफ माहौल तैयार करने की कोशिश की जाएगी। जैसा कि कई देशों में अमेरिका पहले से भी करता आया है। खासकर युद्ध ग्रसित देशों में, जहाँ स्थानीय लोगों को सरकारों के खिलाफ खड़ा कर बड़े-बड़े आंदोलन चलाए जाते हैं और सरकारों को अमेरिकी इशारे पर गिराया तक जाता है।

इस प्रोजेक्ट की खास बातें भी समझ लीजिए

भारत में इस तरह की ट्रेनिंग देने वाले किसी एक संगठन को चुना जाएगा, जिसे 12-18 महीने में अमेरिकी सोच को बढ़ावा देने में तैयार रहने वाले इन्फ्लूएंसर्स की फौज तैयार करनी होगी और उसे 1.50 लाख डॉलर से लेकर 2 लाख डॉलर तक की रकम दी जाएगी। इस काम के लिए इन 5 तरह से संगठनों में से कोई एक चुना जाएगा

1-एनजीओ, 2-सिविल सोसायटी, 3-थिंक टैंक, 4-सार्वजनिक या निजी शैक्षणिक संस्थान, और 5- कोई भी इंटरनेशनल संस्था या सरकारी संस्थान

क्या काम करना होगा?

जिस भी संस्था या उपरोक्त लिस्ट में से किसी को इस काम के लिए चुना जाएगा, उसे अपने टारगेटेड ग्रुप के लिए एक ‘ट्रेनिंग बुक’ तैयार करनी होगी। इस ट्रेनिंग बुक को हिंदू, तमिल, तेलुगू, मराठी और बंगाली भाषा में ट्रांसलेट भी किया जाएगा।

इसके लिए हर शहर से 32 ग्रेजुएट युवकों-युवतियों को ‘लर्निंग टू डिस्कर्न (L2D) के लिए चुना जाएगा, ताकि उन्हें ‘यंग मास्टर ट्रेनर’ बनाया जा सके और फिर उन्हें बतौर ट्रेनर काम करने के लिए तैयार होने के लिए भी एक ट्रेनिंग दी जाएगी, जिसे ट्रेनर्स के लिए ट्रेनिंग (ToT) कार्यक्रम कहा जाएगा।

इस तरह से 320 युवकों-युवतियों को स्कूलों, एनजीओ, कॉलेजो और यूनिवर्सिटीज में जाकर कम से कम 32 हजार युवाओं तक अपने विचार पहुँचाने होंगे, यानी इन्फ्लूएंस करना होगा, उनके साथ संपर्क बनाना होगा। इसके लिए कई शहरों में ‘मीडिया लिटरेसी’ प्रोग्राम का आयोजन कराया जाएगा।

कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई, मुंबई और दिल्ली जैसे पांच शहरों से 12 लोगों को चुना जाएगा, जिन्हें और भी ज्यादा अच्छे तरीके से ट्रेन्ड करने के लिए कम से कम 1 लाख फॉलोवर्स वाले सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर्स के साथ काम करने का मौका मिलेगा।

अमेरिकी विदेश विभाग ने अपने बयान में कहा है कि “ट्रेंनिंग करने वाले युवा भारतीय समाज में मीडिया लिटरेशी और ‘क्रिटिकल थिंकिंग’ को बढ़ावा देने के लिए सोशल मीडिया अभियान चलाएँगे।” इसे इस बात से समझा जा सकता है कि वो अमेरिकी नजरिए से सही मानी जाने वाली चीजों को लेकर भारतीय लोगों का नजरिया बदलने का काम करेंगे। इसी प्रोजेक्ट के तहत 36 हजार युवाओं को एक खास ‘कम्युनिटी’ के तौर पर तैयार किया जाएगा। (अब कोई बात 36 हजार लोग पूरे देश से एक साथ कहें, तो सोचिए कि उस बात का कितना असर पहुँचेगा।)

यूएस स्टेट डिपार्टमेंट ने आगे कहा, “यूथ ट्रेनिंग बुक में अमेरिकी शिक्षा और भारत में ‘अमेरिकी स्पेस’ को लेकर एक खास पाठ होगा। जो अलग-अलग सोच रखने वाले लोगों तक पहुँचाई जाएगी।” खास बात ये है कि यूएस स्टेट डिपार्टमेंट कह रहा है कि वो पक्षपात वाली राजनीतिक गतिविधियों, खास धार्मिक गतिविधियों या खास कानूनों के पक्ष में माहौल बनाने से जुड़ी बातों का समर्थन नहीं करता है। (लेकिन सोचिए, कल को अमेरिका भारत में एनआरसी या सीएए जैसे कानूनों का विरोध करने के लिए और उसके विरोध में हवा बनाने के लिए इन ‘पेड’ युवाओं को काम पर चला दे तो?)”

