36 राफेल फाइटर एयरक्राफ्ट्स के बाद भारत अब फ्रांस से 26 Rafale-M फाइटर्स खरीदने जा रहा है। खाद बात ये है कि ये खरीद भारतीय नौसेना के लिए की जा रही है। फ्रांस की सबसे बड़ी ऐरोस्पेस कंपनी ‘Dassault Aviation’ से ही इस संबंध में करार होता, जिससे भारतीय वायुसेना के लिए 36 राफेल फाइट्स जेट्स खरीदने गए थे। ये सभी डिलीवर किए जा चुके हैं। 2016 में हुए इस करार से ये वाली डील अलग होगी। डिजाइन और क्षमताओं की बात करें तो नौसेना के नवल फाइटर जेट्स वायुसेना वाले से अलग होते हैं।
ये अंतर इसीलिए होता है, क्योंकि जमीन से हवा में उड़ने वाले फाइटर जेट्स और समुद्र में चलने वाले एयरक्राफ्ट कैरियर के माध्यम से मार करने वाले फाइटर जेट्स के संचालन के माहौल में भी अंतर होता है। 22 फाइटर जेट्स को INS विक्रांत और विक्रमादित्य पर तैनात किए जाने की योजना है। दक्षिण भारत में एयरक्राफ्ट कैरियर सिर्फ भारत और चीन के पास हैं। ये राफेल-एम एयरक्राफ्ट्स क्षयकारी नमकीन पानी वाले माहौल में रहेंगे, इसीलिए इन्हें उसी हिसाब से डिजाइन किया जाता है।
इन्हें एयरक्राफ्ट कैरियर से संबंधी चुनौतियों को ध्यान में रख कर तैयार किया जाता है। साथ ही हाई-इम्पैक्ट वाली लैंडिंग की क्षमता इनमें होती है। Catapult (किसी चीज को दूर से फेंकने वाला टूल) या रैंप-लॉन्च की तकनीक इसमें होती है। नौसेना के इन एयरक्राफ्ट फाइटर्स का लैंडिंग गियर बाकियों से ज़्यादा मजबूत होता है, इनमें मजबूत एयरफ्रेम्स होते हैं और इनके विंग्स फोल्डिंग वाले होते हैं। एयरक्राफ्ट कैरियर्स पर संचालित होने और स्टोरेज के लिए ये फोल्डिंग विंग्स की ज़रूरत पड़ती है।
जबकि जमीन से उड़ान भरने वाले एयरक्राफ्ट्स को इन फीचर्स की ज़रूरत नहीं पड़ती क्योंकि उनके लिए तो बना-बनाया रनवे होता है। भारत में अब तक MiG-29K एयरक्राफ्ट कैरियर्स से संचालित होने वाला फाइटर जेट रहा है। इसमें आसान लैंडिंग के लिए एक टेलहुक भी है। एक एयरक्राफ्ट कैरियर पर कई विमान लैंड हो सकें, इसके लिए फोल्डिंग विंग्स चाहिए होती है। जबकि आप Sukhoi Su-30MKI को देखेंगे तो ऐसा कोई फीचर नहीं दिखेगा क्योंकि इसकी लैंडिंग और रख-रखाव के लिए जमीन पर पर्याप्त जगह होती है।
POV of a Rafale Marine pilot on the Charles de Gaulle pic.twitter.com/9D02FhnD70
— Skies-of-Glory (@violetpilot1) April 23, 2022
जबकि एयरक्राफ्ट कैरियर के डेक का आकार सीमित होता है। नवल फाइटर जेट्स को उनके जमीनी समकक्षों की तुलना में हल्का और छोटा बनाया जाता है। साथ ही उनकी रेंज भी तुलनात्मक रूप से छोटी होती है। लेकिन, उनमें इन-फ्लाइट रिफ्यूलिंग की क्षमता होती है। इनमें राडार सिस्टम भी होता है। साथ ही समुद्र को ध्यान में रखते हुए इसका नेविगेशन सिस्टम डिजाइन किया जाता है। इन्हें बनाने में ऐसे मैटेरियल्स और कोटिंग्स का इस्तेमाल किया जाता है, जो समुद्री नमकीन पानी के दुष्प्रभावों को झेल सकें।
किसी जहाज या सबमरीन के खिलाफ इस्तेमाल करने में ये ज्यादा प्रभावी होते हैं। इनके पायलट भी विशेष प्रकार के होते हैं, क्योंकि उन्हें रनवे पर नहीं बाकि एयरक्राफ्ट कैरियर के डेक पर लैंडिंग करानी होती है। इनमें सामने का नुकीला हिस्सा थोड़ा लंबा होता है। बताया जा रहा है कि फ्रांस और भारत के बीच Rafale-M को लेकर 5.5 बिलियन यूरोप (49879.49 करोड़ रुपए) की डील होगी। साथ ही फ्रांस से भारत 3 स्कॉर्पीन सबमरीन्स भी खरीदेगा।