Wednesday, November 20, 2024
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17000 फीट की ऊँचाई पर 17 किमी पैदल चले ‘डोगरा स्काउट्स’ के जवान, ग्लेशियर में खुदाई… जानिए UP के मलखान सिंह से लेकर केरल के थॉमस चेरियन का शव 56 साल बाद कैसे आया घर

अधिकारी बताते हैं कि जब उन्होंने अपनी योजना के तहत काम शुरू किया तो मैन्युअल खुदाई के दौरान रडार सिग्नल मिले जिसके परिणामस्वरूप विमान का मलबा मिलने लगा। इसके बाद आगे अभियान जारी रखा गया तो अवशेष बरामद हुए और फिर कड़ी मेहनत करके इन्हेंं इनके घर तक पहुँचाया गया।

56 साल बाद भारतीय वायुसेना के 4 बलिदानियों का शव उनके घर लौटा तो उनका ससम्मान अंतिम संस्कार हो पाया। इन बलिदानियों में एक नाम केरल के थॉमस चेरियन का भी था। 22 साल के चेरियन 1968 में हुए विमान हादसे के बाद गायब हुए थे। उसके बाद उनके परिवार को उनकी किसी भी तरह की सूचना का इंतजार था, लेकिन ये इंतजार 56 साल बाद खत्म हुआ।

भारतीय सेना के डोगरा स्काउट्स ने 30 सितंबर को सियाचिन ग्लेशियर से जब बलिदानियों के शव निकाले तो उसमें यूपी के सिपाही मलखान सिंह, सिपाही नारायण सिंह और मुंशी के शव के साथ थॉमस चेरियन का भी शव था। बाद में इन सबकी पहचान करके इन्हें इनके गृह नगर पहुँचाया गया और इनके परिजनों ने अपने मुताबिक शरीर का अंतिम संस्कार कर एक संतुष्टि जाहिर की। लेकिन, बलिदानियों को ये सम्मान दिलाने के लिए डोगरा स्काउट्स ने कितना संघर्ष किया इससे लोग अंजान हैं।

आइए जानते हैं किस तरह बलिदानियों का शव पहुंचाने के लिए काम किया गया

भारतीय वायुसेना के बलिदानियों के पार्थिव शरीर को उनके अपनों तक पहुँचाने के लिए डोगरा स्काउट्स के जवानों ने कड़ाके की ठंड में मेहनत की।

ऑन मनोरमा की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय वायुसेना के विमान का दुर्घटनास्थल ग्लेशियर से घिरे पर्वतमाला पर 14500 से 17000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। इस जगह तक पहुँचने में बहुत के रास्ते में तमाम दरारे आती है लेकिन डोगरा स्काउट्स ने योजना बनाकर इस खोज को सार्थक किया। उन्होंने रेको रडार तकनीक का प्रयोग किया जो 20 मीटर गहराई तक बर्फ में दबी धातु और वस्तुओं को पता लगाने में सक्षम होती है। इसके अलावा इलाके का मैप ड्रोन से खींची गई तस्वीरों से बनाया गया।

अधिकारी बताते हैं कि जब उन्होंने सब योजना के तहत काम शुरू किया तो मैन्युअल खुदाई के दौरान रडार सिग्नल मिले जिसके परिणामस्वरूप विमान का मलबा मिलने लगा। इसके बाद आगे अभियान जारी रखा गया तो अवशेष बरामद हुए। इसके बाद जवानों ने दुर्गम इलाकों को पार किया और 17 किलोमीटर तक पैदल चलकर शव वाहन की मदद से, फिर हवाई मार्ग से गृहनगर लेकर गए।

इन पार्थिव शरीरों को ढूँढने के मामले पर कर्नल पलरिया ने कहा कि वह दशकों से खोए सैनियों को ढूँढने के लिए अपना अभियान चला रहे हैं। इस योजना को इसलिए बनाया गया है ताकि बलिदान सैनिकों को वह सैन्य सम्मान मिले जिसके वे हकदार हैं।

1968 में हुआ विमान क्रैश

बता दें कि साल 1968 में इंडियन एयर फोर्स का AN-12 विमान क्रैश हो गया था। दुर्घटना 7 फरवरी 1968 को हुई थी। उस दिन भारतीय सैनिकों को लेह ले जाने के लिए सेना का विमान उड़ा लेकिन ये रोहतांग दर्रे के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया। विमान में तब 102 सैनिक सवार थे। लगातार भारतीय सेना तभी से बलिदानी सैनिकों के शव खोजने का प्रयास कर रही थी।

बाद में 2003 में वाजपेई सरकार के कार्यकाल में सेना ने यहाँ पर सर्च अभियान शुरू किया था, जिसके बाद भारतीय सेना, खासकर डोगरा स्काउट्स ने सालों तक कई सर्च ऑपरेशन चलाए। डोगरा स्काउट्स ने 2005, 2006, 2013 और 2019 में शवों की छानबीन जारी रखी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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