पंजाब में किसानों द्वारा किए जा रहे ‘रेल रोको’ अभियान की वजह से भारतीय रेलवे को काफी नुकसान हो रहा है। इस संबंध में पत्रकार शेखर गुप्ता ने पंजाब सरकार की निष्क्रियता का बचाव करते हुए अव्यवस्था का आरोप उलटा मोदी सरकार पर लगा दिया है। ट्विटर पर ट्वीट करते हुए शेखर गुप्ता ने इस मुद्दे पर मोदी सरकार की आलोचना की।
इस दौरान उन्होंने कहा कि जिस तरह मोदी सरकार रेल यातायात रोक कर विरोध प्रदर्शन को रोकने का प्रयास कर रही है वह गलत है। शेखर गुप्ता के मुताबिक़ सरकार द्वारा ट्रेन को रोकने का निर्णय किसानों को अधीन करने के लिए उठाया गया है। शेखर गुप्ता ने यह भी कहा कि पंजाब के किसानों को धान से मक्का के उत्पादन के लिए आर्थिक सहयोग किया जाए।
शेखर गुप्ता ने अपने ट्वीट में लिखा, “मोदी सरकार जिस तरह रेल यातायात रोक कर पंजाब में हो रहे विरोध प्रदर्शन नियंत्रित कर रही है यह तार्किक नहीं है। किसानों को इस तरह नहीं लुभाया जा सकता है। सरकार को अमरिंदर के साथ काम करना चाहिए और भरोसा जीतना चाहिए। पंजाब के किसानों को धान के बाद मक्का की खेती के लिए आर्थिक सहयोग की ज़रूरत है। दबाव डालने पर प्रतिक्रिया पलट कर वापस आएगी।”
Modi Govt’s handling of Punjab protests by stopping all rail traffic is unwise. Can’t subdue Punjab farmers like this. It must work with Amarinder & restore confidence. Punjab farmer needs incentives to switch to corn & citrus from paddy. Arm-twisting will boomerang.
— Shekhar Gupta (@ShekharGupta) November 9, 2020
मुख्य रूप से शेखर गुप्ता ने दो बिंदुओं का उल्लेख किया है, पहला मोदी सरकार विरोध प्रदर्शन के बीच रेलवे को हरी झंडी दिखाए, जिससे उपद्रव, तोड़फोड़ और हिंसा की गुंजाइश बने। जबकि इसके पहले पंजाब में विरोध प्रदर्शन के दौरान ट्रेन के चालकों के साथ मारपीट की कई ख़बरें सामने आ चुकी हैं।
जब राज्य के अधिकांश रेलवे ट्रैक पर किसानों ने कब्जा कर रखा है ऐसे में रेलवे को पहले की तरह हरी झंडी दिखाना केंद्र सरकार का गलत निर्णय होगा। अगर ऐसे वक्त में केंद्र सरकार शेखर गुप्ता के सुझाव को आधार बनाते हुए ट्रेन चलाती है तो उसमें तोड़फोड़ का ख़तरा होगा। किसान इसी तरह अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखते हैं और ऐसे में ट्रेन चला दी जाती हैं तो वह किसी भी वक्त हिंसक रूप ले सकता है।
जिस तरह शेखर गुप्ता ने अपने ट्वीट में किसानों की चिंता को सिर्फ केंद्र की मोदी सरकार की समस्या बताया है उससे एक और बात स्पष्ट होती है। इन्होंने पूरी सूझ बूझ के साथ अमरिंदर सिंह के हिस्से की भी ज़िम्मेदारी मोदी सरकार पर थोप दी। बेशक केंद्र सरकार देश की कृषि संबंधी नीतियों के लिए बड़े पैमाने पर ज़िम्मेदार है लेकिन यह ज़िम्मेदारी पंजाब सरकार की भी उतनी ही है कि वह किसानों का हित सुनिश्चित करे। क़ानून व्यवस्था राज्य की ज़िम्मेदारी है।
अगर पंजाब सरकार किसानों को रेलवे ट्रैक पर बैठने और ट्रेन के रास्ते में बाधा पहुँचाने से नहीं रोक सकती है। तब इस मामले में रेलवे शायद ही कुछ कर सकता है सिवाय ट्रेन रद्द करने के जिससे तोड़फोड़ और उपद्रव पर लगाम लगाईं जा सके। दूसरा शेखर गुप्ता का सुझाव है कि सरकार किसानों को धान के बाद दूसरी खेती करने के लिए आर्थिक सहयोग प्रदान करे। प्रिंट के संस्थापक द्वारा दिए गए तर्क की खूबी यह है कि वह अपने इस सुझाव पर गलत नहीं हैं लेकिन इस तरह के सुझाव पंजाब में रेल सुविधा शुरू करने का इकलौता समाधान नहीं हो सकते हैं।
On the contrary, the state government is in charge of law and order and should convince the protestors not to block rail tracks and disrupt the movement of essential supplies. Or evict them if they still continue to squat. #IndianRailways cannot risk any damage to their assets. https://t.co/fc4M0SlDsH
