कर्नाटक में चल रहे बुर्का विवाद (Karnataka Hijab Row) के बीच इसके समर्थक बार-बार मजहबी मान्यताओं की दलील दे रहे हैं। इन्हीं मजहबी मान्यताओं की वजह से सऊदी अरब के एक स्कूल में बच्चियों को जलने के लिए छोड़ दिया गया था। कोई उन्हें बचाने के लिए आगे नहीं आया। किसी ने प्रयास किया भी तो मजहबी आधार पर पुलिस ने उसे रोक दिया। आखिर में 15 बच्ची जलकर मर गईं।
यह घटना 11 मार्च 2002 की है। मक्का के एक स्कूल में हुई इस त्रासदी ने सबको झकझोर दिया था। शहर के स्कूल में लगी आग में 15 छात्राएँ झुलस कर मर गईं। उन्हें बचाने का प्रयास तक नहीं किया गया, क्योंकि उन्होंने ‘उचित इस्लामी पोशाक’ नहीं पहना था। यानी उन्होंने अपना सिर नहीं ढका था और अबाया (बुर्का) नहीं पहना था। बता दें कि हिजाब सिर ढँकने के लिए होता है, जबकि बुर्का सर से लेकर पाँव तक।
‘हिजाब’ और ‘बुर्का’ न पहनने की वजह से सऊदी अरब की मजहबी पुलिस ने छात्राओं को धधकती आग से निकालने से इनकार कर दिया। इतना ही नहीं बचावकर्मियों को भी इससे रोक दिया। लड़कियों को बचाने आए लोगों को भी चेतावनी दी गई। उनसे कहा गया कि उनके संपर्क में जाना पाप है।
एक गवाह ने बताया था कि जब लड़कियों ने स्कूल से निकलने की कोशिश की तो मजहबी पुलिस ने उन्हें रोक दिया और उनकी पिटाई की। मृत लड़कियों में से एक के पिता ने बताया कि स्कूल के चौकीदार ने लड़कियों को बाहर निकालने के लिए गेट खोलने से भी इनकार कर दिया। इह्यूमन राइट्स वॉच के मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका डिवीजन के कार्यकारी निदेशक हैनी मेगाली ने कहा था, “इस्लामी ड्रेस कोड की अत्यधिक व्याख्याओं के कारण लड़कियों की अनावश्यक रूप से मृत्यु हो हुई।”
मालूम हो कि मक्का के इंटरमीडिएट स्कूल नंबर 31 (13 से 15 वर्ष की लड़कियों के लिए) में आग 11 मार्च, 2002 की सुबह लगी थी। आग लगने का कारण कुुछ रिपोर्टों में ऊपरी मंजिल पर पड़ी लावारिस सिरगेट बताया गया तो कुछ में दावा किया गया कि यह बिजली के शॉर्ट सर्किट के कारण हुई। इस त्रासदी में 15 लड़कियों की मौत हो गई और 50 से अधिक घायल हो गए। स्कूल में 800 से अधिक छात्राएँ थीं। जाँच में पाया गया कि स्कूल में न तो आग बुझाने के उपकरण थे और न ही अलार्म या आपातकालीन सीढ़ियाँ। इसके अलावा, खिड़कियाँ लोहे की ग्रिल से ढकी हुई थीं और उन्हें खोला नहीं जा सकता था। जिसकी वजह से भयंकर त्रासदी हुई।
उल्लेखनीय है कि सऊदी अरब में मजहबी पुलिस का व्यापक खौफ है। वे ड्रेस कोड को लागू करने के लिए सड़कों पर घूमते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि प्रार्थना (नमाज) समय पर की जाए। जो लोग उनके आदेशों का पालन करने से इनकार करते हैं उन्हें अक्सर पीटा जाता है और कभी-कभी जेल में भी डाल दिया जाता है।