Friday, October 4, 2024
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भारत-नेपाल सीमा पर 2 दशक में 4 गुना बढ़ गई मस्जिदों-मदरसों की संख्या, खाड़ी से फंडिंग की आशंका: खुफिया एजेंसियाँ अलर्ट

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में पिछले 20 सालों में मदरसों की संख्या में 4 गुना बढ़ोतरी हुई है। अधिकतर मदरसे भारत-नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में खुले हैं। वर्तमान समय में सिद्धार्थनगर जिले में 597 मदरसे संचालित हैं, जिनमें 452 पंजीकृत हैं और 145 मदरसों का कोई रिकॉर्ड नहीं है।

भारत-नेपाल बॉर्डर पर खुफिया एजेंसियाँ और पुलिस विभाग पूरी तरह एलर्ट है। बॉर्डर पर संदिग्‍ध गति‍विधियों के साथ मदरसों की बढ़ती संख्या और उनके क्रिया-कलापों पर भी खुफिया ऐजेंसियों की नजर है। बॉर्डर के पास अचानक अस्तित्‍व में आए इन मदरसों और मस्जिदों की जरूरत और उनके आय के स्रोत का पता नहीं होने से खुफिया एजेंसियों के कान खड़े हो गए हैं। ऐसे में अब इनकी हर तरह से जाँच की जा रही है।

भारत और नेपाल की सीमा से सटे उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में पिछले 20 सालों में मदरसों की संख्या में 4 गुना बढ़ोतरी हुई है। अधिकतर मदरसे भारत-नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में खुले हैं। वर्तमान समय में सिद्धार्थनगर जिले में 597 मदरसे संचालित हैं, जिनमें 452 पंजीकृत हैं और 145 मदरसों का कोई रिकॉर्ड नहीं है। खुफिया एजेंसी यह पता लगाने की कोशिश कर रही हैं कि बिना रिकॉर्ड वाले मदरसे कैसे चल रहे हैं, इनकी फंडिंग कहाँ से हो रही है। कुछ मदरसों की फंडिंग दुबई और खाड़ी के देशों से होने की आशंका जताई जा रही है। वर्ष 1990 तक जिले में कुल 16 मान्यता प्राप्त मदरसे थे। वर्ष 2000 में इन मदरसों की संख्या बढ़कर 147 हो गई, जिनमें मान्यता प्राप्त मदरसों की संख्या 45 थी।

सिद्धार्थनगर में मदरसों की संख्या में लगातार वृद्धि जारी है। वर्तमान समय में अकेले 152 मदरसे डुमरियागंज तहसील में संचालित हैं। यहाँ के टिकरिया गाँव में वर्ष 1978 में पहले मदरसे को मान्यता मिली थी। इटवा तहसील में 134 मदरसे हैं। क्षेत्र के भावपुर भदोखर में वर्ष 1963 में पहला मान्यता प्राप्त मदरसा खुला था। नौगढ़ तहसील में 119 मदरसे हैं, यहाँ पहला मदरसा वर्ष 1983 में शिवपति नगर में संचालित हुआ था।

जानकारी के मुताबिक शोहरतगढ़ में 102 मदरसे हैं। वहीं, बांसी में मदरसों की संख्या सबसे कम 90 है, जिनमें से 16 मदरसों को सरकारी अनुदान मिल रहा है। इन मदरसों में तहनिया (प्राथमिक), फौकनिया (पूर्व प्राथमिक), मौलवी (हाईस्कूल), मुंशी (अरबी-फारसी में हाईस्कूल), आलिया (इंटरमीडिएट), कामिल (स्नातक) और फाजिल (परा-स्नातक) की पढ़ाई होती है।

जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी तन्मय कुमार ने बताया कि मदरसा कोई भी खोल सकता है। इस पर कोई रोक नहीं है। उन्हीं मदरसों को शासन स्तर से सहायता दी जाती है, जो मान्यता प्राप्त होते हैं। एस‌एसबी 43वीं वाहिनी के डिप्टी कमांडेंट मनोज कुमार ने बताया की जिन मदरसों का कोई रिकॉर्ड नहीं है, उन पर नजर है। समय-समय पर जाँच के बाद शासन को रिपोर्ट प्रेषित की जाती है। बिना मान्यता वाली मदरसों की फंडिंग और उनकी गतिविधियों पर एसएसबी की नजर है।

वर्ष 1961 में मिली थी जिले के पहले मदरसे को मान्यता

जिले में सबसे पहला मदरसा 4 अप्रैल 1961 को शोहरतगढ़ तहसील के सिसहनियां अलीदापुर गाँव में खुला था। दूसरा मदरसा 7 जुलाई 1961 को बांसी तहसील की बराँवशरीफ गाँव में खुला था। 13 अगस्त वर्ष 1963 को इटवा के भावपुर भदोखर में तीसरे मदरसे को मान्यता मिली थी।

जिले में लगातार बढ़ रहे मदरसों की संख्या को देखते हुए सुरक्षा एजेंसियाँ पूरी तरह से सतर्क हैं। हालाँकि जिन मदरसों का कोई रिकॉर्ड नहीं है, उन पर स्थानीय प्रशासन की भी नजर रहती है। सिद्धार्थनगर जिले की कुछ संवेदनशील स्थानों पर बने मदरसों के रिकॉर्ड खंगाले ले जा रहे हैं और उनकी फंडिंग की भी जाँच की जा रही है।

उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों खबर आई थी कि नेपाल से लगे जिलों में मुस्लिम आबादी की संख्या में 2.5 गुना की बढ़ोतरी हुई। यहाँ पर 2 साल में ही 400 मदरसे और मस्जिद बन गए। सुरक्षा विशेषज्ञ भी मानते हैं कि नेपाल की सीमा से सटे क्षेत्रों में हो रहे ये बदलाव सामान्य नहीं हैं। इसी स्थिति के मद्देनजर सुरक्षा एजेंसी ने साल की शुरुआत में गृह मंत्रालय को रिपोर्ट दी थी। पिछले 2 साल के अंदर बहराइच, बस्ती व गोरखपुर मंडल से लगी नेपाल सीमा पर 400 से अधिक मजहबी शिक्षण संस्थान और मजहबी स्थल खुले।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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