‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ (TNIE) ने 20 सितंबर 2021 को केरल के मलप्पुरम में एक मुस्लिम लड़की के बाल विवाह की रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें उसने गुमराह करती हुई प्रतीकात्मक इमेज का इस्तेमाल किया। TNIE की एक रिपोर्ट के अनुसार, शौहर के साथ ही उसके अम्मी-अब्बू और एक काजी के खिलाफ इस निकाह को करवाने के मामले में केस दर्ज किया गया है।
काजी शरिया कोर्ट का मजिस्ट्रेट है और वो वहाँ शादी में शामिल होने के लिए गया था। इससे ये सिद्ध होता है कि यह निकाह या मुस्लिम विवाह था। जबकि, TNIE की रिपोर्ट में जिस तरह की तस्वीर का इस्तेमाल किया गया था, उसमें बिंदी लगाए हुए नाबालिग हिंदू लड़की को माला के साथ दिखाया गया है जैसे कि यह एक हिंदू बाल विवाह था।
उल्लेखनीय यह है कि इसी मामले पर 19 सितंबर 2021 को TNIE ने जो रिपोर्ट प्रकाशित की थी, उसमें उसने इस बात का उल्लेख किया था कि निकाह करने वाले दंपति ‘अल्पसंख्यक समुदाय’ से थे। उस रिपोर्ट में भी प्रतीकात्मक तस्वीर एक ‘हिंदू’ की थी, जो पाठकों को गुमराह कर रही थी।
केरल में बाल विवाह का मामला
बाल-विवाह की यह घटना 18 सितंबर 2021 को केरल के मलप्पुरम जिले के करुवरकुंडू में हुई थी। रिपोर्टों से पता चलता है कि लड़की की उम्र 17 साल थी और वह कक्षा 12वीं की छात्रा थी। इस मामले में पुलिस ने काजी, शौहर और उसके अम्मी-अब्बू सहित चार लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया। उसके बाद अगले दिन पुलिस ने लड़की का बयान दर्जकर मामले की जाँच शुरू कर दी।
करुवरकुंडु पुलिस स्टेशन के निरीक्षक मनोज परायट्टा ने कहा कि उन्होंने बाल विवाह निषेध अधिनियम-2006 के तहत मामला दर्ज किया था। उन्होंने कहा, “बाल विवाह एक गंभीर अपराध है जिसमें पाँच साल की कैद या 10 लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान है। शादी के लिए उकसाने वालों के खिलाफ बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है। इसके तहत विवाह में शामिल होने वाले मेहमान, कैटरर्स और वीडियोग्राफर तक शामिल हैं।”
पुलिस अधिकारी के मुताबिक, बाल विवाह के मामलों में सबूत जुटाना काफी मुश्किल होता है। उन्होंने कहा, “सामान्यतया इस तरह के विवाह गुपचुप तरीके से किए जाते हैं। इसमें लोग फोटों नहीं खींचते और इलाका विशेष के लोग सबूतों को देकर जाँच में सहयोग नहीं करते हैं। फिर भी हम इस मामले को गंभीरता से लेकर मामले की जाँच करेंगे और दोषियों को अधिकतम सजा दिलाने की कोशिश करेंगे, ताकि इस तरह के मामले दोबारा न हों।”
केरल का मलप्पुरम जिला मुस्लिम बहुल क्षेत्र है जो इस तरह के बाल विवाह के लिए कुख्यात रहा है। यहाँ 2017 में अधिकारियों ने ऐसी दस शादियों को रोका था और वहीं 2016 में करुवरकुंडु से सटी मुथेदम पंचायत में ऐसी 12 शादियों को रोक दिया गया था।
तस्वीरों से गुमराह कर रहा मेन स्ट्रीम मीडिया
यह बहुत ही आम बात हो चुकी है कि अपराध में मुस्लिम समुदाय के लोगों के शामिल होने के बावजूद देश की मेन स्ट्रीम मीडिया लगातार हिंदू समुदाय को बदनाम करने वाली प्रतीकात्मक तस्वीरों का इस्तेमाल करती है। इस तरह की प्रतीकात्मक तस्वीरों में अक्सर हिंदू धर्म से जुड़े ग्राफिक्स का इस्तेमाल किया जाता है, भले ही इसमें मुस्लिम समुदाय का ही कोई क्यों न शामिल हो। ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं, जहाँ हंगामे के बाद मीडिया घरानों ने अपनी प्रतीकात्मक तस्वीरों को ही बदल दिया था।
इसी साल जुलाई 2021 में एक युवती को धोखा देने के आरोप में महाराष्ट्र पुलिस ने एक मौलवी ‘बाबा करीम खान बंगाली’ को गिरफ्तार किया था। लेकिन मेन स्ट्रीम की मीडिया ने उसे ‘तांत्रिक’ करार दे दिया। उसी महीने उत्तर प्रदेश के अमरोहा में भी एक मौलवी अफजल मलिक और उसके सहयोगियों ने नाबालिग लड़की के साथ गैंगरेप किया था। उसे भी ‘सेक्युलर मीडिया’ की रिपोर्ट में ‘तांत्रिक‘ करार दिया। जबकि ‘तांत्रिक’ शब्द तंत्र-मंत्र की साधना करने वाले से जुड़ा है। इस शब्द का इस्तेमाल कर प्रायः नाम छिपाकर लोगों को गुमराह करने की कोशिश की जाती है।
अक्सर देखा जाता है कि प्रतीकात्मक तस्वीरें हिंदुओं की ही इस्तेमाल की जाती हैं, जिससे पाठक गुमराह हो जाता है और उसे लगता है कि हो न हो अपराधी हिंदू ही होगा।