प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS)’ का पद गठित करने की घोषणा की। सीडीएस भारत की तीनों सशस्त्र सेनाओं के बीच अच्छी तरह तालमेल बिठाने का कार्य करेगा। इसकी माँग कारगिल युद्ध के समय से ही चली आ रही थी। इससे पहले भी कई बार सीडीएस के पद के गठन की माँग उठी थी क्योंकि सेना के कई उच्चाधिकारियों ने भी इसकी ज़रूरत पर प्रकाश डाला था। कारगिल युद्ध के बाद बनी मंत्रीमंडलीय समिति ने भी यही सुझाव दिया था। लेकिन, किन्हीं कारणों से उस समय यह संभव नहीं हो पाया। अब इतिहास में थोड़ा और पीछे चलते हैं।
लॉर्ड माउंटबेटन ने लेफ्टिनेंट जनरल एमएल छिबर को इस बारे में 1977 में कुछ अहम जानकारियाँ दी थीं। तब माउंटबेटन ने छिबर को बताया था कि उन्होंने जवाहरलाल नेहरू को शुरुआत में ही आगाह किया था कि अगर युद्ध की स्थिति आती है तो भारतीय सेना नहीं टिक पाएगी और तुरंत हार जाएगी। इसीलिए माउंटबेटन ने नेहरू को सलाह दी थी कि जनरल थिमय्या को सीडीएस नियुक्त कर दें। माउंटबेटन ने नेहरू से कहा कि उन्हें सैन्य स्तर पर काफ़ी समस्याएँ दिख रही हैं और इसीलिए वह ये निर्णय तुरंत लें। लेकिन नेहरू ने माउंटबेटन की बात को नकार दिया।
नेहरू ने माउंटबेटन को अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि युद्ध की स्थिति आएगी ही नहीं क्योंकि भारत तो सभी देशों के साथ शांति से रहना चाहता है। माउंटबेटन ने नेहरू को समझाया कि पाकिस्तान या चीन, किसी के साथ भी आपके देश का युद्ध हो सकता है क्योंकि युद्ध में दो पक्ष सम्मिलित रहते हैं, एक नहीं। भारतीय सेना के कई उच्चाधिकारियों द्वारा लिखी गई पुस्तक में कहा गया है कि नेहरू अपनी ख़ुद की ही बनाई एक दुनिया में रह रहे थे और उन्हें समसामयिक भौगोलिक-राजनीतिक परिस्थितियों का भान नहीं था।
I warned him that if a #war came, the #Indianarmy would suffer a quick defeat. He (#Nehru) said there is no question of there being a war as #India wishes to be at #peace with everybody. pic.twitter.com/Brkq8gOemF
— IANS Tweets (@ians_india) August 20, 2019
और जब बात आई नेहरू के नेतृत्व क्षमता के परीक्षा की, अनुभवी सैन्य अधिकारी साफ़-साफ़ कहते हैं कि वे फेल हो गए। ‘Indian Defence Review Vol 30.2 Apr-Jun 2015‘ नामक इस पुस्तक में लिखा है कि न सिर्फ़ नेहरू, बल्कि उनके रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन भी इस प्रस्ताव के खिलाफ़ थे। उत्तर पूर्वी राज्यों और भारत-चीन युद्ध पर पुस्तक लिख चुके शिव कुणाल वर्मा की एक पुस्तक का हवाला लें तो हमें साफ़ पता चल जाता है कि नेहरू द्वारा थिमय्या को सीडीएस न बनाने के पीछे कुछ और भी कारण थे। वर्मा लिखते हैं कि नेहरू जनरल थिमय्या को खतरे के रूप में देखते थे।
नेहरू सार्वजनिक रूप से ऐसा दिखाते थे कि थिमय्या उनके पसंदीदा व्यक्ति हैं लेकिन पीठ पीछे जनरल के ख़िलाफ़ साज़िश रचते थे। उन्हें ऐसा लगता था कि थिमैय्या भारतीय गणराज्य की सत्ता उनसे हथिया सकते हैं। थिमय्या को इस कारण इस्तीफा भी देना पड़ा था लेकिन नेहरू सार्वजनिक रूप से ख़ुद की वाहवाही कराने के लिए यह कहते रहे कि उन्होंने थिमय्या को इस्तीफा वापस लेने के लिए मना लिया है। अब यह सोचने लायक बात है कि जिस देश के नेता के मन में सेना के विरुद्ध जलन की भावना हो, वो रक्षा सम्बन्धी निर्णय सही से कैसे ले पाएगा?
