Sunday, November 17, 2024
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रोहिणी सिंह, रबी में भी होता है धान: यह PM पर तंज कसने से नहीं, जमीन पर उतरने से पता चलता है

रोहिणी सिंह वही हैं, जिन्होंने दीपक चौरसिया पर शाहीन बाग़ में सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान हुए हमले को सही ठहराया था और उन्हें एक पत्रकार मानने तक से इनकार कर दिया था।

किसानों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट क्या किया, लिबरल गैंग के कुछ पत्रकारों को लगा कि उन्हें पीएम मोदी को नीचा दिखाने का मौका मिल गया है। ताज़ा विवाद रबी और खरीफ फसलों को लेकर शुरू हुआ। पीएम मोदी पर कटाक्ष करने वाली पत्रकार का नाम रोहिणी सिंह हैं। उन्होंने इस बात पर आश्चर्य जताया है कि रबी में धान की फसल? इस पर चर्चा करने से पहले कुछ बातें जाननी ज़रूरी हैं।

भारत में अलग-अलग इलाक़ों की भौगोलिक परिस्थितियाँ भिन्न हैं और इस हिसाब से फसलों की बुआई-कटाई होती है। फसलों के लिए रबी और खरीफ सीजन के रूप में पूरे साल को विभाजित किया जाता है। इनके अलावा ‘समर क्रॉप्स’ के रूप में भी कहीं-कहीं अलग से फसलों को उपजाया जाता है। ध्यान रखें, रबी और खरीफ क्रॉप सीजंस के नाम हैं, जिसमें होने वाले फसलों को रबी क्रॉप्स और खरीफ क्रॉप्स कहते हैं।

रबी फसलों में सामान्यतः गेहूँ, जौं, चना, सरसो, मटर, मसूर और आलू की गिनती होती है। इसमें अधिकतर आपको दलहन और तिलहन मिलेंगे। वहीं खरीफ फसलों में धान, बाजरा, मक्का, कपास, ज्वार और गन्ना को लिया जाता है। लेकिन, ध्यान देने वाली बात ये है कि कुछ फसलें ऐसी भी होती हैं, जो रबी और खरीफ- दोनों ही सीजन में उगाई जाती हैं। जैसे, धान को ही ले लीजिए। दक्षिण के राज्यों में रबी सीजन में भी धान उगाया जाता है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में बड़े स्तर पर इसकी फसलें लहलहाती हैं।

अगर आप बिहार से पश्चिम बंगाल में ही घुसेंगे तो आपको धान की फसलों की समयावधि और उसकी टाइमिंग में फर्क मिल जाता है। ऐसा बारिश और मॉनसून को ध्यान में रख कर तय किया जाता है। जैसे 2017-18 के ही रबी रिपोर्ट कार्ड की बात करते हैं। उस साल 257.47 लाख हेक्टेयर में गेहूँ की फसल की गई थी। लेकिन, साथ ही 14.58 हेक्टेयर में धान की भी खेती की गई थी, जिसे हम ‘रबी राइस’ कहते हैं।

2018-19 में ये आँकड़ा क्रमशः 253.52 और 9.98 लाख हेक्टेयर था। सरकारी आँकड़े हैं। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के अलावा तमिलनाडु में भी रबी सीजन में बड़े स्तर पर धान की खेती की जाती है। इसी तरह इस साल अक्टूबर-नवंबर में सरकार 75 लाख टन ‘रबी राइस’ के खरीद की योजना बना रही है। इसी तरह 2018-19 में सरकार ने 61 लाख टन ‘रबी राइस’ की खरीद की थी। इस बार उससे ज्यादा की खरीद की जाएगी।

अब वापस आते हैं नरेंद्र मोदी को नीचा दिखाने की रोहिणी सिंह की कोशिश पर। हाल ही में संसद के दोनों सदनों से सरकार ने कृषि क्षेत्र से जुड़े बिलों को पास कराया, जिससे किसानों को अपने उत्पाद सीधे प्राइवेट प्लेयर्स को बेचने की अनुमति होगी। साथ ही पुरानी व्यवस्था भी लागू रहेगी। एमएसपी से छेड़छाड़ नहीं होगी। लेकिन कॉन्ग्रेस इकोसिस्टम ने किसानों को भड़काया और विरोध-प्रदर्शन चालू कर दिया।

