इकोनॉमिक्स टाइम्स (ET) के प्रिंट वर्जन में रविवार (22 मई, 2022) को एक कार्टून के माध्यम से ज्ञानवापी मुद्दे पर हिन्दुओं का मजाक उड़ाया गया। इस कार्टून में भाभा एटॉमिक रिसर्च केंद्र को शिवलिंग के तौर पर दिखाया गया। कार्टून का शीर्षक ‘बम भोलेनाथ’ दिया गया था। यह कार्टून अख़बार के ‘दुनिया’ वाले कॉलम में छपा था।
इसी अख़बार में एक अन्य कार्टून में ताज महल के बेसमेंट में लगे दरवाजों को खोलने पर एक कार्टून छापा गया है।
ज्ञानवापी सर्वे के दौरान शिवलिंग मिलने के बाद कई लोगों ने हिन्दू आस्थाओं पर प्रहार करने वाले कमेंट्स किए। उनमे से कुछ के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की गई है। हाल ही में TMC सांसद महुआ मोइत्रा, पत्रकार सबा नक़वी, रिटायर्ड IAS सूर्य प्रताप सिंह, पीस पार्टी के शादाब चौहान और RJD पार्टी के नेता कुमार दिवाशंकर के खिलाफ हिन्दू आस्थाओं को चोट पहुँचाने की शिकायत दर्ज करवाई गई है। इसी क्रम में दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रतन लाल को गिरफ्तार भी किया गया, जिन्हें बाद में जमानत मिल गई थी।
इस कार्टून को प्रकाशित करते हुए इकोनॉमिक टाइम्स ने हिन्दू आस्थाओं का जरा सा भी ध्यान नहीं रखा। अगर यही कार्टून किसी और मज़हब की आस्था से जुड़ा होता तो कोई मेन स्ट्रीम मीडिया इसको छूना भी पसंद नहीं करता। लेकिन, बात हिन्दुओं की हो तो उनकी आस्थाओं का मजाक एक सामान्य बात जैसी हो जाती है।
असल में हिन्दू समाज की आस्था का मजाक उड़ाना आज कल मीडिया संस्थानों की एक आदत ही हो गई है। ऐसा करना सच्चा लिबरल होने की निशानी माना जाने लगा है। इसी के साथ इसका विरोध नहीं किसी के द्वारा न करने पर उन्हें ये सब करना और आसान लगने लगता है। इस बार ज्ञानवापी मामले में भी यह हर कोई जानता है कि काशी विश्वनाथ हिन्दुओं के सबसे अधिक पवित्र धर्मस्थलों में से एक है। लेकिन इसके बाद भी एक राष्ट्रीय दैनिक अख़बार द्वारा उस पर इतना आपत्तिजनक कार्टून बनाया गया।
हिन्दू आस्थाओं का मजाक सिर्फ इकोनॉमिक्स टाइम्स ही नहीं बल्कि कई अन्य मेन स्ट्रीम मीडिया बना रहे हैं। उनके मुताबिक हिन्दू का कुछ भी RSS/BJP है। इसी की आड़ में वो समूचे हिन्दू धर्म का मजाक बनाना शुरू कर देते हैं। कुल मिला कर वो संघ की विचारधारा से सहमत न होने के चलते संघियों की मौत की इच्छा रखना शुरू कर देते हैं। उन सभी को ये भी नहीं पता कि हिन्दुओं की अपनी खुद की भी पहचान है। हिन्दू सिर्फ राजनैतिक पार्टी या संस्थान का प्रतीक नहीं है।
ऐसी हरकतें इसलिए भी की जा रही हैं क्योकि मीडिया संस्थानों के साथ आम लोगों को भी पता है कि इसमें कोई रिस्क नहीं है। उन्हें पता है कि ज्यादा से ज्यादा इस केस में FIR होगी। सबने देखा कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रतनलाल को अगले ही दिन जमानत मिल गई। रतनलाल ने कोर्ट में खुद को हिन्दू बताया। इस तरह कोई भी हिन्दुओं के आराध्य, उनके त्योहारों और उनके धर्मस्थलों पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर सकता है और बाद में खुद को भी हिन्दू बताते हुए अभिव्यक्ति की आज़ादी की दुहाई दे सकता है। ऐसे में कई लोग ये सोच कर रिस्क ले लेते हैं कि अदालत से उन्हें कड़ी सजा नहीं मिलेगी।
हर कोई चार्ली हेब्दो की घटना से वाकिफ है। अगर इकोनॉमिक्स टाइम ने यही सब पैगंबर या कुरान से जोड़ कर किया होता तो शायद उन पर सोशल मीडिया और यहाँ तक कि ऑफिस तक में हमले हो रहे होते। मीम बनाने वाले को भी शायद मार दिया गया होता। हिन्दुओं के मामले में ऐसा कुछ नहीं होता जो हिन्दू समाज की सहिष्णुता को दर्शाता है।
टाइम्स ग्रुप के साथ कई अन्य मीडिया संस्थानों ने चार्ली हेब्दो पर हुए हमले की निंदा की थी। लेकिन जब बात हिंदुत्व की आई तब उनका दोहरा चरित्र सामने आ गया। इकोनॉमिक्स टाइम्स के लिए हिन्दुओं के खिलाफ ऐसी हरकत लगातार करना अभिव्यक्ति की आज़ादी है। लेकिन जब बात इस्लाम की आ जाती है तब वो ऐसा साहस नहीं कर पाते। उन्हें इसका अंजाम पता है।
यहाँ हिन्दुओं को भी मीडिया से जुड़े फैक्ट्स जानने होंगे। उन्हें अपनी आस्थाओं पर प्रहार करने वाले कंटेंट को भी समझना होगा। लव जिहाद, धर्म परिवर्तन और कई अन्य मुद्दों में में भी हिन्दुओं को ही निंदा का सामना करना पड़ा है जबकि उन केसों में वही पीड़ित भी होते हैं। हिन्दुओ से ही मिल रहे उत्साह और प्रोत्साहन से ऐसे मामले और अधिक बढ़ रहे हैं।