त्रासदी में डूबा एक शहर। घरों में लबालब पानी। हर ओर हहाकार। चीत्कार के बीच एक लड़की बाहर निकलती है। पानी में डूब चुके सड़क पर फोटोशूट कराती है। तस्वीरें सोशल मीडिया में पोस्ट होती है। वायरल होकर मुसीबतों में घिरे एक शहर के वाशिंदों की जिंदादिली का प्रतीक बन जाती है।
यह तस्वीर पटना की है। नजर आ रही लड़की हैं, अदिति सिंह। निफ्ट पटना में पढ़ती हैं और मॉडलिंग भी करती हैं। यूॅं तो इस फोटोशूट में ऐसा कुछ नहीं है जो अनर्गल हो। अमूमन, त्रासदी में फँसे हर शहर से जिंदादिली की ऐसी तस्वीरें आ ही जाती हैं।
लेकिन दिल्ली में बैठे एक पत्रकार ने इस तस्वीर में कमीनापन देखा। बेशर्मी देखी। क्रिएटिविटी के नाम पर इतने आहत हुए कि फेसबुक पर लिखा, “अगर यह कला है तो इस कला को पटना की बारिश में सबसे पहले डूब जानी चाहिए और कला मुक्त समाज हो।”
कायदे से तो यह त्रासदी व्यवस्था का कमीनापन है। गड्ढे-तालाब भर कर कोठी बनाने की बेशर्मी है। शहर को स्मार्ट बनाने के नाम पर डूबोने की क्रिएटिविटी है। पानी की जमीन सोखने की कलाबाजी है। पहली बारिश में इन सबको डूबना चाहिए ताकि समाज त्रासदी मुक्त हो।
पर पत्रकारिता में गहराते ‘रवीश बुद्धि’ का नमूना ही है कि नवभारत टाइम्स के पत्रकार नरेंद्र नाथ मिश्रा को जिंदादिली में कमीनापन, बेशर्मी और प्रचार की भूख, सब एक साथ दिखे। रवीश बुद्धि पत्रकारिता के चोले में वही असर छोड़ते हैं, जैसा समाज में जड़ बुद्धि। यही कारण है कि ये खुद से असहमति रखने वाले पाठकों की नहीं सुनते। सोशल मीडिया के अपने उन दोस्तों की भी नहीं सुनते जो इनके पेशे (हर आवाज को सम्मान देना) के कारण इनसे जुड़े।
नरेंद्र नाथ मिश्रा के पोस्ट पर अभिजीत भारद्वाज कमेंट करते हैं, “यही अगर फोटो मुम्बई की बाढ़ की रहती तो आप की कलम कहती ‘Sprit of Mumbai’ और बिहार का है तो आप कटाक्ष कर रहे हैं।” अवनीश कुमार लिखते हैं, “क्यों मातम करें, यह बताइए? पटना को बर्बाद सबने किया है। अवैध अतिक्रमण, बिना व्यवस्थित तरीके से मकान बनाना, नाले पर कोचिंग की पार्किंग और नाले से भी नीचे सड़क।”
नरेंद्र नाथ मिश्रा वही पत्रकार हैं जिन्होंने इस साल जुलाई में एक फेक न्यूज को हवा दी थी। दावा किया था कि “मुस्लिम के कुत्ते” की अफ़वाह सुनकर हिन्दू बवाल काटने लगे और बाद में कुत्ते का मालिक हिन्दू निकलने पर शांत हो गए। पटना की इस घटना को लेकर अखबार की जिस खबर को उन्होंने अपने ट्वीट के साथ लिंक किया था, उसमें ऐसा कुछ नहीं था। दावा गलत साबित होने पर भी उन्होंने अपने एंगल के पक्ष में न कोई सबूत पेश किया और न ही अपनी गलती मानी।
वैसे, रवीश बुद्धि ग्रसितों से ऐसी उम्मीद की भी नहीं जा सकती, क्योंकि इससे उनका ‘सारी बातें सही, पर खूॅंटा यहीं गाड़ूँगा’ का दंभ टूटता है। लेकिन, मिश्रा जी बिहार से आते हैं, जहॉं बाढ़ स्थायी समस्या है। संभव है उन्होंने इस दुख को भोगा भी हो। सो, उम्मीद की जानी चाहिए कि अगली बार जब भी जिंदादिली की तस्वीर पर उनकी नजर पड़ेगी तो उन्हें एक लड़की की अदाओं में कमीनापन नहीं दिखेगा। उसके कपड़ों में झॉंक वे बेशर्मी नहीं तलाशेंगे। और न ही उसकी प्रचार की भूख से उनके पेट में मरोड़ उठेगा। वे कमीनेपन, बेशर्मी में डूबी उस व्यवस्था को देख पाएँगे, जो ऐसी हरेक त्रासदी को आमंत्रित कर फिर अगले के इंतजार में बैठ जाती है और बीच के वक्त में अपने आपदा प्रबंधन का प्रचार करती है।
कहाँ से लोग इस तरह का कमीनापन और बेशमी लाते हैं। पटना में फोटोग्राफी के नाम पर जहां लोग मदद के नाम कराह रहे हैं,मौत से संघर्ष कर रहे हैं, क्रिएटिविटी के नाम पर मॉडल का फोटोशूट किया गया।पता है कि उनकी तस्वीर को ट्वीट करने से उन्हें लाभ ही होगा लेकिन उम्मीद करता हूँ यह आखिरी लाभ हो pic.twitter.com/gM4VaEMD1q
— Narendra nath mishra (@iamnarendranath) September 29, 2019
पता है मिश्रा जी इस लेख से आपका प्रचार होगा। लेकिन चाहता हूॅं कि आपको यह लाभ हो। आपकी तरह उम्मीद भी नहीं करता कि ‘यह आखिरी लाभ हो’, जैसा आपने अदिति के लिए ट्वीट करते हुए किया है।