रवीश कुमार ने अर्णब गोस्वामी की गिरफ़्तारी को लेकर फेसबुक पोस्ट लिखा है। अर्णब गोस्वामी की गिरफ़्तारी क्यों और किस तरह से हुई, इस बारे में आपको पता ही होगा। रवीश कुमार का लेख देर से आया लेकिन उसमें कपड़े धोने से लेकर चाय पीने तक की बातें हैं। उन्होंने वैसे ही लिखा है, जैसे कोई भी वामपंथी तब बोलता है जब उसके मुँह में बाँस डाला जाता है। क्योंकि, उसे भय होता है कि फलाँ विषय पर न बोलने के कारण उसकी रही-सही स्वीकार्यता या लोकप्रियता भी खो जाएगी।
वामपंथी लिखना शुरू ऐसे करते हैं, जैसे किसी को लगे कि रवीश कुमार ने विरोधी खेमे का होते हुए भी कितना बड़ा स्टैंड लिया है। लेकिन, जैसे ही आप आगे बढ़ेंगे, आपको लगेगा कि इसमें कोई बदलाव नहीं है और ये वही रवीश है, जो मधुर शब्दों में जहर फैला रहा है। पहले पैराग्राफ में ही रवीश ने गिरफ़्तारी के तरीकों पर सवाल करते हुए कानून के जानकारों से हवाले से इसे गलत बताया। लेकिन, दूसरे पैराग्राफ में ‘Whataboutery’ शुरू हो जाती है।
इसके तहत वामपंथी उस तकनीक का इस्तेमाल करते हैं कि इसके साथ ऐसा हुआ है तो उसके साथ भी भाजपा शासित राज्य में ऐसा हुआ। जब रवीश बार-बार गरीबों और रोजगार की बात करते हैं, लेकिन उन्हें सोचना चाहिए कि जब 1000 पत्रकारों पर FIR हुई, तब क्या उन्होंने कुछ लिखा? अब सारे वामपंथी लिख कर खानापूर्ति कर रहे हैं। रवीश कुमार सहित सारे साथ में लिख रहे हैं कि वो अर्णब गोस्वामी को पत्रकार नहीं मानते।
अगर अर्णब गोस्वामी के दिमाग में जहर था (आपके हिसाब से), तो क्या उन 1000 पत्रकारों के मन में भी जहर भरा था? रवीश कुमार को तो पिछले 6 साल में देश में कुछ अच्छा दिखा ही नहीं। छोटे-छोटे पत्रकारों को निशाना बनाना रवीश कुमार का पेशा है। इस लेख में भी वो पूछ रहे हैं कि अगर उन्हें कुछ हुआ तो अर्णब गोस्वामी स्टैंड लेंगे? जब ‘पत्रकारिता पर हमला’ होगा तो कोई क्यों नहीं स्टैंड लेगा?
रवीश की इस बकैती पर विस्तृत वीडियो आप इस यूट्यूब लिंक पर देख सकते हैं