‘गलत जानकारी’ को रोकने के नाम पर दुष्प्रचार की रणनीति

इस प्रोजेक्ट के लिए जिस ग्रुप, संस्था का चुनाव किया जाएगा, उसे ‘मीडिया प्रेमी युवाओं को सशक्त बनाने’ के लिए तैयार किए जाने वाले युवाओं को लुभाने के लिए एक स्पेशल डिजिटल या ऑफलाइन तैयारी करनी होगी, ताकि वो इन युवाओं को अपनी ओर खींच सके। इससे जुड़ने वाले युवाओं को स्थानीय सरकारी एजेंसियों, निजी क्षेत्रों और एनजीओ से भी संबंध बनाकर चलने होंगे। यही नहीं, एक सोशल मीडिया प्रोजेक्ट भी बनाना होता, ताकि इस पूरे ‘काम’ पर निगरानी यानी नजर रखी जा सके। इस पूरे प्रोजेक्ट के बारे में समय-समय पर यूएस स्टेट डिपार्टमेंट के अनुदान अधिकारी (जो पैसे देगा), उसके प्रतिनिधि या अमेरिकी डायरेक्टर्स को ई-मेल, फोन, वीडियो कॉन्फ्रेंस कॉल या फिर निजी रूप से मिलकर रिपोर्ट करना होगा। यानी पूरी तरह से उनकी मनमर्जी के मुताबिक काम चल रहा है या नहीं, इसकी जानकारी समय-समय पर देनी होगी।

आकाश बनर्जी जैसे वामपंथी फेक न्यूज पेडलर को अमेरिकी दूतावास का निमंत्रण

गुरुवार (17 जुलाई) को भारत में अमेरिकी दूतावास ने भारतीय सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर्स और कंटेंट क्रिएटर्स को ‘एक्टिव सिटिजन’ के बारे में जानकारी देने के लिए आमंत्रित किया गया है, जिन्हें सामाजिक मुद्दों को लेकर सोशल मीडिया में ‘जागरुकता’ लाने की ट्रेनिंग दी जाएगी और इस ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए अमेरिकी दूतावास ने यूट्यूबर “देशभक्त” आकाश बनर्जी को चुना है, जिसे वामपंथी कूड़े को सर्कुलेट करने और बीजेपी को निशाना बनाने के लिए जाना जाता है।

पहली नजर में साफ है कि यूएस स्टेट डिपार्टमेंट की भारत के अंदर ‘मीडिया लिटरेसी’ नहीं, बल्कि भारत की अंदरुनी राजनीतिक परिदृष्य में हेरफेर की नीयत है, जो बिल्कुल भी अच्छी नहीं कही जा सकती।

बता दें कि मार्च माह की शुरुआत में ऑपइंडिया ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें अमेरिकी दूतावास ने महिला इतिहास को लेकर खास महीने में कथित जागरुकता फैलाने के लिए सायमा नाम की हिंदू विरोधी इस्लामिक कट्टरपंथी महिला को आमंत्रित किया था। हालाँकि लोगों ने सायमा के हिंदू-विरोधी और कट्टर इस्लामिक विचारों को लेकर अमेरिकी दूतावास को चेताया भी था, फिर भी वो सायमा को अपने सोशल मीडिया हैंडल के माध्यम से प्रमोट करने में बाज नहीं आया।

