अनुभवी पत्रकार बरखा दत्त ने कॉन्ग्रेस मीडिया पैनलिस्ट शमा मोहम्मद के साथ अपनी हालिया बातचीत में इस बात पर अपना ग़़ुस्सा और पीड़ा व्यक्त की कि मुख्यधारा का मीडिया अब चुनावों में मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर पाएगा।
Where @DrShamaMohd of Congress asks @_YogendraYadav why he advocated NOTA, didnt field candidates & now wants Congress to “die.” She also draws a contentious distinction between voters of North being less educated, more vulnerable to fake news, than the South. Excerpt @newsHtn pic.twitter.com/eZVKnyfFKG
— barkha dutt (@BDUTT) May 21, 2019
कॉन्ग्रेस नेता कपिल सिब्बल समर्थित HTN तिरंगा टीवी पर शमा मोहम्मद और AAP नेता योगेंद्र यादव के साथ बातचीत करते हुए, बरखा ने कहा कि चुनाव के परिणाम को प्रभावित करने में सक्षम होने के मामले में मीडिया बिल्कुल अप्रासंगिक हो रहा है। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि मीडिया के साथ जुड़ने के लिए सभी राजनेताओं ने चीखने-चिल्लाने के लिए अपने स्वयं के तंत्र को विकसित कर लिया है। मैं आपसे वादा करती हूँ कि यह कहने पर एक पत्रकार के रूप में मुझे ख़ुशी नहीं होगी। लेकिन मेरा मानना है कि मुख्यधारा का मीडिया आज इस देश में एक मतदाता के वोट को प्रभावित करने में सक्षम होने के लिए पूरी तरह से अप्रासंगिकता की ओर बढ़ रहा है।” अपनी बात को दोहराते हुए बरखा ने कहा, “मैं सचमुच इस पर विश्वास करती हूँ।”
‘मतदाताओं पर प्रभाव’ के अलावा, राजनेताओं को प्रभावित करने और उनकी पैरवी करने का भी आरोप पत्रकारों पर है।
जुलाई 2009 में, लीक हुए ऑडियो टेप, जिन्हें ‘राडिया टेप्स’ के नाम से जाना जाता है, उससे पता चला था कि नैरेटिव कैसे सेट किया जाता है। बरखा दत्त और नीरा राडिया के बीच हुई बातचीत के टेप के अनुसार, राडिया केंद्रीय आईटी और संचार मंत्री के पद पर दयानिधि मारन की फिर से नियुक्ति के ख़िलाफ़ पैरवी कर रही थीं और बरखा ने सक्रिय रूप से गतिरोध समाप्त करने और केंद्र में सरकार बनाने के लिए दोनों दलों के बीच सक्रियता से मध्यस्थता की थी।
पैनल इस बात पर चर्चा कर रहा था कि क्या एग्जिट पोल (2019), जो नरेंद्र मोदी के लिए एक शानदार जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं, सही हैं और क्या वह रिकॉर्ड जीत के लिए तैयार हैं? बरखा ने कॉन्ग्रेस की आलोचना करते हुए कहा कि अगर एक्जिट पोल के आँकड़ें सही साबित हुए, तो यह कॉन्ग्रेस पार्टी के ‘अस्तित्व पर संकट’ साबित हो सकता है। बरखा कॉन्ग्रेस के पैनलिस्ट शमा मोहम्मद से बात कर रही थीं जिसमें कॉन्ग्रेस द्वारा तीन राज्यों (मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़) की जीत का ज़िक्र किया और कहा कि वो बहुत कम अंतर से जीते हुए राज्य थे।
शमा मोहम्मद ने कॉन्ग्रेस का बचाव करने की कोशिश करते हुए कहा कि 2014 तक, “बरखा और कुछ अन्य” को छोड़कर कोई भी ‘मीडिया’ नहीं था। वह कहती हैं, ”विपक्ष द्वारा हमसे पूछताछ की गई। हमसे नीतिगत पक्षाघात के लिए पूछताछ की गई। भ्रष्टाचार के आरोपों के ख़िलाफ़ हमसे पूछताछ की गई। निर्भया के लिए हमसे पूछताछ की गई। हमारे पास कठुआ एक मुद्दा था जो निर्भया के लगभग बराबर था। क्या कुछ लोगों के अलावा किसी ने सवाल किया? उन्होंने (मोदी) इसके ख़िलाफ़ एक शब्द भी नहीं कहा। हमसे पूछा गया कि मनमोहन सिंह चुप क्यों थे? शीला दीक्षित चुप क्यों थी? श्रीमती गाँधी ने हवाई अड्डे पर निर्भया की अगवानी की। कठुआ के लिए क्या किया गया?”
कॉन्ग्रेस के पैनलिस्ट यह भूल गए कि 2014 में, कॉन्ग्रेस सत्ता पक्ष थी, न कि विपक्ष। इसलिए, नीतिगत पक्षाघात और भ्रष्टाचार के आरोपों से संबंधित सवाल ‘विपक्ष’ पर नहीं, बल्कि वास्तव में पार्टी को सत्ता में लाने के लिए थे। इसके बाद शमा मोहम्मद क्रूर बलात्कार के मामलों का राजनीतिकरण करती हैं और वो दोनों मामलों की तुलना करने से भी नहीं चूकतीं।
शमा मोहम्मद ने उत्तर भारतीय राज्यों में कॉन्ग्रेस के ख़राब प्रदर्शन की वजह दक्षिण भारत के लोगों की तरह शिक्षित नहीं होना बताया था। इससे यह बात साफ़ है कि वो उत्तर भारत के लोगों को दक्षिण भारत के लोगों से कमतर समझती हैंं।