लोकसभा चुनाव के बीच मध्य प्रदेश के भोपाल सीट से भाजपा प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर द्वारा नाथूराम गोडसे को लेकर दिए गए विवादित बयान पर राजनीतिक और मीडिया में चर्चा का बाजार गर्म है। हालाँकि, साध्वी प्रज्ञा ने माफी माँग ली है, लेकिन टीवी चैनल्स में चर्चा और बहस लगातार जारी है।
पत्रकार से आम आदमी पार्टी नेता और फिर वापस पत्रकार बने आशुतोष का सामना इस बार इतिहासकार से हुआ तो उन्होंने आशुतोष को याद दिला दिया कि उनकी वास्तविक मुद्दों पर पकड़ गूगल की सहायता के बिना शून्य है। साथ ही, यह सलाह भी दी कि उन्हें गूगल से नहीं बल्कि इतिहास पढ़कर ज्ञान बढ़ाना चाहिए।
TV 9 चैनल पर डिबेट के दौरान इतिहासकार प्रो. कपिल कुमार ने वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष को सबक सिखाया और उनकी बोलती बंद कर दी। अक्सर नाराज नजर आने वाले पत्रकार आशुतोष को नसीहत देते हुए उन्होंने कहा कि पहले इतिहास पढ़कर आया कीजिए और तभी बहस किया करें।
टीवी पर बहस के दौरान एंकर ने कहा, “क्या देश निर्माण में गोडसे ने इतना बड़ा योगदान दिया? हिंदू राष्ट्र अखबार निकालना या गाँधी अनशन पर थे, पाकिस्तान को ₹55 करोड़ दिया जाना था, उससे नाराजगी, और उसके बाद इस हद तक की गाँधी को मारे बिना कुछ नहीं हो सकता, किताबों में इतिहास में दर्ज है।”
इस पर पत्रकार आशुतोष ने कहा, “क्या अमेरिका के अंदर कैनेडी के हत्यारे की चर्चा होती है? ये जो गोडसे के बारे में बार-बार महिमामंडन करने की कोशिश की जाती है और गाँधी जी की हत्या को जायज ठहराने की कोशिश की जाती है, इसको ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में देखना पड़ेगा। क्या ये तथ्य नहीं है कि जब 11 सितंबर 1948 को जब सरदार पटेल ने गोलवलकर को चिट्ठी लिख कहा था ‘जिस तरीके से आप जहर भरे भाषण देते हैं और उससे जो माहौल बनता है, उस माहौल ने गाँधी जी की हत्या की।’ क्या उन्होंने चिट्ठी में ये नहीं लिखा था कि आरएसएस के लोगों ने मिठाईयाँ बाँटी थी और खुशियाँ मनाई थी?”
आशुतोष ने अपने परिचित नकलची अंदाज में आगे कहा, “क्या ये सच्चाई नहीं है कि गाँधी जी की हत्या के समय सरदार पटेल देश के उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे, और उनके रहते गुरु गोलवलकर को गिरफ्तार किया गया था। गोलवलकर 6 महीने जेल में थे और उसके बाद फिर से वे जेल के अंदर जाते हैं। क्या ये सच्चाई नहीं है कि सावरकर टेक्निकल ग्राउंड पर छूटे थे? जीवन लाल कमेटी ने यह माना था कि आरएसएस का इस हत्या में कोई हाथ नहीं है। हालाँकि, उन्होंने ये कहा था कि इस हत्या में सावरकर का हाथ था। इस समय तक सावरकर की मौत हो चुकी थी।”
आशुतोष को जज्बातों में बहता देखरक एंकर ने कहा, “मैं उस सोच की बात कर रहा, जो कत्ल करती है। चाहे वह सोच राजस्थान के शंभू रैगर की हो या दिल्ली में सिखों की हत्या की हो।” इस पर आशुतोष ने कहा, “जिनकी वो सोच है, वो श्यामा प्रसाद मुखर्जी 1942 में चिट्ठी लिखते हैं, भारत छोड़ो आंदोलन को कुचल दिया जाए।”
हमें गूगल का इतिहास न पढ़ाएँ
इस पर इतिहासकार कपिल कुमार ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा, “इनको (आशुतोष) ये बता दीजिए कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी नहीं होते तो आज का बंगाल नहीं होता। जिन्ना ने जब कलकत्ता माँगा तो कॉन्ग्रेसियों ने क्या किया? पूरा इतिहास पढ़ कर आया कीजिए और तब डिबेट कीजिए। आप हमें गूगल का इतिहास न पढ़ाएँ।”