केरल हाई कोर्ट ने पलक्क्ड़ में अक्टूबर माह में मारे गए संदिग्ध माओवादियों के एनकाउंटर की परिस्थितियों की जाँच के आदेश दे दिए हैं। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कोर्ट ने कहा है कि इस की तफ्तीश हो कि एनकाउंटर में शामिल अफसरों के हाथों इस घटना के दौरान कोई आपराधिक कृत्य तो नहीं घटित हुआ है। लेकिन साथ ही साथ यह भी स्पष्टीकरण आदेश में उल्लिखित है कि जाँच के आदेश को पीठ के इस एनकाउंटर की सत्यता, उसकी परिस्थितियों या माओवाद के आरोपितों की मृत्यु पर सवाल के रूप में न देखा जाए। इन विषयों पर अभी अदालत दूर-दूर तक कोई राय नहीं व्यक्त कर रही है।
The Kerala High Court recommended a detailed independent inquiry in the alleged Maoist encounters in #Kerala‘s Palakkad district.
— India Today (@IndiaToday) November 12, 2019
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Kerala High Court on Tuesday granted permission to the Kerala police to cremate the dead bodies of Karthi and Manivasagam, the Two Maoists killed in an encounter with the police at Manjikandi in Attapady forests #Maoists #encounter #Kerala
— P Ramdas (@PRamdas_TNIE) November 12, 2019
आदेश में जस्टिस आर नारायण पिशारदी ने अधिकारियों को वर्तमान के नियमों और रवायतों के अनुसार दोनों माओवादियों के शवों की अंत्येष्टि करने की भी अनुमति दे दी है। उन्होंने सेशंस कोर्ट के उस निर्णय को पलट दिया जिसमें राज्य सरकार को कहा गया था कि उसे अगले आदेश तक कार्तिक और मनिवासकाम नामक माओवाद संदिग्धों के शवों को संभाल कर रखना होगा। यह आदेश उन दोनों के रिश्तेदारों की याचिका पर दिया गया था।
इस घटना के बाद पिछले हफ्ते (6 नवंबर, 2019 को) टाइम्स ऑफ़ इंडिया के सम्पादकीय पेज पर प्रकाशित एक लेख में केरल के मुख्य सचिव टॉम जोसे ने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र की आतंकवाद की परिभाषा (वे तत्व जो हिंसा का इस्तेमाल राजनीतिक मंशा से करते हैं, और इस प्रक्रिया में नागरिकों को नुकसान पहुँचाते हैं या नुकसान की राह पर धकेलते हैं। अतः एक लोकतान्त्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार के खिलाफ हथियारबंद लड़ाई करने वाले नागरिकों को नुकसान पहुँचाने के चलते आतंकवादी होते हैं) के हिसाब से माओवादी आतंकी ही हुए। उन्होंने यह पक्ष रखा कि सरकारों का काम निहत्थे और शांतिप्रिय नागरिकों की हिफाज़त करना होता है।
जोसे ने लिखा कि इसका कोई औचित्य नहीं कि शांतिप्रिय आम नागरिकों और नक्सल आतंकियों के ह्यूमन राइट्स एक जैसे हों। यह न केवल देश के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ होगा, बल्कि कानून का पालन करने वाले आम नागरिकों का मखौल उड़ाना उनका अपमान होगा।