सोशल मीडिया पर अक्सर हम देखते हैं कि मोटिवेशनल कोट्स और पंक्तियों को किसी भी शायर या बड़े लेखक के नाम से ‘वायरल’ कर दिया जाता है। इस प्रचलन के सबसे बड़े शिकार अब तक सबसे ज्यादा गाँधी, ग़ालिब, रूमी और चाणक्य हुए हैं। लेकिन इस बार जो दुर्घटना घटी है उसमें शिकार और शिकारी दोनों ही लोगों को स्तब्ध कर देने वाले नाम हैं। ये ताजा प्रकरण जुड़ा है अमिताभ बच्चन और उनके पिता स्वर्गीय हरिवंशराय बच्चन जी की एक ‘कविता’ से।
अप्रैल फूल के नाम से मनाए जाने वाले 1 अप्रैल के दिन बॉलीवुड के वरिष्ठ अभिनेता अमिताभ बच्चन ने ट्विटर पर एक ऐसी कविता पोस्ट कर डाली, जो सोशल मीडिया और व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी पर खूब चलाई जाती हैं। लेकिन दुखद बात ये थी कि खुद अमिताभ बच्चन ये बात नहीं समझ पाए कि ये कविता के नाम पर एक धब्बा है और उनके पिता हरिवंशराय बच्चन जी ने ये नहीं लिखी है। ‘पूज्य बाबू जी का लेखन’ के साथ दो हाथ जोड़ती इमोजी बनाकर अमिताभ बच्चन ने ये ऐतिहासिक भूल कर डाली, लेकिन ट्विटर यूज़र्स की आपत्ति के बावजूद भी उन्होंने ये कविता अभी तक डिलीट भी नहीं की है।
इस कविता के लिरिक्स कुछ इस तरह हैं (हमने इसमें एडिटिंग नहीं की है)
*हारना तब आवश्यक हो जाता है ,*
*जब लड़ाई ” अपनों ” से हो ,*
*और ,*
*जीतना तब आवश्यक हो जाता*
*जब लड़ाई ‘ अपने आप ‘ से हो* …..
*मंजिल मिले ना मिले ये*
*मुकदर की बात है ,*
*हम कोशिश ना करें , यह तो गलत बात है !*
*किसी ने बर्फ से पूछा कि-*
*आप इतने ठडे क्यो हो?*
*बर्फ ने बडा सुन्दर उत्तर दिया-*
*मेरा आतीत भी पानी*
*मेरा भविष्य भी पानी*
*फिर गर्मी किस बात की रखूं !*
T ३१३८ – पूज्य बाबूजी का लेखन :??? pic.twitter.com/yz0y0MCSSJ
— Amitabh Bachchan (@SrBachchan) April 1, 2019
हिन्दीनामा (Hindinama2) ने चाणक्य की एक रैंडम तस्वीर पर लिखी गई इन्हीं पंक्तियों के साथ आपत्ति जताते हुए लिखा है कि ये चाणक्य ने लिखा है ना कि हरिवंशराय बच्चन जी ने।
Sir आप चाणक्य के बोले गए वाक्यों को अपने पूज्य पिताजी से जोड़ रहे हैं… यह बहुत गलत बात है, आपसे ऐसी उम्मीद न थी।?? @SrBachchan ? pic.twitter.com/2rsXD4vFNV
— Hindinama (@Hindinama2) April 1, 2019
हालाँकि, ये बच्चन साहब का पारिवारिक मामला है लेकिन यह एक बड़ा सन्देश है कि जब अमिताभ बच्चन जैसी जागरूक हस्ती भी इंटरनेट पर चलने वाली अफवाहों के सही और गलत होने का निर्णय नहीं ले पाते हैं तो फिर आम नागरिक इन सूचनाओं से किस स्तर तक प्रभावित हो सकता है, वो भी ऐसे समय में, जब लोग सोशल मीडिया के माध्यम से और सस्ते कॉमेडियंस द्वारा दी गई जानकारियों को ही ब्रह्म सत्य मान बैठते हैं और हर दूसरे मनचले व्यक्ति के आँकड़ों को ही सही मानकर सरकार को कोसना चालू कर देते हैं।