रिटायर शिक्षक विनोद मिश्रा ने मीडिया संस्थानों को विस्तार से बताया है कि उस दिन कैसे हिंसा भड़की थी। उनका कहना है कि पहले मूर्ति पर पत्थर मारी गई, फिर डीजे वाले के साथ मारपीट की गई। कथित तौर पर इसके बाद मस्जिद से ऐलान कर उकसाया गया, जिसके बाद मुस्लिम भीड़ हथियारों संग सड़क पर आ गई और हमला कर दिया।
मस्जिद से मुस्लिमों को उकसाने की बात उन्होंने आजतक के साथ बातचीत में कही। ऑपइंडिया के रिपोर्टर राहुल पाण्डेय से बातचीत में भी कैमरे पर यही दावे दोहराए। उनके इस बयान को लेकर दैनिक जागरण समेत कई अन्य मीडिया संस्थानों ने भी रिपोर्ट की है।
राहुल पाण्डेय को इस घटना का विवरण देते हुए विनोद मिश्रा ने कहा;
“पुलिस ने लाठीचार्ज किया तो हिंदू तितर-बितर होगए। तब, मस्जिद से अल्लाह-हू-अकबर करके बोला गया और उसके बाद आवाज आई कि जो जहाँ मिले उसे मार दो काट दो।”
वीडियो में विनोद मिश्रा की यह बात आप साफ तौर पर 1 मिनट से पहले ही सुन सकते हैं और बाद में राहुल पाण्डेय को पूछते भी सुना जा सकता है कि क्या आपने ये खुद सुना?
इस पर विनोद मिश्रा ने हाँ, बिल्कुल सुना में जवाब देते हुए कहा,
“उधर से 200-300 की संख्या में भीड़ बाँस बल्लम, अवैध असलहे, तमंचे जैसे औजार लेके दौड़ी। सामने हमारी गाड़ी थी। उसे हम इस पार लेकर आने। हमने गाड़ी स्टार्ट की हुई थी ये सोचकर ये सब लोग हमें जानते-पहचानते हैं हमें कुछ नहीं करेंगे। लेकिन वो 5-7 की संख्या में आए और फरसा से वार कर दिया। हमने हाथ उठाया तो वहाँ गहरा घाव हो गया और कुर्ता खून से सराबोर हो गया। हम लहूलुहान थे और उन्होंने तब तक गाड़ी का तार काट दिया। हम इतने में वहाँ से भागने लगे। जब भागे तो उन्होंने लाठी चला दी। हमारी पीठ पर काफी चोट के निशान हैं और हाथ भी टूट गया। बाद में पता चला कि गाड़ी में भी आग लगा दी गई है।”
#Watch: "There were announcements from two mosques, 'Jo jahan mile, use wahin maar do, kaat do.' 200-300 Muslims came with weapons and attacked Hindus. I thought they knew me, so they wouldn't attack me, but they did. They cut the tyres of bikes and burnt the vehicles of Hindus."… pic.twitter.com/iaitlWvHDj
— OpIndia.com (@OpIndia_com) October 19, 2024
विनोद मिश्रा ने इसी तरह की बातें आजतक के रिपोर्टर को भी बताई। इसके बाद जी न्यूज और अन्य समाचार पोर्टलों ने भी उनके बयान को कवर किया।
विनोद मिश्रा का यह बयान जैसे ही ऑपइंडिया ने सार्वजनिक किया तो मोहम्मद जुबैर जैसे लोग एक्टिव हो गए। उन्होंने हिंदू पीड़ित के पूरे बयान को खारिज कर इसे तथ्यहीन बता दिया और बहराइच पुलिस को टैग कर दिया। आश्चर्यजनक तौर पर बहराइच पुलिस ने भी यही लाइन पकड़ी और बयान को ‘भ्रामक तथ्य’ करार दिया। साथ ही अपरोक्ष तौर पर मीडिया को धमकाते हुए कहा जिन घटना के संबंध में साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, उन्हें बिन जानकारी प्रसारित न करें।
इस संबंध में दैनिक जागरण की खबर का स्क्रीनशॉट साझा किए जाने पर तो बहराइच पुलिस ने मीडिया संस्थान को नोटिस जारी करने की धमकी तक दे दी।
मोहम्मद जुबैर जैसे लोग जो बहराइच में हिंदुओं पर हमले के बाद से रामगोपाल मिश्रा की हत्या को जायज ठहराने की कोशिश कर रहे हैं, एक हिंदू पीड़ित के बयान को फेक बताना तो समझ में आता है। लेकिन बहराइच पुलिस का यह रवैया समझ से परे है।
विनोद मिश्रा इस घटना के चश्मदीद हैं। इस हमले में घायल हुए लोगों में से हैं। उनका बयान एक तरह से पूरे घटनाक्रम का साक्ष्य है। लेकिन उनके बयान को जाँच का आधार बनाने की जगह पुलिस मीडिया संस्थानों को अपरोक्ष तौर पर धमकाते हुए यह बताने की कोशिश करती दिख रही है कि हिंदू पीड़ितों के विवरण प्रकाशित प्रसारित न किए जाएँ।
इसके क्या कारण हो सकते हैं? आखिर बहराइच पुलिस पीड़ितों की आँखों देखी और कानों सुनी तथ्यों को क्यों बाहर नहीं आने देना चाहती है? वैसे इस हिंसा को लेकर बहराइच का पुलिस-प्रशासन शुरू से ही सवालों के घेरे में है। योगी सरकार ने कई अधिकारियों पर कार्रवाई भी की है। हिंसा के चश्मदीदों का भी कहना है कि यदि पुलिस ने सक्रियता दिखाई होती तो शायद रामगोपाल जिंदा होते…।
यह भी माना जा सकता है कि तनावपूर्ण माहौल में पुलिस-प्रशासन की कोशिश होती है कि ऐसे ‘कटु सत्य’ बाहर न आए जिससे तनाव बढ़े। लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि पीड़ितों की रिपोर्टिंग ही न की जाए। या फिर कोई तथ्य सामने आ जाए तो पुलिस मीडिया को ही धमकाने पर उतारू हो जाए। ऐसे तथ्य सामने आने के बाद यह पुलिस का दायित्व बन जाता है कि वे इसे अपनी जाँच का बिंदु बनाए और समुचित कार्रवाई करे।
बहराइच पुलिस का ‘दायित्व बोध’ तो 13 अक्टूबर की घटना के बाद से ही कठघरे में है। लेकिन उसके बाद भी वह जिस तरह का रवैया दिखा रही है, उस पर योगी सरकार को गंभीरता से गौर करना चाहिए। बहराइच पुलिस की पीड़ितों के पक्ष को सोशल मीडिया पर भ्रामक करार देने की सक्रियता, मोहम्मद जुबैर जैसे इस्लामी कट्टरपंथियों के सुर में सुर मिलाते नजर आना, यूपी पुलिस की ‘छवि’ पीड़ित हिंदुओं की नजर में पश्चिम बंगाल पुलिस जैसा गढ़ सकती है। यदि ऐसा होता है तो यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस इकबाल को मलिन करने का कार्य करेगा जो उन्होंने प्रदेश में अपराधियों और कट्टरपंथियों पर कार्रवाई कर अर्जित की है।