— Ananth Rupanagudi (@rananth) November 9, 2020
किसानों को धान की खेती करने से रोकने के लिए आर्थिक सहयोग देने का सुझाव आम दिनों में कारगर साबित हो सकता है जब प्रदेश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन नहीं हो रहे हों। फ़िलहाल रेलवे वापस पहले की तरह शुरू नहीं किया जा सकता है क्योंकि रेलवे ट्रैक पर किसानों ने कब्जा कर रखा है। जिस तरह की कई ख़बरें सामने आई थी कि पंजाब में लोको पायलट के साथ मारपीट की घटना हुई है उससे साफ हो जाता है कि ट्रेन चलने पर राज्य में क्या हालात हो सकते हैं।
पंजाब सरकार की लापरवाही के चलते ठप्प हुए रेलवे ट्रैक
यह पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह किसानों से संवाद करे और जल्द से जल्द उन्हें आंदोलन वापस लेने पर सहमति बनाए। लेकिन इस मामले में पूरी तरह पंजाब सरकार की लापरवाही सामने आई, इस मुद्दे पर पंजाब की कॉन्ग्रेस सरकार की निष्क्रियता से इतना साफ़ है कि वह सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक चमकाने वाले मुद्दों पर सक्रियता दिखाते हैं।
भारतीय रेलवे को ‘रेल रोको’ अभियान की वजह से कुल 500 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। ऑल इंडस्ट्रीज़ एंड ट्रेड फोरम के अध्यक्ष बदिश जिंदल का इस मुद्दे पर कहना है कि राज्य के बिज़नेस में जितना नुकसान हुआ है वह लगभग 500 करोड़ का है। स्टील इंडस्ट्री से लेकर आवश्यक सुविधाओं तक पंजाब लगभग हर चीज़ की कमी महसूस कर रहा है। पंजाब सरकार की लापरवाही और निष्क्रियता के चलते पावर स्टेशन को कोयला नहीं मिल पा रहा है जिसकी पूरे राज्य में बड़े पैमाने पर कमी हो गई है।
उच्च न्यायालय इस मुद्दे पर लगा चुका है पंजाब सरकार को फटकार
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने सरकार द्वारा रेलवे ट्रैक खाली नहीं करा पाने के मुद्दे पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। उच्च न्यायालय ने 29 अक्टूबर को टिप्पणी करते हुए कहा था कि पंजाब सरकार क़ानून और न्याय व्यवस्था नियंत्रित करने में असफल साबित हुई है। इसके अलावा उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर यह भी कहा था कि अगर पंजाब सरकार रेलवे ट्रैक खाली नहीं करा पाती है तो यह माना जाएगा कि सरकार संविधान का पालन नहीं कर पा रही है।
लेकिन इस तरह की तमाम कड़ी प्रतिक्रियाओं के बावजूद पंजाब सरकार अभी तक इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है। एक और उल्लेखनीय बात है कि पंजाब की कॉन्ग्रेस सरकार ने किसानों को केंद्र सरकार के विरुद्ध भड़काने का ही काम नहीं किया बल्कि केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में पारित किए गए कृषि विधेयकों के विरुद्ध सार्वजनिक रूप से विरोध प्रदर्शन भी किया।
कृषि विधेयकों के पारित होने पर भड़का ‘रेल रोको’ अभियान
सितंबर महीने में पंजाब के भीतर रेल रोको अभियान शुरू हुआ था, जिसके बाद सुरक्षा कारणों को मद्देनज़र रखते हुए रेल सेवा बंद कर दी गई थी। रेल सेवा छोटी अवधि के लिए शुरू की गई थी लेकिन पंजाब सरकार रेल ट्रैक खाली नहीं करा पाई थी। सितंबर में केंद्र सरकार ने खेती के क्षेत्र में 3 कृषि विधेयकों का ऐलान किया था। इस विधेयक के तहत उत्पादन से लेकर खरीद के बीच बिचौलियों की भूमिका को ख़त्म करने की बात कही गई थी। इसके बाद विपक्षी दलों ने यह कहते हुए इस विधेयक का विरोध किया था कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य समाप्त करना चाहती है और इस क्षेत्र के दिग्गजों और अमीरों को लाभ पहुँचाना चाहती है। पंजाब सरकार ने केंद्र सरकार द्वारा पारित किए कृषि विधेयक को टालने के लिए एक प्रस्ताव भी पारित किया था।