तबलीगी जमात की हरकतों से आहत होकर पिछले दिनों हरियाणा के हिसार और जिंद जिले से कई ऐसे मामले सामने आए, जहाँ समुदाय विशेष के परिवारों ने इस्लाम धर्म का त्याग करके हिंदू धर्म अपनाया और, अपने इस कदम के पीछे स्वेच्छा को कारक बताया।
मगर, ‘द क्विंट’ शायद इस खबर को सुनकर आहत हो गया और उसने इन लोगों के फैसले पर सवालिया निशान लगाते हुए एक लेख प्रकाशित कर डाला।
निलंजन मुखोपाध्याय का ये लेख द क्विंट में कल छपा और इस लेख में द क्विंट के लेखक ने हर बात का केवल ये निष्कर्ष निकाला कि ये फैसला सही नहीं है, इसलिए सरकार को हिंदू धर्म में परिवर्तन पर रोक लगानी चाहिए और अरब देशों की कड़ी प्रतिक्रिया देखकर कोशिश करनी चाहिए कि इस तरह की घटनाएँ न हों।
Can you believe it. Quint columnist wants govt to stop conversion to Hinduism by choice, like the recent event in Haryana, because “Gulf backlash” pic.twitter.com/lepipSiFfr
— Swati Goel Sharma (@swati_gs) May 12, 2020
इससे पहले कि द क्विंट में छपे लेख के निष्कर्ष पर आगे बात करें, हमें संविधान के एक अनुच्छेद के बारे में पढ़ लेना चाहिए। ये आर्टिकल 25 है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 कहता है, “लोक व्यवस्था, सदाचार, स्वास्थ्य और भाग 3 के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता है अर्थात कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को मान सकता है और उसका प्रचार-प्रसार कर सकता है।”
इसी प्रकार अनुच्छेद 25 (1) के अनुसार, “कोई भी व्यक्ति स्वेच्छा से अपना धर्म परिवर्तन कर सकता है किन्तु उसे अन्य व्यक्तियों के धर्म परिवर्तन का अधिकार नहीं है। यदि राज्य को लगता हो कि धर्म परिवर्तन की कोई प्रतिक्रिया लोक व्यवस्था, सदाचार तथा स्वास्थ्य के विरुद्ध है तो राज्य हस्तक्षेप करने का अधिकारी है और यदि चाहे तो जबरन धर्म परिवर्तन के विरुद्ध कानून बना सकता है।”
अब इस बात में संशय नहीं होना चाहिए कि एक धर्म से दूसरे धर्म में स्वेच्छा से परिवर्तित होना भारत में कोई अपराध नहीं है। मगर, बावजूद इस अधिकार के हिंदू धर्म में परिवर्तित होने की प्रक्रिया पर रोक लगाने की सलाह देने वाले लेखक को इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि वह इस तरह की भाषा का प्रयोग करके भारत में नागरिकों के मौलिक अधिकार छीनने की बात कर रहे हैं।
लेखक अपने लेख में यह तरीका भी बता रहे हैं कि कैसे दलित मुस्लिमों को अन्य धर्म के दलितों की भाँति विशेषाधिकार देकर हरियाणा में घटने वाली धर्मांतरण की घटनाओं को अन्य जगहों पर रोका जा सकता है। लेखक बताते हैं कि अगर सरकार इन अधिकारों को देने से मना करती है तो इसका साफ मतलब है कि ये उनकी हिंदुत्व स्ट्रैटेजी का एक भाग है।
सोचिए! हिपोक्रेसी की सीमा क्या होती है। एक देश में जहाँ सदियों तक हिंदुओं पर अत्याचार करके उन्हें दूसरे मजहब में परिवर्तित कराया जाता रहा और जबरन इस्लाम कबूल कराया जाता रहा। आज वहीं, जब विशेष समुदाय के लोग हिंदू धर्म में परिवर्तित होने लगे, तो बुद्धिजीवियों को इतनी परेशानी होने लगी कि वे इस पर बाकायदा विमर्श चाहते हैं और सरकार से भी उम्मीद करते हैं कि अरब देशों के डर से वह देश के नागरिकों के मौलिक अधिकार उनसे छीन लें। ताकि देश में समुदाय विशेष की आबादी पर कोई आँच न आए।
