31 अगस्त, 1995 – ये वो तारीख़ है जब पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या कर दी गई थी। एक सिख नेता की हत्या करने वाले भी सिख आतंकवादी ही थे। कॉन्ग्रेस नेता बेअंत सिंह फरवरी 1992 में पंजाब के मुख़्यमंत्री बने थे। उनका मुख्यमंत्री बनना पंजाब के इतिहास में एक बड़ी घटना थी, क्योंकि 5 वर्षों के राष्ट्रपति शासन के पश्चात राज्य में विधानसभा चुनाव हो पाए थे। पंजाब में अराजकता का माहौल था, जरनैल सिंह भिंडराँवाले के मारे जाने के बावजूद अगले एक दशक से भी अधिक समय तक खालिस्तानी आतंकी राज्य को अशांत बनाए रहे थे।
शाकाहारी नेता बेअंत सिंह, धर्मनिष्ठ नामधारी सिख
सबसे पहले बेअंत सिंह के व्यक्तिगत व राजनीतिक जीवन के बारे में संक्षेप में बता देते हैं। उनका जन्म लुधियाना जिले के दोहरा प्रखंड स्थित बिलासपुर गाँव में हुआ था। लाहौर स्थित गवर्नमेंट कॉलेज यूनिवर्सिटी से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। 23 वर्ष की उम्र में वो भारतीय सेना में शामिल हुए, लेकिन 2 वर्षों बाद ही राजनीति का रुख किया। 1960 में उन्होंने प्रखंड समिति का सदस्य चुना गया। वो लुधियाना स्थित ‘सेन्ट्रल कोऑपरेटिव’ बैंक के डायरेक्टर रहे, फिर 1969 में निर्दलीय जीत कर पंजाब विधानसभा पहुँचे।
बेअंत सिंह सिखों के नामधारी पंथ के अनुयायी थे और सफ़ेद रंग की पगड़ी पहनते थे। इस कारण वो मांस या शराब का सेवन नहीं करते थे, शाकाहारी थे। उन्होंने सतगुरु प्रताप सिंह से आशीर्वाद लिया था और सुरिंदर सिंह नामधारी के साथ मिल कर उन्होंने इस संप्रदाय की भलाई के लिए कार्य किया। 1993 में एक कारोबारी जब लालरु में मांस की फैक्ट्री लगाना चाहता था तो CM रहते बेअंत सिंह ने नामधारियों की माँग के कारण उसे इसकी अनुमति नहीं प्रदान की थी।
अमृतसर, लुधियाना और मालेरकोटला में उन्होंने नामधारी सिख संप्रदाय को 500 एकड़ जमीन दान दी थी। बेअंत सिंह की मौत दुःखद रूप में हुई थी। खालिस्तानियों ने उनकी हत्या कर दी थी। एक कार बम धमाके में तत्कालीन मुख्यमंत्री समेत 17 लोग मारे गए थे जिनमें 3 कमांडो जवान भी शामिल थे। ‘बब्बर खालसा इंटरनेशनल’ और ‘खालिस्तान कमांडो फ़ोर्स’ का इस हत्याकांड में नाम आया। बेअंत सिंह हत्याकांड को समझने के लिए हमें उस वक्त की राजनीतिक परिस्थितियाँ देखनी पड़ेंगी।
पंजाब का CM रहते बेअंत सिंह की हत्या
जब बेअंत सिंह की हत्या हुई, उस समय वो कुछ कागज़ात पर हस्ताक्षर करने जा रहे थे। जैसे ही वो अपनी सफ़ेद रंग की एम्बेस्डर कार में बैठे, पंजाब के एक पुलिसकर्मी दिलावर सिंह बब्बर ने अपने शरीर पर लपेटे हुए बम को विस्फोट कर दिया। इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद 1984 में सिखों का नरसंहार हुआ था। सरकारी आँकड़े कहते हैं कि इसमें 3340 सिख मारे गए। इसमें कमलनाथ, जगदीश टाइटलर और सज्जन सिंह जैसे कॉन्ग्रेस नेताओं का नाम आया जो राजीव गाँधी के करीबी रहे।
इंदिरा गाँधी की हत्या ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ का बदला लेने के लिए की गई थी। कॉन्ग्रेस इकोसिस्टम द्वारा ही पैदा किया गया आतंकी जरनैल सिंह भिंडराँवाले अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में छिप कर बैठा हुआ था, जिसे मारने के लिए भारतीय सेना को अंदर घुसना पड़ा। इंदिरा गाँधी के इस आदेश के कारण सिख उनके खिलाफ हो गए थे। सतवंत सिंह और बेअंत सिंह नामक उनके बॉडीगार्ड्स ने ही उन पर ताबड़तोड़ गोलियाँ बरसा दीं। इसके बाद सिख नरसंहार हुआ तो राजीव गाँधी ने कहा कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है।
पंजाब में उग्रवाद तब भी अपने चरम पर रहा। वहाँ जून 1987 में राष्ट्रपति शासन की घोषणा करनी पड़ी जो फरवरी 1992 तक रहा। 1990 के दशक में सिख आतंकवादियों ने पुलिसकर्मियों और नेताओं को निशाना बनाना शुरू कर दिया। 1992 में चुनाव तो हुए लेकिन भय का ऐसा वातावरण था कि मतदान प्रतिशत सिर्फ 24% रहा। KPS गिल पुलिस महानिदेशक थे और उन्हें राज्य में अपने हिसाब से काम करने की छूट मिली। कई आतंकी इसके बाद कनाडा और UK जैसे देशों में भाग खड़े हुए।
इसके बाद इंग्लैंड में वधावा सिंह के नेतृत्व में ‘बब्बर खालसा इंटरनेशनल’ ने उनकी हत्या की साजिश रची। BKI ने युवाओं के समूह को सीएम की हत्या के लिए उकसाया। पंजाब सेक्रेटेरिएट के बाहर हुए इस बम धमाके में जगतार सिंह हवारा और बलवंत सिंह राजोआना को सज़ा-ए-मौत सुनाई गई। गुरमीत सिंह, लखविंदर सिंह और शमशेर सिंह को उम्रकैद मिली, वहीं नवजोत सिंह और नसीब सिंह को रिहा कर दिया गया। क्या आपको पता है कि बेअंत सिंह के हत्यारों को आज भी सिख कट्टरवादियों द्वारा नायक बताया जाता है?
