Monday, November 18, 2024
Homeरिपोर्टमीडिया'जामिया के जिहादी अगर...': नौकरशाही में संप्रदाय विशेष के घुसपैठ पर सुदर्शन की रिपोर्ट...

‘जामिया के जिहादी अगर…’: नौकरशाही में संप्रदाय विशेष के घुसपैठ पर सुदर्शन की रिपोर्ट आने से पहले विवादों में

सोशल मीडिया पर अब इसी विवादित वीडियो के कारण बवाल हो गया है। संप्रदाय विशेष के कई एक्टिविस्टों और लेफ्ट लिबरल्स ने सुरेश चव्हाणके पर नफरत फैलाने का आरोप लगाया। साथ ही उनके अकाउंट को सस्पेंड करने की माँग की है।

सुदर्शन न्यूज चैनल के एडिटर इन चीफ सुरेश चव्हाणके ने कुछ दिनों पहले अपने चैनल पर एक सीरीज लाने का ऐलान किया। उन्होंने 25 अगस्त को ट्वीट करते हुए बताया कि उनके चैनल पर 28 अगस्त से एक ऐसी सीरिज शुरू होगी, जिसमें वह कार्यपालिका के सबसे बड़े पदों (IAS-IPS) पर संप्रदाय विशेष के लोगों की बढ़ती संख्या पर बात करेंगे। 

इस घोषणा के साथ उन्होंने सीरिज का परिचय देने के लिए एक वीडियो साझा की। इस वीडियो में हम उन्हें कुछ सवाल करते देख सकते हैं। वह दावा करते हैं कि उनकी सीरिज सरकारी नौकरशाही में संप्रदाय विशेष के घुसपैठ का खुलासा करेगी। 

वे पूछते हैं, “आखिर अचानक संप्रदाय विशेष के लोग आईएएस, आईपीएस में कैसे बढ़ गए? सबसे कठिन परीक्षा में सबसे ज्यादा मार्क्स और सबसे ज्यादा संख्या में पास होने का राज क्या है? सोचिए, जामिया के जिहादी अगर आपके जिलाधिकारी और हर मंत्रालय में सचिव होंगे तो क्या होगा?”

सोशल मीडिया पर अब इसी विवादित वीडियो के कारण बवाल हो गया है। संप्रदाय विशेष के कई एक्टिविस्टों और लेफ्ट लिबरल्स ने सुरेश चव्हाण पर नफरत फैलाने का आरोप लगाया। साथ ही उनके अकाउंट को सस्पेंड करने की माँग की है। सैफ आलम नाम के वकील ने इस बीच मुंबई पुलिस में सुरेश के ख़िलाफ़ शिकायत दायर करके केस की जानकारी भी दी।

कई आईएएस-आईपीएस अधिकारियों ने भी इस ट्वीट के खिलाफ़ अपनी राय रखी। वहीं आईपीएस एसोसिएशन ने भी इस वीडियो की निंदा की है। उनके अलावा वामपंथी गिरोह के लोग भी इसे अपने लिए एक ‘मौका’ समझकर ट्वीट कर रहे हैं।

IPS एसोसिएशन व अधिकारियों का रिएक्शन

आईपीएस एसोसिएशन ने ट्वीट करते हुए लिखा, “सुदर्शन टीवी ऐसी न्यूज स्टोरी को बढ़ावा दे रहा है जिसमें सिविल सर्विस के अभ्यार्थियों को उनके धर्म के आधार पर लक्षित किया जा रहा है।”

एसोसिएशन आगे लिखता है, “हम इस प्रकार की साम्प्रदायिक और गैर जिम्मेदाराना पत्रकारिता की निंदा करते हैं।” यहाँ बता दें कि आईपीएस एसोसिएशन भारतीय पुलिस सेवा अधिकारियों का केंद्रीय समूह है। मगर यह कोई सरकारी संस्था नहीं है।

इस संस्था के अलावा कई आईपीएस अधिकारी भी है जो इस वीडियो की निंदा कर रहे हैं। जैसे आईपीएस अधिकारी निहारिका भट्ट ने इसे ‘घृणा फैलाने वाली कोशिश’ करार दिया और कहा कि धर्म के आधार पर अधिकारियों की साख पर सवाल उठाना न केवल हास्यपूर्ण है, बल्कि इसे सख्त कानूनी प्रावधानों से भी निपटा जाना चाहिए। हम सभी भारतीय पहले हैं।

रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी एन.सी. अस्थाना ने भी ट्वीट कर कहा, “अखिल भारतीय सेवाओं के लिए अधिकारियों के चयन में यूपीएससी जैसी संवैधानिक संस्था की अखंडता और निष्पक्षता पर संदेह जताते हुए, वह संवैधानिक योजना के प्रति अविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं।”

इंडियन पुलिस फाउंडेशन ने भी न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी (एनबीएसए), यूपी पुलिस और संबंधित सरकारी अधिकारियों से भी सख्त कार्रवाई करने का आग्रह किया।

सुरेश चव्हाणके के का जवाब

एक ओर जहाँ एसोसिएशन समेत कई अधिकारी ऐसी किसी भी सीरिज को विषैला और नफरत फैलाने वाला बता कर नकार रहे हैं। वहीं दूसरी ओर वामपंथी इस मौके का फायदा उठा कर अपना अलग एजेंडा चला रहे हैं।

लेकिन ये गौर करने वाली बात है कि अभी प्रोग्राम ऑन एयर नहीं हुआ है और कोई नहीं जानता कि इसमें क्या दिखाया जाएगा। सारा बवाल सुदर्शन न्यूज के एडिटर इन चीफ की कुछ सेकेंड की वीडियो पर है। ऐसे में सुरेश चव्हाणके ने ऐसे लोगों को जवाब देते हुए कहा है कि ये प्रोग्राम आईपीएस और आईएएस अधिकारियों पर नहीं है। बल्कि चयन प्रक्रिया पर है। उनका दावा है कि इसमें जाकिर नाइक तक का हाथ है।

