केंद्र सरकार ने गुरुवार (28 फ़रवरी) को आतंकवादी संगठन जमात-ए-इस्लामी पर पाँच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया है।
गृह मंत्रालय ने सुरक्षा मामले पर एक उच्च स्तरीय बैठक के बाद इस संबंध में एक अधिसूचना जारी की, जिसकी अध्यक्षता ख़़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की।
ख़बरों के अनुसार, संगठन को ग़ैरक़ानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम के तहत इस आधार पर प्रतिबंधित कर दिया गया था कि यह राज्य में आतंकवादी संगठनों के साथ ‘लगातार संपर्क में’ था और राज्य में ‘अलगाववादी आंदोलन को आगे बढ़ाने’ की फिराक में था। यह भी कहा गया कि यह आतंकी संगठन जम्मू-कश्मीर और अन्य जगहों पर उग्रवाद और आतंकवाद का समर्थन करता है।
गृह मंत्रालय द्वारा जारी की गई अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि जमात-ए-इस्लामी संगठन ने भारत की क्षेत्रीय अखंडता को बाधित करने के इरादे से गै़रक़ानूनी गतिविधियों को शुरू किया था।
गृह मंत्रालय द्वारा यह क़दम जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा 22 और 23 फरवरी को घाटी में जमात के 100 कैडरों को गिरफ़्तार करने के बाद उठाया गया है। गिरफ़्तार किए गए लोगों में आतंकी संगठन के प्रमुख अब्दुल हामिद फैयाज़ और प्रवक्ता वकील ज़ाहिद अली शामिल है। पुलिस की इस कार्रवाई के बाद महबूबा मुफ्ती ने जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की निंदा की थी। इसके अलावा पूर्व राज्यमंत्री सज्जाद लोन ने इस कार्रवाई पर सवालिया निशान लगाए थे।
बता दें कि पुलवामा आत्मघाती हमले के बाद भारत की ओर से कई कड़े क़दम उठाए गए हैं उन्हीं में से एक यह भी है।
आतंकी संगठन जमात की उत्पत्ति कश्मीर में इस्लामिक डोगरा आंदोलन में निहित है। इस ग्रुप ने मौलाना मौदूदी (Maulana Maududi) की विचारधारा का पालन किया, जिन्होंने ब्रिटिश शासन का विरोध किया और मुस्लिम लीग के विभाजन के लिए एक अलग मुस्लिम राज्य बनाने का प्रस्ताव भी रखा था। मौदुदी समग्र राष्ट्रवाद के ख़िलाफ़ था। जिसने एक इस्लामिक राज्य की वकालत करने के बजाय पूरे अविभाजित भारत को कवर करने वाले इसे ‘डार अल-इस्लाम’ में बदल दिया।
बँटवारे के समय, जमात ने पाकिस्तान में शामिल होने के लिए राज्य का पक्ष लिया था। इस दौरान अधिकांश लोग कश्मीरी शेख़ अब्दुल्ला के आसपास रैलियाँ करते भी दिखाई दिए।