These idiots didn’t bother when bigot Zakir Naik was openly converting lakhs with “FearOfHell” on live conferences, by manipulating scriptures &insulting indic religions. That was called “religious freedom” given by secular constitution. No one said it would draw “Hindu backlash”
— Khaja Rajammagari (రాజమ్మగారి) 🇮🇳 (@Bharateeyudu007) May 12, 2020
लेखक अपने लेख में भाजपा से जुड़े सरपंच तक का जिक्र कर देते हैं, क्योंकि उन्हें इस बात पर संदेह उत्पन्न करना होता है कि जो दावे किए जा रहे हैं कि हरियाणा के गाँवों में लोगों ने अपनी मर्जी से धर्म स्वीकारा है, वे हो सकता है सही नहीं हो।
लेखक देश के सामने आने वाली नई चुनौतियों का उल्लेख करते हैं और समझाते हैं कि ऐसी हरकतों से वैश्विक समुदाय हमें खतरे में डाल सकता है। उनका मानना है कि देश में वर्तमान सरकार दलित मुस्लिमों पर ध्यान नहीं देती और अपने समर्थकों के साथ मिलकर इस विषय पर विवाद करती है।
हैरानी है कि लेखक इतने बड़े बुद्धिजीवी हैं कि द क्विंट के मुताबिक वे ‘The Demolition: India at the Crossroads’ और ‘Narendra Modi: The Man, The Times’ के लेखक भी हैं। बावजूद इतनी उपलब्धियों के, उनके लिए 40 परिवारों का हिंदू धर्म में परिवर्तित होना बड़ा विषय है। लेकिन इनके लिए ये विचार का विषय नहीं है कि जाकिर नाइक जैसे लोग धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर भारत में रहकर धर्म-परिवर्तन को बढ़ावा देते रहे और युवाओं को बरगलाते रहे और किसी ने उसे कुछ नहीं बोला।
इनके लिए ये लेख लिखने का विषय नहीं है कि आज भी मिशनरी के लोग भेष बदल-बदलकर धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया को बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे कई हिंदू ईसाई धर्म अपना रहे हैं। इनके लिए सवाल खड़ा करने वाली बात ये है कि आखिर जिन लोगों ने स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन किया, वो इस्लाम धर्म छोड़कर ही क्यों किया और हिंदू धर्म में ही क्यों किया?
इनका मानना है कि सरकार को अपने नागरिकों के अधिकारों में संशोधन अरब देशों की प्रतिक्रिया देखकर करनी चाहिए। इनका यह भी मानना है कि विचार इस बात पर नहीं करना चाहिए कि देश के नागरिकों को विकल्प कैसे मुहैया कराएँ, बल्कि इस बात पर करना चाहिए कि आखिर कैसे ‘शरिया’ जैसे कानूनों को लागू करके इस्लामी देशों को खुश किया जाए। ताकि सेकुलरिज्म की आड़ में कट्टरपंथ का झंडा भारत में फिर बुलंद हो और हिंदुओं को जबरन इस्लाम धर्म कबूल करवाने में कोई दिक्कत न आए।
गौरतलब है कि ये पहली बार नहीं है जब हिंदू धर्म को अपनाने को लेकर मीडिया गिरोह में इस प्रकार का लेख प्रकाशित हुआ हो। पिछले वर्ष 2019 में त्रिपुरा में 98 ईसाइयों ने हिंदू धर्म कबूला था, तब भी बीबीसी में सच्चाई को उजागर करता एक लेख छपा था। लेख में ‘अधिकतर लोगों’ का हवाला देकर दावा किया गया था कि इस धर्म परिवर्तन के पीछे ‘बैल की हत्या’ एक महत्तवपूर्ण कारण है। जिसकी वजह से हिंदू संगठन के लोगों ने ईसाइयों को पीटा था और अन्य लोगों ने डर से हिंदू धर्म अपना लिया था।