उरी में हुए पाकिस्तान समर्थित आतंकी हमले के बाद भारत ने जिस तरह से पलटवार करते हुए सर्जिकल स्ट्राइक्स को अंजाम दिया, उसके बाद क्या कुछ बदल गया? जब हम सितंबर 2016 में उरी में हुए आतंकी हमलों के बाद भारत की प्रतिक्रिया की बात करते हैं तो हमें फरवरी फरवरी 2019 में पुलवामा हमले के बाद भारत द्वारा दी गई कड़ी प्रतिक्रिया की बात भी करनी पड़ेगी। दोनों में अंतर है, लेकिन दोनों जुड़े हुए हैं।
सबसे पहले बात उरी सर्जिकल स्ट्राइक की। जम्मू कश्मीर के उरी में 18 सितंबर, 2016 को सुबह के 5:30 बजे पाकिस्तान पोषित ‘जैश-ए-मुहम्मद’ के आतंकियों ने भारतीय सेना के ब्रिगेड हेडक्वार्टर को ग्रेनेड से निशाना बनाया। हमारे 19 जवान बलिदान हो गए। हालाँकि, 4 आतंकी भी मारे गए लेकिन 30 से अधिक लोग घायल भी हुए। जम्मू कश्मीर में सुरक्षा बलों पर इसे दो दशकों का सबसे भीषण आतंकी हमला बताया गया था।
लेकिन, इसके 11 दिन बाद जो हुआ उसने इतिहास को बदल कर रख दिया। भारत ने पलटवार किया। ऐसा पलटवार, जिसकी यहाँ के नेताओं व नेतृत्व को अब तक आदत नहीं थी। तभी, AAP के अरविंद केजरीवाल सहित कई विपक्षी नेताओं ने सेना से भी ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के सबूत माँगने में संकोच नहीं किया। बदलाव ये हुआ कि पुलवामा हमले के बाद हुए बालाकोट एयर स्ट्राइक्स के बाद इन नेताओं ने सेना को बधाई देने में देरी नहीं की।
क्योंकि तब विपक्ष, बल्कि पाकिस्तान भी समझ चुका था कि नया भारत हर एक आतंकी हमले के प्रत्युत्तर में आतंकी संगठनों के सफाए के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। उसने उरी हमले के बाद वाले ‘सर्जिकल स्ट्राइक्स’ को देख लिया। ‘सर्जिकल स्ट्राइक्स’ की खासियत ये थी कि इसे पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू कश्मीर में अंजाम दिया गया था, जो भारत का ही हिस्सा है। इस तरह से हमारी सेना ने अपनी ही जमीन में रह कर आतंकियों के दाँत खट्टे किए थे।
भारत ने बड़ी चालाकी से उरी आतंकी हमले के बाद किए गए ‘सर्जिकल स्ट्राइक्स’ को अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अंतर्गत साबित किया और NSA अजीत डोभाल ने बाद में पाकिस्तान को स्पष्ट कहा भी कि चूँकि पठानकोट हमले के बाद पाकिस्तान आतकियों के विरुद्ध कार्रवाई करने में अक्षम रहा था, इसीलिए अपनी सुरक्षा से जुड़े हितों के लिए भारतीय सेना ने आतंकी हमलों को रोकने हेतु अपनी ही जमीन में ये कार्रवाई की।
पूँछ और उरी में हुए हमलों और इसके आसपास के समय में ही भारतीय सेना ने 20 बार पाकिस्तान की घुसपैठ को नाकाम किया था। अतः, भारत ने दुनिया को बताया कि अन्य हमलों की साजिश रचे जाने की पूर्व-सूचना के बाद उसने कार्रवाई की। भारत ने स्पष्ट कहा कि उसने पाकिस्तान की सेना को निशाना नहीं बनाया है, बल्कि सिर्फ उन्हें टारगेट किया है जो ‘नॉन-स्टेट एक्टर्स’ हैं, आतंकवादी हैं।
‘सर्जिकल स्ट्राइक्स’ का प्रभाव ये हुआ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले भारत की छवि एक ऐसे देश के रूप में बनी, जो ‘मुँहतोड़ जवाब’ दे सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक सख्त निर्णय लेने वाले नेता हैं, लोगों ने जाना। भाजपा और RSS पहले भी ऐसे हमलों के बाद चुप बैठने के पक्ष में नहीं थी, ताकि आगे इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने की हिमाकत दुश्मनों की न हो। पीएम मोदी ने न सिर्फ देश की रक्षा का वादा निभाया, बल्कि अपनी छवि व पार्टी की विचारधारा के हिसाब से कार्य किया।