अपना नरेटिव आगे बढ़ाने के लिए ‘फैक्ट चेकर्स’ के साथ काम करता है अमेरिका

मई 2023 में ‘अमेरिका फर्स्ट लीगल’ (एएफएल) ने खुलासा किया कि कैसे यूएस स्टेट डिपार्टमेंट का ग्लोबल एंगेजमेंट सेंटर (जीईसी) निजी मीडिया आउटलेट्स के साथ मिलकर डीप स्टेट प्रोपेगेंडा को बढ़ावा दे रहा था। एएफएल ने सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम (एफओआईए) के तहत जीईसी के खिलाफ दस्तावेज हासिल किए। जिसमें खुलासा हुआ कि वैक्सीन के खिलाफ माहौल बनाने, चुनाव को प्रभावित करने और कोविड-19 की वैक्सीन को लेकर अमेरिकी लोगों को टारगेट किया गया और उनके ‘मन’ को बदला गया।

इस संगठन ने खुलासा किया कि यूएस स्टेट डिपार्टमेंट का ग्लोबल एंगेजमेंट सेंटर (जीईसी) ग्लोबल मीडिया नरेटिव को कंट्रोल करने के लिए इंटरनेशनल फैक्ट-चेकिंग नेटवर्क (आईएफसीएन) से जुड़े जॉर्ज सोरोस के पैसों पर पलने वाले ‘फैक्ट चेकर्स’ के साथ भी मिलकर काम करता है।

अमेरिका फर्स्ट लीगल ने बताया कि फैक्ट-चेकर, जो इस समय जीईसी के साथ काम कर रहे हैं, उन्हें ओमिडयार नेटवर्क, गूगल, फेसबुक और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन जैसी संस्थाओं से भी पैसे मिलते हैं। यही नहीं, अमेरिका फर्स्ट लीगल ने खुलासा किया है कि अमेरिका का ग्लोबर एंगेजमेंट सेंटर ट्यूनीशिया जैसे देशों में ठीक उसी तरह का प्रोपेगेंडा चला रहा है, जिसका जिक्र हम ऊपर कर चुके हैं।

अमेरिका फर्स्ट लीगल के अनुसार, ईमेल की जाँच से पता चला है कि आईएफसीएन मिस्र में अपने कार्यक्रमों के लिए और अधिक ‘पैसों’ करने के लिए यूएस स्टेट डिपार्टमेंट पर प्रेशर डाल रहा है। वैसे, बीते 15 सालों को देखें तो मिस्र राजनीतिक रूप से कितना अस्थिर रहा है, और उसमें अमेरिका का कितना हाथ हो सकता है, ये सारा खेल समझ में आ जाएगा। यही नहीं, अमेरिका फर्स्ट लीगल की टीम ने कुछ ऐसे ई-मेल भी हासिल किए हैं, जिससे साफ होता है कि यूएस स्टेट डिपार्टमेंट अपने जीईसी के माध्यम से ‘पैसे पाने वाले’ पत्रकारों को धमका रहा है कि वो जल्द से जल्द उसके नरेटिव के हिसाब से खबरों, कहानियों, सूचनाओं को प्रसारित करें, ताकि जिस काम के लिए उन्हें रखा गया है, वो आगे बढ़ाया जा सके।

यूएस स्टेट डिपार्टमेंट पूरी दुनिया में जो डर्टी ट्रिक अपनाता रहा है, वो अब तक भारत में करीब-करीब फेल ही रहा है। हालाँकि इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि अमेरिका ने भारत में ऐसी कोशिशें न की हो, लेकिन अब वो अपनी कोशिशों को नेक्स्ट लेवल पर ले जाने की तैयारी कर रहा है। ऐसे में न सिर्फ लोगों को, बल्कि भारत सरकार को भी सतर्क रहना होगा, क्योंकि ऐसे भाड़े के टट्टू ‘फैक्ट चेकर’ कब भारत के खिलाफ ही अमेरिकी इशारे पर आग उगलना शुरू कर दें, कुछ कहा नहीं जा सकता।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
Shravan Kumar Shukla (ePatrakaar) is a multimedia journalist with a strong affinity for digital media. With active involvement in journalism since 2010, Shravan Kumar Shukla has worked across various mediums including agencies, news channels, and print publications. Additionally, he also possesses knowledge of social media, which further enhances his ability to navigate the digital landscape. Ground reporting holds a special place in his heart, making it a preferred mode of work.

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