इसी बीच पीएम मोदी ने हिंदी, अंग्रेजी और पंजाबी में ट्वीट कर के किसानों को भ्रम से बचाते हुए सरकार का पक्ष रखा और उन्हें झाँसे में न आने की सलाह दी। पीएम मोदी ने ऐसी ही एक ट्वीट में लिखा कि इस साल कोरोना संक्रमण के दौरान भी रबी सीज़न में किसानों से गेहूँ की रिकॉर्ड खरीद की गई है। उन्होंने जानकारी दी कि इस साल रबी में गेहूँ, धान, दलहन और तिलहन को मिलाकर, किसानों को 1 लाख 13 हजार करोड़ रुपए MSP पर दिया गया है।

पीएम मोदी ने बताया कि ये राशि भी पिछले साल के मुकाबले 30 प्रतिशत से ज्यादा है। यहाँ रोहिणी सिंह ने ‘रबी’ और ‘धान’, इन दोनों शब्दों को पकड़ के बात का बतंगड़ बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने लिखा, “रबी की फसल में धान? फिर कहते हैं मेरी बात पर भरोसा करो।” साथ ही उन्होंने सिर पर हाथ रखे एक इमोजी भी डाली, जिससे लगे कि उन्हें कितनी ज्यादा जानकारी है और पीएम मोदी को कृषि के बारे में कुछ पता ही नहीं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कृषि से पुराना नाता है। गुजरात खुद एक कृषि प्रधान राज्यों में से एक है और वहाँ कृषि क्षेत्र की छवि बदलने के लिए उन्होंने काफी कुछ किया है। गुजरात की कृषि जीडीपी 2002 से लेकर 2014 तक प्रतिवर्ष 8% की दर से आगे बढ़ी। आपको पता है कि इस दौरान देश का औसत क्या रहा? 3.3%. ऐसे व्यक्ति को रोहिणी सिंह जैसे लोग रबी और खरीफ सिखाने चले हैं।

यहाँ दो और राज्यों की बात करनी ज़रूरी है, जहाँ रबी सीजन में धान का अच्छा-खासा उत्पादन होता है। वो राज्य हैं पश्चिम बंगाल और असम। दोनों ही राज्यों में 40-50 लाख टन ‘रबी राइस’ के उत्पादन का लक्ष्य रखा जाता है। लेकिन, हिंदी पट्टी के किसी इलाक़े में किसी 2-3 BHK फ्लैट में बैठ कर कृषि को लेकर ट्वीट करना आसान है लेकिन इन्हें ये पता होना चाहिए कि दुनिया इसके इतर भी है। दक्षिण है, उत्तर-पूर्व है।

इसी तरह छत्तीसगढ़ में भी रबी के सीजन में धान की खेती होती है। रोहिणी सिंह के लिए ये कोई नई बात नहीं है। वो पहले भी इस तरह की हरकतें कर चुकी हैं। पीएम मोदी द्वारा बोले-लिखे गए एक-एक शब्दों का इस्तेमाल उसे गलत साबित कर के नैरेटिव बनाने के लिए किया जाता है। अगर जबान फिसल जाए तब तो कहना ही क्या! वो ये नहीं समझते कि प्रधानमंत्री भी एक मनुष्य ही होता है।

रोहिणी सिंह वही हैं, जिन्होंने दीपक चौरसिया पर शाहीन बाग़ में सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान हुए हमले को सही ठहराया था और उन्हें एक पत्रकार मानने तक से इनकार कर दिया था। रोहिणी सिंह के इसी ट्वीट का जवाब देते हुए पत्रकार दीपक चौरसिया ने लिखा था, “मैंने एक ग़रीब पृष्ठभूमि से आकर अपने दम पर पत्रकारिता की। मेरा कसूर सिर्फ़ इतना है कि मैं आप की तरह डिजाइनर पत्रकार नहीं हूँ! मेरा वित्त मंत्रालय में परिचय नीरा राडिया ने नहीं कराया! ना ही मैंने आज तक किसी सरकार से 3BHK फ़्लैट लेकर खबरें लिखी है!”

इसी तरह लॉकडाउन के दौरान पत्रकार रोहिणी सिंह ने दावा किया था कि सरकार ट्रेन से मजदूरों को घर पहुँचाने के लिए उनसे 50 रुपए अतिरिक्त ले रही है, ताकि उन्हें घर पहुँचाया जा सके। उन्होंने ‘पीएम केयर्स’ लिख कर सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसा था। जबकि सच्चाई ये थी कि यात्रियों को रेलवे को एक रुपया भी देने की ज़रूरत नहीं थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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