अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियों द्वारा तैयार की गई ‘US Worldwide Threat Assessment Report‘ में भारत को लेकर कई बातें कही गई हैं, जिन पर ग़ौर करना जरूरी है। इस रिपोर्ट में दुनिया भर में आतंकवाद के प्रभाव से लेकर परमाणु बम तक की बात की गई है। आइए एक-एक कर जानते हैं कि इस विस्तृत रिपोर्ट में कौन-कौन सी ऐसी बातें हैं, जो आपको जाननी चाहिए। इस रिपोर्ट को मंगलवार (जनवरी 29, 2019) को USA कॉन्ग्रेस में डायरेक्टर ऑफ़ नेशनल इंटेलिजेंस डेनियल कोट द्वारा टेबल किया गया।
क्षेत्रीय ख़तरे
अमेरिका की रिपोर्ट में ‘Regional Threats’ के लिए एक पृथक वर्ग बनाया गया है, जिसमें दक्षिण एशिया से लेकर इराक़ तक- पूरी दुनिया में जो भी क्षेत्रीय ख़तरे पनप रहे हैं, उनकी तरफ ध्यान आकर्षित कराया गया है। इस वर्ग में दक्षिण एशिया वाले खंड में भारत की भी चर्चा की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान समर्थित आतंकी गुट पाक स्थित सुरक्षित आतंकी ठिकानों (Safe Heaven) का इस्तेमाल करना जारी रखेंगे ताकि भारत में हमलों को अंजाम दिया जा सके और इसके लिए योजना बनाई जा सके। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये आतंकी अमेरिकी हितों को भी निशाना बनाएंगे।
साथ ही, अमेरिका ने पकिस्तान पर भी कड़ी टिप्पणी की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में सहयोग के मामले में इस्लामाबाद का दृष्टिकोण काफ़ी संकीर्ण है। इस रिपोर्ट में आतंकी गुटों को लेकर पाकिस्तान के दोहरे रवैये पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान आतंकी संगठनों का प्रयोग ‘नीतिगत हथियार (Policy Tools)’ की तरह कर रहा है। पाकिस्तान सिर्फ़ उन्हीं आतंकवादी संगठनों के विरुद्ध कार्रवाई करता है, जिस से उसे सीधा ख़तरा (Direct Threat) है।
रिपोर्ट में पाकिस्तान के दोहरे रवैये के प्रति चिंता जताते हुए कहा गया है कि पाकिस्तान का यह व्यवहार तालिबान के ख़िलाफ़ चलाए जा रहे अमेरिकी अभियान को विफल कर देगा।
लोकसभा चुनाव और सांप्रदायिक हिंसा
बता दें कि इस साल भारत में लोकसभा चुनाव होने हैं और विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में होने वाले इस चुनाव पर सभी अंतरराष्ट्रीय ताक़तों की नज़र है। अमेरिकी रिपोर्ट में आगामी चुनाव को लेकर सांप्रदायिक हिंसा की संभावना बढ़ने का अंदेशा जताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है:
“अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी आगामी लोकसभा चुनावों में हिन्दू राष्ट्रवादी विषयों पर ज़ोर देती है तो सांप्रदायिक हिंसा की संभावना बढ़ जाएगी। मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान भाजपा सरकार की नीतियों ने कई भाजपा शासित राज्यों में सांप्रदायिक तनाव को और गहरा करने का कार्य किया है।”
वैसे रिपोर्ट में इस निष्कर्ष के पीछे का कारण नहीं बताया गया है। नरेंद्र मोदी के पिछले साढ़े चार साल पहले सत्ता संभालने के बाद से अब तक देश में कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ है। ऐसे में अमेरिकी रिपोर्ट में ऐसी बातें चौंकाने वाली है। यही नहीं, इस रिपोर्ट में कई अन्य हिंदूवादी नेताओं के बयानों से भी ख़तरों के उपजने की बात कही गई है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कुछ राज्य-स्तरीय हिन्दू राष्ट्रवादी नेता अपने समर्थकों को उत्तेजित करने के लिए हिन्दू राष्ट्रवादी अभियान को लोकल स्तर पर हिंसा भड़काने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
रिपोर्ट में फिर से इस निष्कर्ष के आधार का जिक्र नहीं किया गया है। वो कौन से हिन्दू राष्ट्रवादी नेता हैं, जो हिंसा भड़का कर समर्थकों को उत्तेजित करते हैं- इस बारे में कुछ और नहीं बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंसा की ऐसी वारदातें मुसलामानों को अलग-थलग कर देगी और भारत में इस्लामिक आतंकवादी समूहों को अपने प्रभाव का विस्तार करने में सहयोग करेंगी।
