Tuesday, March 19, 2024
Homeविचारराजनैतिक मुद्देलद्दाख में घास नहीं जमती, कश्मीर मुस्लिम बहुल: नेहरू कृपा से आज फिर खड़े...

लद्दाख में घास नहीं जमती, कश्मीर मुस्लिम बहुल: नेहरू कृपा से आज फिर खड़े हैं अक्साई चीन पर सैनिक

सरदार पटेल के पत्र जवाब में नेहरू ने लिखा, "तिब्बत के साथ चीन ने जो किया, वह गलत था, लेकिन हमें डरने की ज़रूरत नहीं। आख़िर हिमालय पर्वत स्वयं हमारी रक्षा कर रहा है। चीन कहाँ हिमालय की वादियों में भटकने के लिए आएगा?"

आज ही अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक ट्वीट में कहा है कि वे भारत और चीन के बीच सीमा विवाद में मध्यस्थता को तैयार हैं। दिलचस्प बात यह है कि आज ही भारत के नाम हर प्रकार के सीमा विवाद करने के बाद खुद को भारत रत्न देने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री और लार्ड माउंटबेटन के अच्छे दोस्त जवाहर लाल नेहरू की भी पुण्यतिथि है।

तिब्बत पर चीन के बलात कब्जे के बाद तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने नेहरू को चीन की ओर से सतर्क रहने की ओर इशारा भी किया था। 1950 के अक्टूबर में जवाहरलाल नेहरू को लिखे एक पत्र में सरदार पटेल ने चीन तथा उसकी तिब्बत के प्रति नीति से सावधान किया था और कहा था कि चीन का रवैया कपटपूर्ण और विश्वासघाती है।

अक्साई चीन क्षेत्र

सरदार पटेल पहले ही कर चुके थे नेहरू को सतर्क

सरदार पटेल ने अपने पत्र में चीन को अपना दुश्मन, उसके व्यवहार को अभद्रपूर्ण और चीन के पत्रों की भाषा को किसी दोस्त की नहीं, भावी शत्रु की भाषा कहा था। लेकिन नेहरू हमेशा से चीन से बेहतर ताल्लुक़ चाहते थे।

सरदार पटेल के पत्र जवाब में नेहरू ने लिखा, “तिब्बत के साथ चीन ने जो किया, वह गलत था, लेकिन हमें डरने की ज़रूरत नहीं। आख़िर हिमालय पर्वत स्वयं हमारी रक्षा कर रहा है। चीन कहाँ हिमालय की वादियों में भटकने के लिए आएगा?”

दिसम्बर 1950 में सरदार पटेल के निधन के बाद नेहरू को उनकी नीतियों पर टोकने वाला शायद ही कोई बाकी था। इसके बाद भी नेहरू के चीन के साथ शिष्टाचार जारी रहे। आखिरकार वर्ष 1954 में भारत ने स्वीकार कर लिया की तिब्बत पर चीन का ही अधिकार है। इस पर नेहरू ने पंचशील समझौते के हस्ताक्षरों ने आखिरी मोहर भी लगा दी।

ठीक इससे पहले, जिसके बारे में बहुत लोग अनभिज्ञ ही हों, वह घटना भी घटी जब वर्ष 1953 में ही UNSC (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) के स्थायी सदस्यता की पेशकश भारत को हुई। लेकिन नेहरू ने इसे अस्वीकार करते हुए भारत की जगह चीन को UNSC की स्थायी सदस्यता की वकालत की थी।

इस बारे में सेलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ नेहरू में सर्वपल्ली गोपाल, खंड 11 के पेज संख्या 248 में लिखा है, “नेहरू ने सोवियत संघ की भारत को UNSC के छठे स्थायी सदस्य के रूप में प्रस्तावित करने की पेशकश को ठुकराते हुए कहा था कि भारत की जगह इसमें चीन को स्थान मिलना चाहिए।”