वामपंथियों की राय

इस वीडियो पर बवाल होने के बाद संजुक्ता बासु ने लिखा, “दक्षिणपंथियों के दिमाग में कोई तर्क नहीं है। सिर्फ़ संप्रदाय विशेष के प्रति घृणा है। बेवकूफाना थ्योरी है कि संप्रदाय विशेष वर्षों से बहुसंख्यक बनने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन फिर भी जनसंख्या का 14% है। सालों से चल रहा रैकेट अब भी यूपीएससी में केवल 5% है। इनका जनसंख्या के समान अनुपात भी नहीं है।”

तहसीन पूनावाला ने सुदर्शन चैनल पर नफरत फैलाने के लिए कार्रवाई करने की माँग करते हैं। साथ ही उनके ख़िलाफ शिकायत भी की। विजेता सिंह ने आईपीएस एसोसिएशन को सलाह दी कि सुदर्शन न्यूज चैनल नोएडा में हैं, इसलिए वे वहाँ इसके ख़िलाफ़ शिकायत करें।

बता दें, वामपंथियों की ऐसी प्रतिक्रियाओं पर कुछ यूजर्स पलटवार कर रहे हैं। लगातार इनसे पूछा जा रहा है कि विषम दिनों में ऐसा कुछ हो तो उनके लिए प्रेस फ्रीडम खतरे में आ जाती है और सामान्य दिनों में ये केस फाइल करने की सलाह देते हैं।

वामपंथियों की प्रतिक्रिया पर पलटवार

आईपीएस/ आईएएस और बड़े बड़े अधिकारियों की आपत्ति देखकर वामपंथी पत्रकार जो अपना एजेंडा चला रहे हैं, उसको ध्वस्त करने के लिए उनकी रिपोर्ट्स के कुछ स्क्रीनशॉट शेयर किए जा रहे हैं।

कुछ पुराने मामलों पर लोगों का ध्यान आकर्षित करवा कर बताया जा रहा है कि डेटा के नाम पर हिंदुओं को टारगेट करने का काम लिबरल मीडिया लंबे समय से करता आया है। इसकी कभी कोई निंदा नहीं हुई। लेकिन, आज मौके का फायदा उठा कर यही मीडिया अधिकारियों को राय दे रहा है।

लोगों का कहना है कि पुलवामा जैसे मसले पर यही मीडिया जवानों की जाति ढूँढ लाया था और फौजियों को भी ब्राह्मण-दलित में बाँटने का प्रयास किया था।

इसके अलावा द न्यूज मिनट के लेख का वह स्क्रीनशॉट शेयर किया जा रहा है जिसमें राजदीप ने दावा किया था कि कपिल देव के समय तक क्रिकेट अर्बन ब्राह्मण हुआ करता था। इसके बाद ऐसे ही द वायर का एक ट्वीट है जिसमें द वायर मेडिकल प्रोफेशन में ब्राह्मणों और बनिया लोगों का आधिपत्य बताने से नहीं चूकता और द कारवाँ की एक खबर में यूनिवर्सिटी के वीसी पद पर ऊँची जाति और हरिजन का मामला उठता है।

केवल यूपीएससी की बात करें, तो युगपरिवर्तन का शेयर करके सवाल उठाया जा रहा है कि आखिर हार्ड डेटा में बात करने में दिक्कत है, क्योंकि कई परीक्षाओं के इंटरव्यू स्टेज पर आकर भेदभाव साफ देखने को मिला है।

हर्ष मधुसुदन इस लेख को शेयर करते हुए गौर करवाते हुए कहते हैं, “जो मुस्लिम औसत नंबर पर चुने जाते हैं, उन्हें सामान्य कैटेगरी के अभ्यर्थी से 13 नंबर ज्यादा मिलते हैं। वहीं, एससी/ओबीसी को भी इंटरव्यू स्तर पर कम नंबर मिलते हैं (6.65 और 2.60 क्रमश:)”

बता दें कि पिछले साल जकात फाउंडेशन के 18 छात्रों ने यूपीएससी एग्जाम उत्तीर्ण किया था। इसके बाद भारतीय प्रशासन में इस्लामिक प्रभाव बढ़ता साफ नजर आया। चिंता की बात यह है कि जकात फाउंडेशन इस्लामिक सिद्धांतों पर शुरू हुआ एनजीओ है, जो छात्रों को सिविल सर्विस की परीक्षा के लिए कोचिंग भी देता है। शाह फैसल इसी कोचिंग के एलुमिनी हैं, जिन्होंने साल 2010 में सिविल परीक्षा टॉप की और भारत को बाद में रेपिस्तान कहा।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

मणिपुर सरकार से बाहर हुई NPP, दिल्ली में मैतेई महिलाओं का प्रदर्शन: अमित शाह की हाई लेवल मीटिंग, 2 साल के बच्चे-बुजुर्ग महिला की...

NPP ने मणिपुर की NDA सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है। NPP ने यह फैसला मणिपुर में हाल ही में हुई हिंसा के बाद किया है।

40 साल से जहाँ रह रहा दलित परिवार, अब वहीं से पलायन को हुआ मजबूर: दरवाजे पर लिखा- ये मकान बिकाऊ है, क्योंकि मुस्लिम...

इंदौर के दलित युवक राजेश ने बताया कि शादाब और अन्य मुस्लिम एक पुराने केस में समझौते का दबाव बनाते हुए उनके परिवार को धमकी देते हैं।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -