‘सेक्युलर-लिबरल’ मीडिया गिरोह देशभर के हिंदुओं को निशाना बनाने के लिए अक्सर प्रोपेगेंडा फैलाता रहता है। वे लगातार ऐसा माहौल बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं जिससे लगे कि देश में सांप्रदायिक हिंसा का कोई भी हिंदू पीड़ित नहीं है।
इसी प्रोपेगेंडा को भारत-विरोधी दुष्प्रचार के लिए पहचान रखने वाली वामपंथी पोर्टल द वायर ने पालघर मॉब लिंचिंग मामले में भी बढ़ाया था। महाराष्ट्र के पालघर में 16 अप्रैल 2020 को दो साधुओं और उनके ड्राइवर की भीड़ ने निर्मम तरीके से हत्या कर दी थी।
वायर ने दावा किया था दोनों साधु गैर-अधिसूचित जनजाति (denotified tribes) के थे और उनकी हत्या सांप्रदायिक हिंसा नहीं थी।
‘द वायर’ ने अपनी रिपोर्ट में दोनों मृतक व्यक्तियों- 70 वर्षीय कल्पवृक्ष गिरि और 35 वर्षीय सुशील गिरि को गोसावी खानाबदोश जनजाति से संबंधित बताया। साथ ही कहा कि उनके लिंचिंग का कोई धार्मिक एंगल नहीं था और वे भी ईसाई बने पालघर के आदिवासियों की तरह इसी समुदाय से ताल्लुक रखते थे। द वायर की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि वे हिंदू नहीं थे और न ही साधु।
रिपोर्ट में कहा गया कि 70 वर्षीय कल्पवृक्ष गिरि ने भगवा पहन रखा था और ट्विटर पर उन्हें ‘हिंदू’ और ‘साधु’ बताया जाने लगा। लेकिन, सामाजिक कार्यकर्ता और गोसावी समुदाय के नेताओं का कहना है कि दोनों मृतक घुमंतू जनजाति (nomadic tribal) से संबंध रखते थे।
सिद्धार्थ वर्दराजन द्वारा साधुओं को खानाबदोश जनजातियों का बताना
पत्रकार स्वाति गोयल शर्मा के अनुसार, द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए भी यह दावा किया था कि “साधु खानाबदोश जनजातियों से संबंधित” थे। शर्मा ने इस मुद्दे को आगे बढ़ाते हुए यह बताया है कि कैसे ये पोर्टल्स इस तथ्य को दरकिनार करने की कोशिश कर रहे थे कि साधु हिंदू थे। इसके बाद ‘द वायर’ की पत्रकार सुकन्या शांता ने उन्हें ब्लॉक भी कर दिया।
In a recent interview to @MnshaP of Newslaundry, Mr Vardarajan @svaradarajan repeated the misinformation that sadhus lynched in Palghar were adivasi tribals.
— Swati Goel Sharma (@swati_gs) May 6, 2020
They were NOT tribals. They were born in Tiwari and Dubey families in UP, as reported by multiple other publications pic.twitter.com/WCv456S9Hb
न्यूजलॉन्ड्री के मनीषा पांडे को दिए इंटरव्यू में वरदराजन गलत सूचना को दोहराया कि पालघर में जिन साधुओं की लिंचिंग हुई वे आदिवासी थे। अक्सर मीडिया नैतिकता पर व्याख्यान करने वाली न्यूजलॉन्ड्री की एंकर ने ‘द वायर’ के संस्थापक संपादक को सही करने की जहमत भी नहीं उठाई।
पालघर की लिंचिंग पर प्रिंट द्वारा गलत जानकारी देना
‘द प्रिंट’ जिसने हमेशा गैर-हिन्दुओं के अपराधों को छुपाया है, उसने पालघर पर झूठे प्रचार का सहारा लिया था। उसने बताया कि दोनों साधु गोसावी जनजाति के थे, जबकि इस जानकारी का कोई स्रोत नहीं था।
दो मृतक साधु ब्राह्मण समुदाय से थे
जैसा कि लिबरल-धर्मनिरपेक्ष मीडिया ने साधुओं की पहचान के बारे में गलत सूचना फैलाने का सहारा लिया, वैसे ही कई स्वतंत्र मीडिया संगठनों ने ग्राउंड रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए कहा कि साधु आदिवासी समुदाय के थे।
दैनिक भास्कर और न्यूज चैनल आजतक की ग्राउंड रिपोर्ट बताती है कि दोनों साधुओं का जन्म उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण हिंदू परिवारों में हुआ था। दोनों ने किशोरावस्था से पहले अपने परिवारों को संन्यासी बनने के लिए छोड़ दिया था।
द वायर द्वारा अपनी जानकारी की रिपोर्ट को सही करना
पालघर में नृशंस भीड़ हत्या के पीड़ितों की पहचान को लेकर फर्जी खबर चलाने के लगभग एक महीने बाद ‘द वायर‘ ने चुपचाप अपनी रिपोर्ट को एडिट करते हुए यह दावा किया है कि दोनों साधु ब्राह्मण परिवारों से थे, जो कि उनकी पिछली रिपोर्ट के एकदम विपरीत है। पुरानी रिपोर्ट में दावा किया गया था कि वे गोसावी आदिवासी समुदाय से थे।
पालघर में मॉब लिंचिंग की घटना
16 अप्रैल 2020 को, जूना अखाड़े से जुड़े साधु कल्पवृक्ष गिरि महाराज और सुशील गिरि महाराज के साथ उनके ड्राइवर 30 वर्षीय नीलेश तेलगुदेवे की हत्या कर दी गई थी। 100 से अधिक लोगों की उन्मादी भीड़ ने उन पर हमला किया था। कहा जा रहा था कि ग्रामीणों ने उन्हें चोर समझ लिया और उन पर हमला करना शुरू कर दिया।
पुलिस ने दावा किया कि उनकी टीम उन्हें बचाने के लिए घटनास्थल पर पहुँची थी, मगर वे भी हिंसक भीड़ के निशाने पर आ गए थे। लेकिन बाद में कुछ वीडियो सामने आए, जिन्होंने पुलिस के दावे को पूरी तरह से खारिज कर दिया।
इन वीडियो में साधु पुलिस की हिरासत में दिख रहे थे और पुलिसकर्मियों ने उन्हें भीड़ के हवाले कर दिया। भीड़ ने पुलिसकर्मियों के सामने उन्हें तब तक पीटा जब तक उनकी मौत नहीं हो गई। बाद में, यह भी पता चला कि साधुओं की हत्या जान-बूझकर की गई थी। हत्या के मामले में अल्ट्रा-लेफ्ट लिंक्स की भूमिका सामने आई है। बताया जा रहा है कि साधुओं की मॉब लिंचिंग में मुख्य आरोपित का सम्बन्ध अल्ट्रा-लेफ्ट समूहों से है।