Sunday, December 22, 2024
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जब ‘मुस्लिमों’ के लिए दीन पहले… तो डॉक्टर उमर एजाज की गिरफ्तारी पर ‘भारत’ क्यों हो बदनाम: समझें कैसे यौन अपराधी के मामले में मीडिया ने हेडलाइन में खेला खेल

लिबरल मीडिया गिरोह का दोहरा चेहरा किसी से छिपा नहीं है। भारत की छवि बिगाड़ने वाली खबरों में भारत का नाम बढ़-चढ़कर हाईलाइट करना इनका पसंदीदा पैटर्न रहा है। इस बार भी उन्होंने कुछ ऐसा ही किया है। अमेरिका में एक भारतीय मूल का मुस्लिम डॉक्टर महिलाओं और बच्चियों की अश्लील वीडियोज रिकॉर्ड करने के आरोप में पकड़ा गया। उसकी बीवी ने खुद इस बात के प्रमाण जाकर पुलिस को दिए। छानबीन में पता चला कि उमर एजाज नाम का डॉक्टर न केवल महिलाओं के अश्लील वीडियोज रिकॉर्ड करता था, बल्कि अचेत अवस्था में सोती महिलाओं के साथ संबंध भी बनाता था।

अब चूँकि ये उमर एजाज मूल रूप से बेंगलुरू का था इसलिए पश्चिमी मीडिया और भारत के लिबरल मीडिया संस्थानों ने हर जगह इसकी पहचान इसके नाम के बजाय भारतीय शब्द से कर दी। अधिकतर हेडलाइन्स में देखा गया कि कैसे ‘भारतीय’ लिखकर ये दिखाया गया कि किसी भारतीय ने जाकर अमेरिका में घृणित कार्य किया है ताकि हर भारतीय शर्मिंदा हो सके।

पश्चिमी मीडिया का उदाहरण लें तो नीचे WION और साउथ मॉर्निंग पोस्ट के उदाहरण साफ तौर पर देखे जा सकते हैं। देख सकते हैं कि डॉक्टर से पहले इंडियान कैसे लिखा गया है।

प्रकाशित हेडलाइन में ‘इंडियन’ शब्द का इस्तेमाल

अब समस्या ये नहीं है कि ये मीडिया संस्थान भारतीय-भारतीय हर जगह लिख रहे हैं। जब उमर भारत से ही अमेरिका गया है तो इसमें उसके नाम के साथ भारतीय लिखने पर कोई समस्या नहीं है, बस आपत्ति है तो मीडिया की मंशा से। क्यों? समझते हैं।

जब कभी भी मुस्लिम व्यक्ति से जुड़ी कोई पॉजिटिव खबर आती है तो मजहब को जानकर उजागर किया जाता है चाहे फिर उसके साथ वहाँ पर भारतीय लिखा जाए या नहीं, लेकिन कोई भी नेगेटिव खबर आते ही सबसे पहले मजहब छिपाने का होता है और भारत का नाम उजागर करने का। अजीब बात ये है कि विदेशी मीडिया ऐसा हर बार नहीं करता। मसलन अगर आरोपित किसी और मुल्क का है तो वो उस देश का नाम भी हेडलाइन में छिपा लेते हैं मगर ‘भारत’ जानकर उसमें लिखते हैं।

ऐसा क्यों किया जाता है ये किसी से छिपा नहीं है।

याद है आपको जब पश्चिम देशों में ग्रूमिंग जिहाद गैंग का खुलासा हुआ था। उस समय भी मीडिया ने ऐसा ही काम किया था। ग्रूमिंग गैंग में शामिल अपराधियों का सबका मजहब एक था, लेकिन उस समय भी उन्हें ‘एशियन ग्रूमिंग गैंग’ और ‘साउथ एशियन गैंग’ जैसे नाम दे दिए गए थे गया।

इस मामले में बहुत चालाकी से ये छिपा लिया गया था कि ये ग्रूमिंग गैंग कैसे सिर्फ गैर मुस्लिम लड़कियों को ही अपना निशाना बनाती थी और इसमें शामिल अपराधी या तो ब्रिटिश पाकिस्तानी मुस्लिम थे या फिर ब्रिटिश बांग्लादेशी मुस्लिम। मगर चूँकि विदेशी मीडिया को ये दोनों मुल्कों को बदनाम करना अपने एजेंडा का हिस्सा नहीं लगा था इसलिए इन्होंने उन्हें एशिन गैंग जैसे नाम दे दिए।

अब इन घटनाओं के ठीक उलट आप याद करके देखिए क्या आपने कभी विदेशी मीडिया में छपी किसी पॉजिटिव स्टोरी में इस तरह मीडिया को भारत का नाम दिखाते देखा है। अगर देश के मुस्लिम बाहर जाकर कुछ देश का नाम रौशन करने लायक कुछ करता है तो वहाँ पर मजहब को तो बताया जाता है लेकिन भारत का नाम लिखने से गुरेज होने लगता है। उस समय उनकी पहचान सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम बताई जाती है और उस देश का नाम लिखा जाता है जहाँ वह वर्तमान में रह रहा हो या कार्यरत हो।

सवाल यही है कि आखिर ऐसे मामलों में ये अप्रोच मीडिया क्यों नहीं दिखाता कि वहाँ भी भारत का नाम लिखे।

ग्रूमिंग गैंग के मामले में पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, मुस्लिम शब्द इस्तेमाल करने में क्या चला जाता या इस मामले में भारतीय मूल का अमेरिकी डॉक्टर लिखने में मीडिया का क्या चला जाता… कुछ नहीं। बस तब इन मीडिया संस्थानों का एजेंडा उलटा पड़ जाता।

सबसे दिलचस्प बात ये है कि लिबरल मीडिया जहाँ ऐसी किसी घटनाओं में आरोपित का मजहब छिपाने से बचते हैं और देश को बदनाम करना चुनते हैं… वहीं दूसरी ओर अगर सामान्य तौर पर देखेंगे तो इस्लामी कट्टरपंथियों की मानसिकता यही होती है कि उनके लिए उनका मजहब पहले होता है बाद में वो उस देश को रखते हैं जहाँ से उनकी जड़े जुड़ी हैं। इस हिसाब से तो फिर चाहे पॉजिटिव खबर हो या नेगेटिव… हर बार इस्तेमाल वही पहचान होनी चाहिए जो उनकी प्राथमिकता है। ऊपर लगाई वीडियो में मौलवी को साफ तौर पर एक मुसलमान को समझाते हुए देखा जा सकता है कि दीन पहले आता है देश बाद में।

मालूम हो कि ऐसा नहीं है कि ये भारत की छवि बिगाड़ने का काम सिर्फ पश्चिमी मीडिया करता है। भारतीय मीडिया इसमें पीछे नहीं है। देख सकते हैं कि कैसे धड़ल्ले से हर जगह सिर्फ इंडियन डॉक्टर लिखा जा रहा है। सोशल मीडिया पर लोग इसका विरोध भी कर रहे हैं हेडलाइन में इंडियन लिखने वालों को अपनी गलती समझ नहीं आ रही। इंडिया टुडे, इकोनॉमिक टाइम्स जैसे बड़े-बड़े संस्थानों ने अपनी खबर की हेडलाइन में इसका प्रयोग किया है। वहीं सबटाइटल आदि में जाकर अपराधी का नाम लिखा है।

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