पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में भारतीय सेना की चीनी सैनिकों से झड़प के बाद मीडिया में एक बात को प्रमुखता से प्रकाशित किया जा रहा है कि पिछले 45 सालों में पहली बार चीनी सेना के हाथों भारतीय सेना का खून बहा है। ये वही मीडिया और तंत्र है, जो हमेशा ही इस अक्साई चीन क्षेत्र को ‘विवादित क्षेत्र’ बनाने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के इस क्षेत्र के ‘महत्त्व’ पर दिए गए ऐतिहासिक बयान को सामने रखने में हिचकिचाता रहा है।
यह मीडिया दर्शकों, और अपने पाठकों को इस सूचना से वंचित रखता है कि इस अक्साई क्षेत्र में इतिहास में पहली बार भारत ने अपने निर्माण कार्य शुरू किए हैं, जो कि चीन की बौखलाहट का प्रमुख कारण बना हुआ है। यह सब कुछ ऐसे समय में घटित हुआ है, जब कुछ ही दिन पहले मीडिया में चीन द्वारा अपने सैनिकों को इस क्षेत्र से करीब डेढ़ किलोमीटर पीछे बुला लेने के समाचार देखे गए थे।
आज की घटना के बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने भी इस झड़प को लेकर दोष पूरी तरह से भारतीय सेना पर डालते हुए कहा है कि सोमवार को भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा का गंभीर तौर पर उल्लंघन किया है। इस सबके बीच गलवान घाटी में पिछले कुछ समय से बढ़ रही गतिविधियों पर चर्चा किया जाना आवश्यक है।
सोमवार रात को दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई। जिस क्षेत्र में यह घटना हुई वो पूरा इलाका सामरिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। इस झड़प के दौरान दो परमाणु संपन्न देशों – भारत और चीन के जवान डंडो और पत्थरों से आपस भीड़ गए।
इस लाठीबाजी और पत्थरबाजी में जहाँ भारतीय सेना ने अपने एक अधिकारी और दो सैनिकों को खोया तो वहीं चीन अपने सैनिकों के ‘हताहत’ होने की बात तो स्वीकार कर रहा है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से नहीं कह रहा है कि चीन के कितने सैनिक इस झड़प में मारे गए। लेकिन कोरोना जैसी वैश्विक त्रासदी का सृजन करने वाला यह कम्युनिस्ट देश किसी सच को स्वीकार करे, यह आशा करना भी महज एक छलावा है। हालाँकि, अभी हताहतों की संख्या बढ़ने की भी खबर है।
दरअसल, वर्ष 1975 में लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल यानी, एलएसी पर चीन ने घात लगाकर हमला किया था, जिसमें चार भारतीय सैनिकों ने जान गँवाई थी। तभी से दोनों देशों में झड़प तो कई बार हुई, लेकिन जान किसी की कभी नहीं गई। बीते एक माह में लद्दाख के इस क्षेत्र में कई मौकों पर भारत और चीन की सेनाएँ आमने-सामने हुईं हैं। दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई हाथापाई के वीडियो सोशल मीडिया पर भी शेयर किए गए।
जिस पूरे इलाके में आजकल चायनीज सेना और भारतीय सेना के बीच गतिविधियाँ तेज हुईं हैं, वह गलवान घाटी इस पूरे इलाके में सबसे ऊँचाई पर स्थित है। यह ऐसी जगह है, जहाँ से लम्बी दूरी तक नजर रखी जा सकती है, साथ ही इस जगह से उस सड़क को भी आसानी से निशाना बनाया जा सकता है, जहाँ से भारतीय सेना रसद और हथियारों की सप्लाई करती है। चीन की बौखलाहट का कारण भी यह सड़क ही है।
भारत ने हाल ही में इस क्षेत्र में सड़क निर्माण किया है। जिसका कि चीन की कम्युनिस्ट सरकार की ओर से काफी विरोध किया गया था। जबकि, भारत ने चीन के विरोध के बावजूद अक्साई चीन पर भारत के नियन्त्रण पर चीन को किसी ग़लतफ़हमी में ना रहने का सन्देश दिया। इसी जगह पर स्थित पैंगॉन्ग लेक का एक हिस्सा जहाँ भारत में आता है, तो वहीं दूसरा हिस्सा चीन में।
इसी गलवान घाटी से कुछ ही दूरी से अक्साई चिन का वो क्षेत्र शुरू हो जाता है, जिस पर चीन वर्ष 1962 से ही अवैध रूप से अपना अधिकार बताता आया है। इतने वर्षों बाद भारत ने चीन द्वारा इस क्षेत्र में किए जा रहे अवैध निर्माणों के विरोध में स्पष्ट कर दिया था कि ये क्षेत्र भारतीय सीमा के अंतर्गत आता है, और इसमें चीन का हस्तक्षेप किसी भी हाल में स्वीकार नहीं किया जाएगा।
चीन चाहता है कि वह इस इलाके में अपना प्रभुत्व स्थापित कर भारतीय सेना पर निरंतर नजर रख सके। लेकिन उसे ऐसा करने में पहली बार समस्या का सामना करना पड़ रहा है। यही कारण है कि भारतीय सैनिकों के बलिदान की आड़ लेकर वामपंथी मीडिया से लेकर कॉन्ग्रेस जैसे दल भी भारतीय सेना के बलिदान पर चिंतित नजर आ रही है। यह चिंता और कुछ नहीं, बल्कि केंद्र सरकार की कार्यशैली को लेकर जनता को गुमराह करना मात्र है। वरना यह वही विपक्षी दल है, जो हमेशा से ही भारतीय सेना के अधिकारों पर भद्दे चुटकुले बनाते और उनका समर्थन करते देखे गए हैं।
इसके अलावा अक्साई चीन क्षेत्र में चीन की सेना की बढ़ती गतिविधियों का एक और प्रमुख कारण चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का अपने ही देश और विश्वभर में कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर हो रहा विरोध प्रदर्शन भी है। ऐसे में चीन से कई बड़े निवेशकों द्वारा अपना निवेश वापस खींच लेने के कारण बढ़ी आर्थिक मंदी के कारण पार्टी पर जिनपिंग की पकड़ कमजोर हो रही है।
एक लम्बे समय से ही चीन की कम्युनिस्ट सरकार अपने पैसे के बल पर पूरे विश्वभर में ही संस्थाओं को प्रभावित करने में सक्षम रहा है। सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा की मीडिया को खरीदने और उन्हें प्रभावित करने की खबरें भी निरंतर मीडिया में बनी हुई हैं। ये वो दल हैं जो चीन की ओर से कम्युनिस्ट सरकार के हितों की ढाल का काम कर रहे हैं।
ऐसे में भारतीय मीडिया द्वारा भारतीय सेना के बलिदान को 45 साल में हुए पहले ‘खूनी संघर्ष’ जैसी सनसनीखेज ख़बरों से पाटने के बजाए चीन का वास्तविक मर्म सामने रखना चाहिए, जो कि केंद्र सरकार और भारतीय सेना द्वारा अक्साई चीन क्षेत्र में दिखाया जा रहा साहस ही है और यही बौखलाहट चीन की कम्युनिस्ट सरकार के खोखलेपन को सामने रखने के लिए काफी है।