वहीं राजग सरकार ने मनमोहन सिंह सरकार की कॉन्ग्रेस वाली नीति को भी बदला, जब मुंबई में हुए बड़े आतंकी हमले (26/11) के बाद भारत ने कोई कड़ी कार्रवाई न करते हुए कॉन्ग्रेस की सरकार ने ‘कड़ी निंदा’ से काम चलाया था। नरेंद्र मोदी ने दिखाया कि अब कॉन्ग्रेस वाली नीति नहीं चलेगी। उस समय NDA सरकार ने ये बयान देकर दुनिया को आश्वस्त किया कि ऑपरेशन को आगे बढ़ाने की कोई योजना नहीं है, लेकिन ढाई साल बाद पाकिस्तान ने फिर वही हिमाकत पुलवामा में की तो उसे और जोरदार सबक सिखाया गया।
पाकिस्तान भी काफी कन्फ्यूज हो गया क्योंकि अगर वो स्वीकार करता कि ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ हुआ है तो वहाँ की सरकार को जनता की तगड़ी आलोचना झेलनी पड़ी और उसकी बेइज्जती होती, वहीं अगर वो कहता कि कुछ नहीं हुआ है तो दुनिया के सामने ‘विक्टिम कार्ड’ वो नहीं खेल पाता। इसीलिए, वो इन दोनों के बीच फँसा रह गया। अब जम्मू कश्मीर में नियमित रूप से आतंकियों का सफाया हो रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि हमें भविष्य के लिए योजनाएँ ज़रूर बनाई पड़ेंगी, हम हर चीज को राजनीतिक चश्मे से नहीं देख सकते। ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की वो रात थी, जब तत्कालीन केंद्रीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर रात भर सोए नहीं थे। पीएम मोदी की भी यही स्थिति थी। पीर पांजाल रेंज के आसपास लगभग 75 आतंकियों को मार गिराने के बाद जब हमारे जवान सुरक्षित वापस लौट आए, तब जाकर इन नेताओं को चैन में चैन आई।
29 सितंबर के अगले दिन सुबह के 8 बजे पीएम मोदी अपने दफ्तर में थे और सुरक्षा समिति के सभी मंत्री सुबह-सुबह साउथ ब्लॉक पहुँच चुके थे। मीडिया को तब तक कुछ पता नहीं था। रक्षा विशेषज्ञ नितिन ए गोखले अपनी पुस्तक ‘Securing India The Modi Way: Pathankot, Surgical Strikes and More’ में लिखते हैं कि बैठक में तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह सुहाग ने जब पूरे ऑपरेशन के बारे में बताया, तब पीएम मोदी ने इसे सार्वजनिक करने का निर्णय लेते हुए कहा कि हमारे बहादुर सैनिकों की गाथाएँ दुनिया तक जानी चाहिए।
अगले एक घंटे के भीतर प्रेस नोट रिलीज कर दिया गया। 11:30 बजे लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह ने इसकी घोषणा की। गोखले लिखते हैं कि पीएम मोदी ने व्यक्तिगत रूप से पूरी प्रक्रिया की निगरानी की थी, जो ‘रिस्क टेकर’ की उनकी छवि को मजबूत बनाता है। ऐसा इसीलिए, क्योंकि इसमें अगर जरा भी चूक होती तो भारत और प्रधानमंत्री की आलोचना होती और राजनीतिक रूप से न सिर्फ उन पर, बल्कि कूटनीति में देश पर भी इसका बुरा असर पड़ता।
Surgical strikes and air strikes have strengthened India’s global image. #HappyBdayModiji pic.twitter.com/xr6SzRGdK2
— Rakesh Goel (@rakeshgoelbjp) September 16, 2021
वो रिस्क ले सकते थे, क्योंकि उन्होंने अजीत डोभाल के नेतृत्व में योग्य लोगों की टीम बनाई थी जो ये सब करने में सक्षम थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शांति के पक्षधर हैं। उन्होंने अपने पहले शपथग्रहण समारोह में भी कई पड़ोसी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया था, जिसमें पाकिस्तान के तत्कालीन वजीर-ए-आजम नवाज शरीफ भी शामिल थे। वो नवाज शरीफ के घर भी अचानक पहुँचे थे। लेकिन, पाकिस्तान तब भी नहीं समझ पाया।
उरी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरजते हुए कहा था कि हमारे जवानों का बलिदान बर्बाद नहीं जाएगा। उन्होंने कहा था, “आतंकी कान खोल कर सुन लें, भारत कभी भी उरी हमले को नहीं भूल सकता। मैं पाकिस्तान के नेतृत्व को बताना चाहता हूँ कि हमारे 18 जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।” मनोहर पर्रिकर ने भी स्पष्ट कहा था कि वो खुद सुनिश्चित करेंगे कि ऐसा दोबारा न हो। उन्होंने कहा था कि पीएम मोदी के बयान को सिर्फ एक बयान न समझा जाए।