अगर सीडीएस की बात करें तो अब तक सेना सम्बन्धी अधिकतर निर्णय केंद्रीय रक्षा सचिव लेते रहे हैं, जो कि ब्यूरोक्रेट होते हैं। केंद्रीय रक्षा सचिन को न तो सेना के आंतरिक मसलों का उतना ज्यादा अनुभव होता और न ही तीनों सेनाओं के बीच सही से तालमेल बिठाने में वो कामयाब रहते हैं। सैन्य अधिकारियों का कहना है कि मंत्रालय में नियुक्त ब्यूरोक्रेट किसी भी क्षेत्र से आया हुआ हो सकता है, इसीलिए ज़रूरी नहीं कि उसकी दक्षता सेना को लेकर सही ही हो। अभी तक कई देशों में सीडीएस की व्यवस्था है या फिर ऐसा ही एक समान पद है।
अधिकतर देश अपने शुरुआती युद्ध के दौर से ही समझ गए कि थल, जल और वायु सेनाओं के ऊपर एक व्यक्ति होना चाहिए, जो तीनों सेनाओं को समझे और फिर सरकार को उनकी राय के आधार पर सलाह दे। ध्यान दें कि यहाँ सेनाओं के बीच तालमेल बिठाने का यह अर्थ कतई नहीं है कि तीनों आपस में लड़ते रहते हैं। हर परिस्थिति के लिए तीनों सेनाओं की अलग-अलग राय हो सकती है या फिर अधिकारीयों में रणनीतिक मतभेद हो सकते हैं। सीडीएस के रहते सरकार तक उनकी बात पहुँचाने और जल्दी उचित निर्णय लेने में सुविधा मिलेगी। कहते हैं, अगर कारगिल युद्ध के समय सीडीएस की व्यवस्था रहती तो वायुसेना का प्रयोग और अच्छी तरह हो सकता था।
Truth has a habit of coming out no matter how hard you try and suppress it. Jawaharlal Nehru & VK Krishna Menon played a CRUEL hand against General Thimayya, one of the most decorated generals in Indian Military History. Cruel and SHOCKING. https://t.co/igPHDIX01X pic.twitter.com/pWS7kiwPMi
— Anand Ranganathan (@ARanganathan72) May 3, 2018
आज जब आतंकी हर तरफ से घुसपैठ में लगे हैं और नभ, जल, थल- तीनों स्तर पर युद्ध की सम्भावनाएँ बनी रहती हैं, एक ऐसे वरिष्ठ अधिकारी का होना ज़रूरी है जो तीनों सेनाओं के कार्यान्वयन में सरकार और सशस्त्र सेनाओं के बीच सेतु का कार्य कर सके। इसके लिए आपको मैनेजमेंट और कमांड के बीच अंतर समझने की ज़रूरत है। तक्षशिला इंस्टिट्यूट के सह-संस्थापक नितिन पाई के अनुसार, अगर सीडीएस कैबिनेट को सैन्य मुद्दों पर सलाह देगा तो ऑपरेशनल कार्यों में सेना को कमांड करने का कार्य सेना प्रमुख करेंगे।
कुल मिला कर हमने यह देखा कि जवाहरलाल नेहरू ने अगर सीडीएस पद गठन करने की की माँग या सलाह मान ली होती तो उसके बाद हुए युद्धों में भारत और भी बेहतर स्थिति में होता लेकिन, नेहरू सेना को भंग करने की बात करते थे। उनकी बनाई दुनिया में उन्हें लगता था कि सबकी सोच उनके जैसी ही है। शायद इसीलिए कई विश्लेषक कहते हैं कि भारत का प्रथम प्रधानमंत्री किसी ऐसे व्यक्ति को होना चाहिए था, जिसे सैन्य प्रबंधन, संचालन और ऑपरेशन का अच्छा अनुभव और ज्ञान हो। शायद, सुभाष चंद्र बोस!