इसके बाद नेहरू जी के इस ‘योगदान’ का दंश भारत हर आए दिन भुगतता नजर आ रहा है। नेहरू देश के सामरिक हितों के प्रति कितने सतर्क और निश्चिन्त थे, उसका यह सबसे बड़ा उदाहरण कहा जा सकता है।

आख़िरकार पंचशील के बाद चीन ने अक्साई चीन क्षेत्र की ओर अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिए। यह भी उल्लेखनीय है कि भारत-चीन के बीच औपनिवेशिक ब्रिटिश साम्राज्य सिर्फ इस कारण से मैकमोहन रेखा खींच गया था, ताकि असम के चाय के बागान चीन से सुरक्षित रह सकें, लेकिन अक्साई चीन में उन्हें ऐसी महत्वाकांक्षा नजर न आई।

अंग्रेजों और नेहरू की मेहरबानी का नतीजा यह हुआ कि 1956 में आखिरकार चीन ने अक्साई चीन क्षेत्र में सड़क निर्माण शुरू कर अपना दुस्साहसी अभियान शुरू कर दिया।

अक्साई चिन को 1842 में ब्रिटेन ने जम्मू-कश्मीर का हिस्सा घोषित किया था। अब यहाँ पर बनी चीनी सड़क का एक ही मतलब था कि चीन अब भारत के इलाके से होकर तिब्बत तक जा सकता था।

तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चाइनीज प्रीमियर चाऊ एन लाई के बीच अप्रैल 24, 1960 के दिन लद्दाख की सीमा पर बातचीत में नेहरू के संवाद का अंश –

एक नक्शा 1958 में चीनी सरकार द्वारा जारी किया गया, जिसमें अक्साई चीन क्षेत्र की ये सड़कें चीनी नक्शे का हिस्सा बताई गईं।

वर्ष 1960 में भारत-चीन, दोनों देशों के बीच दिल्ली में एक बार फिर समिट का आयोजन हुआ, तब तक भारत द्वारा दलाई लामा को शरण दी जाने के कारण दोनों देशों के रिश्तों में गरमा-गर्मी का माहौल था।

चीनी प्रीमियर चाऊ एन लाई जब भारत पहुँचे तो सड़क पर जनता हाथों में पोस्टर लिए निकली। इन पर लिखा था – “चीन से सावधान” “कठोर रहना नेहरू” “चीनी घुसपैठियों के सामने समर्पण नहीं।”

लेकिन मानो जवाहरलाल नेहरू के अलावा बाकी सभी चीन से सतर्क रहने को जरूरी समझते थे। सोशल मीडिया पर इस मुलाकात के वीडियो आज भी सुरक्षित हैं –

इस समिट का उद्देश्य दोनों देशों के बीच सीमा विवाद पर चर्चा था। लेकिन इसका कोई हल ना निकला। यहाँ से सीमा विवाद बिगड़ता चला गया। इस घटना के ठीक 2 साल बाद 1962 में भारत और चीन की सेनाएँ आमने-सामने थीं।

हर दूसरे दिन चीनी सैनिक भारतीय सेना से उलझते नजर आने लगे। ठीक तभी जवाहरलाल नेहरू ने अपना ऐतिहासिक बयान देते हुए कहा – “Ladakh is a useless, uninhabitable land. Not a blade of grass grows there. We did not even know where it was.”

जिसका हिंदी में अर्थ है – “लद्दाख के अक्साई चिन क्षेत्र के कुछ हजार वर्ग किलोमीटर के बंजर भू-भाग पर चीन ने कब्जा कर लिया है, लेकिन इसके लिए कोई चिंता की बात नहीं है क्योंकि वहाँ घास तक पैदा नहीं होती। हमें तो पता भी नहीं कि वो आखिर है कहाँ?”

नेहरू के इस लापरवाही का जवाब देते हुए वहाँ मौजूद एक सांसद ने कहा था कि उनके सिर पर भी बाल नहीं उगते, तो क्या वह भी चीन को दे दिया जाए?

