भारत में ‘पेगासस’ के नाम पर एक तरफ जहाँ विपक्ष हल्ला मचाने में जुटा है, वहीं दूसरी ओर इस सॉफ्टवेयर को बनाने और बेचने वाली इजरायली कंपनी NSO ग्रुप ने साफ कह दिया है कि जिन नंबरों की सूची बताकर कहा जा रहा है कि उनकी जासूसी करने के लिए पेगासस का इस्तेमाल हुआ, वह वास्तविक में उनकी न है और न कभी थी।
दिलचस्प बात यह है कि इजरायली कंपनी के एक प्रवक्ता ने यह जानकारी खुद NDTV को दी है। उनका कहना है कि पेरिस के गैर लाभकारी समूह ‘फॉरबिडन स्टोरीज’ ने जो 50 हजार नंबरों का डेटा हासिल किया है, वो उनका है ही नहीं। प्रवक्ता के मुताबिक, वह NSO की लिस्ट न है और न कभी थी। ये केवल मनगढ़ंत जानकारी है। ये नंबर कभी भी NSO कस्टमरों के निशाने में थे ही नहीं। प्रवक्ता ने यह भी बताया कि बार-बार जो इस लिस्ट में शामिल नामों को लेकर कहा जा रहा है वह बिलकुल झूठ और फर्जी है।
उन्होंने कहा कि कंपनी के पास अपने कस्टर के डेटा का एक्सेस नहीं होता है। ऐसे में उन्हें पड़ताल के अंतर्गत जानकारी देना क्लाइंट का काम है। वह ये भी कहते हैं कि यदि आगे NSO को अपनी तकनीक के गलत उपयोग का सबूत मिलता है तो वह इस पर पूरी जाँच करेंगे जैसे कि हमेशा होती थी और होती रहेगी।
द वायर को मानहानि की धमकी
इस संबंध में कंपनी ने एक सार्वजनिक बयान भी जारी किया, जिसमें उन्होंने द वायर की उस एक्सप्लोजिव रिपोर्ट को एक सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें 300 नंबर की लिस्ट देते हुए दावा किया गया था कि हैकिंग के संभावित लक्ष्यों में राहुल गाँधी समेत कई वरिष्ठ पत्रकारों का नाम शामिल था।
इसके साथ ही समूह ने द वायर को संबंधित रिपोर्ट छापने पर मानहानि का मुकदमा दायर करने की धमकी दी। इजरायली फर्म ने अपने वकील क्लेयर लॉक के माध्यम से द वायर को एक पत्र भेजा और निराधार रिपोर्ट छापने पर उन्हें मानहानि की धमकी दी।
मालूम हो कि इस संबंध में पिछले दिनों द वायर और द वाशिंगटन पोस्ट पर ऐसी रिपोर्ट्स पब्लिश हुई हैं, जिनमें दावा किया गया कि NSO ग्रुप के क्लाइंटों ने पेगासस का इस्तेमाल करके अपने प्रतिद्वंदियों को, पत्रकारों को और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं समेत कई को टारगेट किया। लिस्ट में राहुल गाँधी, प्रशांत किशोर का भी नाम है।
भारत सरकार ने नकारे थे दावे
बता दें कि पेगासस को लेकर विपक्ष द्वारा सवाल उठाए जाने के बाद भारत सरकार ने भी अपना बयान जारी करके ऐसे किसी भी जासूसी के आरोप को नकारा था। सरकार ने मामले पर उठाए गए सवालों का जवाब देते हुए कहा था कि पूरी कहानी मनगढ़ंत हैं। इसमें न केवल तथ्यों की कमी है, बल्कि पहले से ही नतीजे बता दिए गए हैं। ऐसा लग रहा है कि ये लोग जाँचकर्ता के अलावा अधिवक्ता और पीठ का भी अभिनय कर रहे हैं। आरोपों का कोई आधार नहीं है और न ही ये सच से संबंधित हैं।