10 दिन पहले प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने TRP मामले में प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट यानी ECIR दर्ज की। ECIR पुलिस एफआईआर के समतुल्य होती है। ईडी मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों और उन सभी चैनल की जाँच करेगी, जिनका उल्लेख ओरिजनल एफआईआर (FIR) में किया गया है।
10 दिनों के बाद, ऑपइंडिया को पता चला है कि ईडी ने पहले ही हंसा रिसर्च के अधिकारियों को तलब किया है, जिनके FIR के आधार पर मूल जाँच शुरू की गई थी। बता दें कि हंसा रिसर्च द्वारा की गई प्रारंभिक एफआईआर में इंडिया टुडे और कुछ स्थानीय चैनलों को कथित टीआरपी घोटाले में मुख्य आरोपित के रूप में दर्ज किया गया था। हालाँकि, मुंबई पुलिस कमिश्नर परम बीर सिंह ने इस एफआईआर के दर्ज होने के 48 घंटों के भीतर ही एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया और अर्णब गोस्वामी के मीडिया चैनल ‘रिपब्लिक टीवी’ पर टीआरपी घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया।
दिल्ली ईडी के सूत्रों के मुताबिक, ईडी द्वारा पूछताछ किए जाने के दौरान हंसा रिसर्च ने इंडिया टुडे का नाम लिया था न कि रिपब्लिक टीवी का। इसके अलावा, जब दो BARC अधिकारियों को तलब किया गया, एक उनके सतर्कता विभाग से और दूसरा IT विभाग से, दोनों ने यह बताया कि मुंबई पुलिस ने BARC से कोई भी रॉ डेटा नहीं लिया था।
यहाँ रॉ डेटा का मतलब लगाए गए बार-ओ-मीटर के डिटेल से है। हंसा रिसर्च समूह प्राइवेट लिमिटेड द्वारा की गई शिकायत में आरोप लगाया गया था कि BARC द्वारा लगाए गए बार-ओ मीटर के साथ बदलाव किए जाते हैं। यह समूह BARC द्वारा तैयार किए गए बार-ओ मीटर इंस्टॉल करता है। हंसा रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में इंडिया टुडे का नाम लिया। आरोप है कि वो जिन घरों में बार-ओ मीटर लगे हुए हैं उन्हें रुपए का लालच तक देते थे जिससे वह अपना टीवी चालू रखें।
प्रवर्तन निदेशालय द्वारा BARC अधिकारियों की पूछताछ के दौरान यह प्रमुख चूक सामने आई, जो अब मनी लॉन्ड्रिंग एंगल से TRP के मामले में दिख रही है। BARC ने ED को बताया कि मुंबई पुलिस द्वारा बुलाए जाने के बावजूद, उन्होंने BARC के बुनियादी रॉ डेटा के लिए नहीं पूछा, जो कि इस जाँच का शुरुआती बिंदु होना चाहिए।
ईडी के सूत्रों ने यह भी खुलासा किया है कि BARC अधिकारियों को जाँच के लिए 48 घंटों के भीतर आँकड़ों के साथ तलब किया गया है। ऑपइंडिया को बताया गया है कि इस जाँच के पूरी हो जाने के बाद इंडिया टुडे के अधिकारियों को पूछताछ के लिए बुलाया जाएगा।
गौरतलब है कि 8 अक्टूबर को आयोजित एक प्रेस वार्ता में मुंबई पुलिस कमिश्नर ने रिपब्लिक टीवी और अर्णब गोस्वामी पर कई गम्भीर आरोप लगाए थे। उन्होंने दावा किया था कि चैनल ने टीआरपी से जुड़ी जानकारी में बदलाव करने के लिए आम लोगों को पैसे दिए थे और उनसे कहा गया था कि वह उनका चैनल चलाकर अपना टीवी ऑन रखें।
हालाँकि, उसी दिन देर शाम तक रिपब्लिक टीवी ने सबूतों के साथ अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को खारिज करते हुए बताया कि असली रिपोर्ट में उनके चैनल का नाम कहीं भी नहीं है, बल्कि उन पर सवाल उठाने वाले इंडिया टुडे का नाम ओरिजनल एफआईआर में है। इसके बाद इंडिया टुडे और मुंबई पुलिस की मंशा पर सवाल खड़े हो गए। बाद में मुंबई पुलिस कमिश्नर को मानना भी पड़ा था कि एफआईआर में इंडिया टुडे का नाम है।
