चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को सत्ता से बाहर होने का डर है, इसलिए चीन ने अपने नागरिकों को जासूसी का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया है। यह प्रशिक्षण विदेशियों और जासूसों पर नजर रखने और उन्हें पकड़ने के लिए है। इस बारे में ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ पर प्रकाशित लेख में बताया गया है कि चीन दुनिया के सबसे बड़े जासूसी अभियानों में से एक को अंजाम दे रहा है। उसके इस अभियान का लक्ष्य अमेरिका और उसके सहयोगियों की रक्षा और आर्थिक जानकारी चुराना है।
चीन में हर विदेशी पर रखी जा रही नजर
दरअसल, चीन को लगता है कि उसके दुश्मन हर तरफ हैं। शिक्षण संस्थान हों या मल्टीनेशनल कंपनियाँ, वो हर किसी को शक की निगाह से देख रहा है। ऊपर से चीन में अगर आप विदेशी हैं, तो यकीन मानिए कि आपको देखने वाली हर नजर पारखी है। वो आप पर अच्छे से नजर रख रहे होते हैं, क्योंकि चीन ने अपने नागरिकों को पूरी तरह से जासूसों में बदल डाला है। जासूसी भी ऐसी वैसे स्वत: प्रेरित नहीं, बल्कि चीनी सरकार ने बाकायदा ट्रेनिंग दी है कि आम लोग किस तरह से विदेशी संस्थानों से जुड़े लोगों पर नजर रख सकते हैं।
शी जिनपिंग को सत्ता खिसकने का डर
इस लेख के मुताबिक, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग डरे हुए हैं। उन्हें विदेशी जासूसों से बहुत डर लग रहा है। वो इसीलिए देश के बाहर बहुत ही कम मौकों पर जा रहे हैं। खास बात ये है कि उन्होंने घरेलू परिस्थितियों में उलझे होने की वजह से जी-20 जैसे समूह के शिखर सम्मेलन तक में शामिल होने से मना कर दिया। उन्हें डर है कि चीजें अगर उनके कंट्रोल से बाहर गई, तो उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ेगा। यहाँ तक कि वो इंडोनेशिया में होने वाली आसियान की बैठक में भी नहीं जा रहे हैं।
दिल्ली में होने वाली जी-20 की बैठक में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की जगह वहाँ के प्रीमियर ली कांग (Li Qiang) हिस्सा लेंगे। चीन ने इस संबंध में भारत को जानकारी दे दी है।
किंडर गार्डन से लेकर यूनिवर्सिटी में ट्रेनिंग
चीन ने अपने नागरिकों चाहे वो यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले छात्र हों, या किंडर गार्डन में काम करने वाले कर्मचारी, सभी को ट्रेनिंग देने की व्यवस्था की है। इसी क्रम में पूरी चीन के तियानजिन शहर में एक किंडर गार्डन में काम करने वाले कर्मचारियों को चीन के नए जासूसी विरोधी ‘कानून को समझने और इस्तेमाल’ करने के लिए ट्रेनिंग दी। यही नहीं, अब चीन के खुफिया विभाग ने सोशल मीडिया पर भी अपने पाँव पसार लिए हैं। चीन के स्टेट सिक्यूरिटी मिनिस्ट्री से जुड़े खुफिया विभाग ने सोशल मीडिया अकाउंट भी खोला है, और उस पर पहली पोस्ट की है ‘जासूसी के ख़िलाफ़ संपूर्ण समाज को लामबंद करने का आह्वान’।
कमजोर अर्थव्यवस्था से लगा झटका?
चीन इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। रियल इस्टेट सेक्टर पूरी तरह से तबाह हो चुका है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है। विकास दर घट चुकी है और आंतरिक तौर पर नागरिकों में भी असंतोष बढ़ रहा है। यही नहीं, अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के चीफ ने कुछ समय पहले एक बयान देकर भी चीन के कान खड़े कर दिए थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि अमेरिका अब चीन में अपने जासूसी नेटवर्क को फिर से खड़ा कर रहा है।
विदेशी लोगों से मिलने-जुलने का मतलब है नजर में आना
चीन में इस समय माहौल डरावना है। आप विदेशी कंपनी में काम करते हैं, तो आप संभावित जासूस हो सकते हैं। ऐसे में आप पर नजर रखने के लिए आपके आसपास लोगों का एक घेरा खड़ा कर दिया गया है। यही नहीं, अगर आप विदेशी कंपनियों के साथ साझेदारी जैसा काम करते हैं, तो भी आप सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर रहते हैं। इस समय विदेशी नागरिकों पर चीन ने काफी कड़ाई से नजर रखी है और कई लोगों को जासूसी के आरोपों में गिरफ्तार भी किया है।
अधिकारियों ने इस साल की शुरुआत में यह भी कहा था कि उन्होंने जासूसी के आरोप में एक अमेरिकी नागरिक को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, और उन्होंने एक उच्च पदस्थ चीनी अखबार के संपादक को उस समय गिरफ्तार किया था जब वह एक जापानी राजनयिक के साथ भोजन कर रहे थे। हालाँकि, संपादक के परिवार ने आरोपों को झूठा बताया है।
माओ की राह पर जिनपिंग?
माओत्से तुंग की राहत पर जिनपिंग चल रहे हैं। माओ ने चीनियों को इस तरह से तैयार किया था कि अगर चीनियों के बीच कोई क्रांति के विरोध (एंटी कम्यूनिस्ट) वाली सोच भी रखता है, तो उसका दमन कर दिया जाएगा। न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में आधुनिक चीनी इतिहास के प्रोफेसर चेन जियान ने कहा कि चीन की ये हरकत माओ के समय को दोबारा लाने जैसा है। प्रोफ़ेसर चेन ने कहा कि जासूसी के नाम पर लोगों को निशाना बनाने खासकर वैचारिक विरोधियों का, ये ठीक उसी तरह से है, जैसा माओत्से तुंग ने अपनी ताकत को मजबूत करने के लिए किया था।
सतर्क अमेरिका फूँक-फूँक कर बढ़ा रहा कदम
प्रोफेसर चेन ने कहा कि जिनपिंग कितनी भी कोशिश कर लें लेकिन चीनी समाज उस राह पर नहीं चलेगा, जिस राह पर माओ चीन को ले जाने में सफल हुए थे। हालाँकि, पिछले कुछ समय से अमेरिका ने चीन के खिलाफ बेहद कड़ा रवैया अपनाया है, जिसमें चीनी कंपनियों को बैन करने के साथ ही टिकटॉक ऐप जैसी चीजों को बैन करना शामिल है। अमेरिका ने अपने साथी देशों को भी इंटरनेट और तकनीकी के क्षेत्र में काम करने वाली हुवै जैसी कंपनियों के साथ काम करने से रोकने जैसी कार्रवाई की है।