पाकिस्तानी महिला अधिकार कार्यकर्ता गुलालाई इस्माइल के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय संस्थानों को ख़राब करने से संबंधित मामले में बुधवार (2 अक्टूबर, 2019) को ग़ैर-ज़मानती वारंट जारी किया गया है। आदेश के अनुसार, यदि वो 21 अक्टूबर तक कोर्ट के समक्ष पेश नहीं होती हैं तो उन्हें ‘घोषित अपराधी’ घोषित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।
Things Pak courts do to appease ISI: Activist Gulalai Ismail on non-bailable warrant issued against her
— ANI Digital (@ani_digital) October 2, 2019
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कोर्ट के इस आदेश पर पाकिस्तान के एक पत्रकार ने ट्वीट किया कि कोर्ट ने कार्यकर्ता गुलालाई इस्माइल के ख़िलाफ़ ग़ैर-ज़मानती वारंट जारी किया है। यह कोर्ट ने नहीं किया है। पाक सेना चाहती है और हम सब जानते हैं कि न्याय व्यवस्था कितनी स्वतंत्र है। इस ट्वीट के जवाब में इस्माइल ने लिखा, “ISI को ख़ुश करने के लिए पाकिस्तान की अदालतें यही सब करती हैं।”
दरअसल, गुलालाई इस्माइल को पाकिस्तानी अधिकारियों ने इसलिए निशाने पर लिया है क्योंकि उन्होंने पाक सेना द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों को उजागर किया था। इसलिए पाकिस्तान ने उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया था, इसके बाद वो अमेरिका पहुँच गई थीं। फ़िलहाल, वो इस समय अपनी बहन के साथ ब्रूकलिन में रह रही हैं।
बता दें कि गुलालाई, पाकिस्तान के पश्तून समुदाय के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाती रही हैं। उन्होंने ‘अवेयर्स गर्ल्स’ नाम का एनजीओ बनाया है। वहीं, पाकिस्तान सरकार का कहना है कि उनका संबंध पश्तून तहफ्फुज आंदोलन से है, जिसके ज़रिए वो देश की संस्थाओं के ख़िलाफ़ बातें करती हैं। पाकिस्तान के इस दावे का गुलालाई पूरी तरह से खंडन करती हैं और कहती हैं कि वो सिर्फ़ लोगों के मानवाधिकारों का मुद्दा उठाती हैं।
ग़ौरतलब है कि मीडिया से बातचीत करते हुए गुलालाई इस्माइल ने बताया था कि जिहादी आतंकवाद से निबटने, उसे मिटाने के नाम पर पाकिस्तान (यानी पाकिस्तानी पंजाबी मुस्लिम) अल्पसंख्यक पश्तूनों की सामूहिक हत्याओं को अंजाम दे रहे हैं। गुलालाई इस्माइल का कहना है कि आतंकवाद मिटाने के नाम पर पाकिस्तानी सेना बेगुनाह पश्तूनियों का क़त्ल कर रही है। पाकिस्तानी सेना के टॉर्चर सेलों और नज़रबंदी कैम्पों में हज़ारों लोग बंदी हैं। उन्होंने पाकिस्तानी सेना द्वारा मानवाधिकारों (“इंसानी हुकूक”) का हनन तुरंत बंद करने और बंदियों को रिहा करने की माँग की। साथ आरोप लगाया कि पाकिस्तानी सेना और अन्य उत्पीड़न करने वालों के खिलाफ उठने वाली आवाज़ों को ही दहशतगर्दी का ख़िताब दे दिया जाता है। पाकिस्तानी सेना की खैबर पख्तूनख्वा में तानाशाही चलती है।