इंडिया टुडे शुरुआती जश्न मनाने केे बाद एफआईआर में नाम आते ही डैमेज कंट्रोल मोड में चला गया। राजदीप सरदेसाई मुंबई पुलिस से बात करते हुए एक बयान लेने की कोशिश कर रहे थे कि एफआईआर में इंडिया टुडे का नाम नहीं है। उन्होंने कहा, “यह बताने का प्रयास किया गया है कि एफआईआर में इंडिया टुडे का उल्लेख किया था” और फिर खुद को बेहतर बनाने और रिपब्लिक टीवी को फँसाने के लिए स्पष्टता की माँग की। हालाँकि, ज्वाइंट कमिश्नर ने स्वीकार किया कि वास्तव में एफआईआर में इंडिया टुडे का नाम था।
इस मामले में एक ऑडियो सामने आया था जिसमें मुख्य चश्मदीद तेजल सोलानी ने रिपब्लिक टीवी के पत्रकार से बात करते हुए कई बातें स्वीकार की थी। उसका कहना था कि उसके बेटे को टीआरपी में बदलाव के लिए इंडिया टुडे समूह से रुपए मिलते थे। तेजल सोलानी उन 5 लोगों के समूह में शामिल थे जिनके आधार पर टीआरपी के मामले में गिरफ्तारी हुई थी। एक और खुलासे के अनुसार विशाल भंडारी ने पूछताछ में बताया था कि ऑडिट टीम ने पैनल के एक घर का दौरा किया था। जिसके बाद वहाँ रहने वालों ने बताया कि उन्हें इंडिया टुडे 2 घंटे ज्यादा देखने के लिए भुगतान किया जाता था।
FIR में इंडिया टुडे समूह का नाम शामिल होने की बात सामने आते ही उसे खूब फ़जीहत का सामना करना पड़ा था। चश्मदीद ने ऑडियो में स्पष्ट तौर पर इंडिया टुडे का नाम लिया था। एक ऐसे लोगों का समूह जिसकी अगुवाई राजदीप सरदेसाई जैसा व्यक्ति कर रहा हो उससे नैतिकता की आशा करना अप्रत्याशित है। इस बात की कल्पना की जा सकती कि ऐसे में आखिर किस तरह इंडिया टुडे समूह के लोगों को समझ होगी कि वह निरर्थक ख़बरें देना बंद करें।
वहीं बार और बेंच की रिपोर्ट के अनुसार बॉम्बे हाई कोर्ट में दायर याचिका में हंसा रिसर्च ने आरोप लगाया था कि पुलिस उनके कर्मचारियों को फर्जी बयान जारी करने के लिए दबाव बनाने की रणनीति अपना रही है। साथ ही रिपब्लिक टीवी द्वारा जारी एक डॉक्यूमेंट को फर्जी करार देने के लिए कह रही है।
हंसा रिसर्च की रिपोर्ट, जिसके आधार पर टीआरपी मामले में एफआईआर दर्ज की गई थी, उसमे सिर्फ इंडिया टुडे के नाम का उल्लेख करते हुए कहा गया था कि इंडिया टुडे चैनल को देखने के लिए बार-ओ-मीटर वाले ने घरों को रिश्वत दिया था। वहीं पुलिस द्वारा लगाए गए आरोप के विपरीत इसमें रिपब्लिक का नाम नहीं था। इसके अलावा एफआईआर में भी इसका जिक्र नहीं है।
याचिका में कहा गया, “याचिकाकर्ताओं को लगातार क्राइम ब्रांच में लंबे समय तक रखा जाता है और गिरफ्तारी की धमकी दी जाती है और बार-बार झूठे बयान देने के लिए दबाव बनाया जाता है।”
याचिका हंसा समूह के निदेशक नरसिम्हन के स्वामी, सीईओ प्रवीण ओमप्रकाश और नितिन काशीनाथ देवकर की तरफ से दायर किया गया है। याचिका में कहा गया कि पुलिस को पहले ही बताया जा चुका है कि तथ्यों के आधार पर निर्णय लिया जा रहा है कि रिपब्लिक द्वारा दिखाए गए डॉक्यूमेंट सही है या नहीं।
हंसा द्वारा दायर याचिका में यह भी कहा गया है कि उनके अधिकारियों से बिना लिखित सूचना के पूछताछ की जा रही है और उन्हें दस्तावेज तैयार करने का समय भी नहीं दिया गया है। याचिकर्ताओ पर इसके लिए दबाव भी बनाया गया।
कंपनी का कहना था कि उसके कर्मचारियों को मुंबई पुलिस द्वारा परेशान किया गया, क्योंकि उन्होंने रिपब्लिक टीवी के खिलाफ गलत बयान देने से इनकार कर दिया था। हंसा रिसर्च ने यह भी बताया है कि यह टीआरपी हेरफेर मामले में वे शिकायतकर्ता थे और अब उन्हें ही पुलिस द्वारा परेशान किया जा रहा है।
यह सब इस तथ्य से जुड़ा है कि मुंबई पुलिस ने कथित तौर पर BARC से रॉ डेटा की माँग नहीं की है, जो कि जाँच का शुरुआती बिंदु होना चाहिए था। यह इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि जाँच को रोक दिया गया है। अब ईडी तह में जाकर इस मामले की जाँच कर रही है।