सिखों ने चंडीगढ़ में ‘कौमी इंसाफ मोर्चा’ के बैनर तले 1 वर्ष से भी अधिक समय तक इनकी रिहाई के लिए विरोध प्रदर्शन किया। राजोआना भी पुलिस कॉन्स्टेबल था और उसे बैकअप के रूप में रखा गया था। अगर दिलावर सिंह बब्बर विफल होता तो वो खुद को उड़ा लेता। राजीव गाँधी के हत्यारों की रिहाई के बाद ‘शिरोमणि अकाली दल’ (SAD) ने उसकी रिहाई के लिए भी अभियान चलाया। वो लगभग 27 वर्षों से जेल में है, 2007 में CBI कोर्ट ने उसे मौत की सज़ा सुनाई थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया।
हत्यारों का महिमामंडन: SGPC और SAD ने रिहाई के लिए चलाया अभियान
इसके बाद इस मामले में पड़ता है ‘शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी’ (SGPC), अमृतसर स्थित दरबार साहिब से लेकर पंजाब के सभी गुरुद्वारों के मामले में अंतिम निर्णय इसका ही होता है। तब पंजाब के मुख्यमंत्री रहे प्रकाश सिंह बादल ने मार्च 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से मुलाकात की थी, साथ में उनके बेटे और तत्कालीन डिप्टी CM सुखबीर सिंह बादल भी थे। 31 मार्च, 2012 में बलवंत सिंह राजोआना को फाँसी दी जानी थी, लेकिन गृह मंत्रालय ने उसकी सज़ा रोक दी।
उस समय UPA-II की सरकार थी, मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे और P चिदंबरम गृह मंत्री हुआ करते थे। दिसंबर 2019 में वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह ने साफ़ किया कि बलवंत सिंह राजोआना की मौत की सज़ा कम नहीं की गई है। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर स्थित सेन्ट्रल सिख म्यूजियम में SGPC द्वारा बेअंत सिंह के हत्यारे दिलावर सिंह बब्बर की तस्वीर भी स्थापित की गई। जून 2022 में SGPC के अध्यक्ष अधिवक्ता हरजिंदर सिंह ने इस तस्वीर को इंस्टॉल करते हुए उसे ‘शहीद’ बताया था।
Today @SGPCAmritsar installed Portrait of Dilawar Singh at Central Sikh museum, inside premises of Harmandir Sahib. Punjab police cop Dilawar Singh had turned into suicide bomber to kill former Punjab chief minister Beant Singh.@IndianExpress @iepunjab pic.twitter.com/CfSfQt6sr5
— Kamaldeep Singh ਬਰਾੜ (@kamalsinghbrar) June 14, 2022
उन्होंने कहा था कि दिलावर सिंह बब्बर ने खुद को ‘बलिदान’ कर के सिखों के खिलाफ हो रहे अत्याचार और मानवाधिकार के घोर उल्लंघनों पर लगाम लगाई। SGPC ने ये भी कहा था कि गुरु के आशीर्वाद के बिना ‘बलिदान’ संभव नहीं है। याद दिलाते चलें कि बेअंत सिंह हत्याकांड के 3 आरोपित जून 2004 में चंडीगढ़ स्थित जेल से भाग निकले थे, बाकी भागते हुए पकड़े गए थे। एक आरोपित इंटरपोल की मदद से जनवरी 2014 में थाईलैंड से भी पकड़ा गया था।
आज जब अमृतपाल सिंह जैसे खालिस्तानी समर्थक सांसद बन रहे हैं, बेअंत सिंह जैसे नेताओं का अभाव है जो कट्टरपंथियों के सामने झुके बिना इससे उपजे आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई कर सकें। बेअंत सिंह की गलती इतनी थी कि वो एक धर्मनिष्ठ नामधारी सिख थे, देश को खंडित करने की सोच रखने वाले कट्टरपंथी नहीं। आज अमृतपाल सिंह जैसे नेता देश के टुकड़े करने की माँग करते हैं और जेल से ही लोकसभा का चुनाव लड़ कर सांसद बन जाते हैं।