नेहरू अपने अंतरराष्ट्रीय सीमाओं और देशप्रेम के प्रति कितने सजग थे, इसका उदाहरण इसी बात से मिल जाता है कि लद्दाख को बंजर भूमि बताने वाले नेहरू ने ही कश्मीर को पाकिस्तान को दिए जाने की भी वकालत करते हुए कहा था कि कश्मीर के एक हिस्से को पाकिस्तान को दिया जाना चाहिए, क्योंकि यहाँ पर मुस्लिम बहुलता में हैं।

नेहरू की फॉरवर्ड पॉलिसी

वर्ष 1959 के बाद भारत और चीन के सैनिक लगातार एक-दुसरे से ‘नो मैन्स लैंड’ में उलझते रहे और जो जहाँ पहुँचता, अपने झंडे गाड़ कर चौकियाँ बनाता रहा। चीनी प्रीमियर के बिना निष्कर्ष चीन लौटने के बाद नेहरू ने नवंबर, 1961 में फॉरवर्ड पॉलिसी सामने रखी।

जवाहरलाल नेहरू ने ‘फॉरवर्ड पॉलिसी’ अपनाई, जिसमें कहा गया कि भारत को एक-एक इंच चीन की ओर बढ़ना चाहिए। जबकि वास्तव में जमीनी हकीकत यह थी कि यह ‘बैकवर्ड पॉलिसी’ बन गई। चीनी सेना लगातार भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करती चली गई और हम लगातार पीछे हटते चले गए।

कुछ माह में ही मानो नेहरू नींद से जागे और संसद में प्रस्ताव रखते हुए चीन के धोखे की बात का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि उन्हें दुनिया समझ में आ गई। जवाहरलाल नेहरू ने कहा, “हम आधुनिक दुनिया की सच्चाई से दूर हो गए थे।”

आखिरकार चीन के साथ हुए उस 1962 के युद्ध में भारत के हाथ वह दुर्भाग्यपूर्ण हार आई, जिसके बारे में कुछ इतिहासकार बताते हैं कि उस हार ने नेहरू को उनके आखिरी दिनों तक परेशान रखा। चीनी सैनिकों को जिस अवसर की तलाश थी वह उन्हें मिला। नेहरू का ‘पंचशील’ और ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के नारे भारत की हार के रूप में सामने आए।

भारत के लिए नेहरू अपनी लापरवाही के कारण आज तक इस युद्ध का फैसला अधूरा छोड़कर गए। आज चीन के सैनिक एक बार फिर सीमाओं पर डटे हैं, तनाव का माहौल है, हालाँकि इस बार चीन के सामने नेहरू नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी हैं, जिन्होंने 2014 में अपने पहले कार्यकाल की शपथ लेते हुए खुद को देश का प्रधानसेवक कहा था। फिर भी, चीन के कम्युनिस्ट रवैए के प्रति किसी भी प्रकार की आशा खुद को धोखे में रखना ही होगा।

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

आशीष नौटियाल
आशीष नौटियाल
पहाड़ी By Birth, PUN-डित By choice

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

रामजन्मभूमि के बाद अब जानकी प्राकट्य स्थल की बारी, ‘भव्य मंदिर’ के लिए 50 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करेगी बिहार सरकार: अयोध्या की तरह...

सीतामढ़ी में अब अयोध्या की तरह ही एक नए भव्य मंदिर का निर्माण किया जाएगा। इसके लिए पुराने मंदिर के आसपास की 50 एकड़ से अधिक जमीन अधिग्रहित की जाएगी। यह निर्णय हाल ही में बिहार कैबिनेट की एक बैठक में लिया गया है।

केजरीवाल-सिसोदिया के साथ मिलकर K कविता ने रची थी साजिश, AAP को दिए थे ₹100 करोड़: दिल्ली शराब घोटाले पर ED का बड़ा खुलासा

बीआरएस नेता के कविता और अन्य लोगों ने AAP के शीर्ष नेताओं के साथ मिलकर शराब नीति कार्यान्वयन मामले में साजिश रची थी।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
418,000SubscribersSubscribe