भारत-पकिस्तान तनाव और आतंकवाद
रिपोर्ट में भारत-पकिस्तान के बीच तनाव और पाकिस्तान समर्थित आतंकियों द्वारा भारत में हमले करने की भी बात की गई है। रिपोर्ट के अनुसार निम्नलिखित बातों का भारत-पाक तनाव पर ख़ासा असर पड़ेगा:
- सीमा पार से आतंकवाद
- LOC (नियंत्रण रेखा) पर गोलीबारी
- भारत में विभाजनकारी राष्ट्रीय चुनाव
- भारत-अमेरिकी रिश्ते को देखने का इस्लामाबाद का नज़रिया
रिपोर्ट के अनुसार, कम से कम मई 2019 (भारतीय चुनावों की समयसीमा या फिर उसके बाद) तक तो भारत और पाकिस्तान के बीच ऐसी तनावपूर्ण स्थिति बनी रहेगी। अमेरिका ने कहा है कि दोनों देशों के बीच विश्वास को मज़बूत करने के सीमित उपायों के बावज़ूद उन्होंने कश्मीर सीमा पर संघर्ष विराम जारी रखा है। लगातार हो रहे आतंकी हमलों और सीमा पार से गोलीबारी ने दोनों देशों की सोच को और सख्त कर दिया है तथा मैत्री के लिए जरूरी इच्छाशक्ति को भी कम कर दिया है।
अमेरिकी विशेषज्ञों और ख़ुफ़िया एजेंसियों द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में भारत-पाक संबंध के निकट भविष्य में अच्छे होने की संभावना से इनकार किया गया है। इसके लिए भारत में आगामी लोकसभा चुनाव में होने वाली पैंतरेबाज़ी को जिम्मेदार ठहराया गया है।
भारत-चीन संबंधों में तनाव
अमेरिका ने अंदेशा जताया है कि इस वर्ष भी भारत और चीन के रिश्ते तनावपूर्ण बने रहेंगे। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सेनाओं की गतिविधियों के बारे में गलत धारणाएँ बनेंगी और सीमा पार चल रहे निर्माण कार्यों को लेकर भी स्थिति तनावपूर्ण बनी रहेगी। रिपोर्ट में इस बात को लेकर चिंता जताई गई है कि भारत और चीन के बीच का तनाव सशस्त्र संघर्ष का रूप भी ले सकता है।
2017 के डोकलाम विवाद की तरफ इशारा करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि उस घटना के बाद से दोनों तरफ से शांति के लिए प्रयास किए गए हैं लेकिन अनजाने में तनाव के गहरा हो जाने का जोखिम बना हुआ है। बकौल अमेरिकी रिपोर्ट, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने तनाव को कम करने और संबंधों को सामान्य करने के लिए अप्रैल 2018 में एक अनौपचारिक शिखर सम्मेलन आयोजित तो किया, लेकिन उन्होंने सीमा-संबंधी मुद्दों को संबोधित नहीं किया।
भारत और परमाणु हथियार
अमेरिका ने भारत और पकिस्तान- दोनों ही देशों के परमाणु हथियार कार्यक्रमों में हो रही निरंतर वृद्धि और विकास पर चिंता जताई है। कहा गया है कि इस से दक्षिण एशिया में परमाणु सुरक्षा से जुड़े ख़तरे बढ़ जाएंगे। नए प्रकार के हथियार क्षेत्र में सुरक्षा से जुड़े नए प्रकार के जोखिम पैदा करेंगे। अमेरिका ने पकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के बारे में बात करते हुए रिपोर्ट में कहा:
पाकिस्तान ने नए प्रकार के परमाणु हथियारों का विकास जारी रखा है, जिसमें छोटी दूरी के सामरिक हथियार, समुद्र आधारित क्रूज मिसाइल, हवा से लॉन्च क्रूज मिसाइल और लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल शामिल हैं।
इसके अलावा अमेरिका ने INS अरिहंत के बारे में बात करते हुए कहा कि भारत ने भी 2018 में मिसाइलों से लैस पहली परमाणु संचलित पनडुब्बी की तैनाती की है। पाकिस्तान ने नए प्रकार के परमाणु हथियारों का विकास जारी रखा है, जिसमें छोटी दूरी के सामरिक हथियार, समुद्र आधारित क्रूज मिसाइल, हवा से लॉन्च क्रूज मिसाइल और लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल शामिल हैं। बता दें कि अरिहंत भारत का पहला परमाणु बैलेस्टिक मिसाइल पनडुब्बी है और 2018 में उसने अपना पहला निवारक गश्त (Deterrent Patrol) पूरा कर इतिहास रच दिया था।
अर्थव्यवस्था
अमेरिकी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वर्ष 2018 में निवेशकों ने ब्राजील, भारत, इंडोनेशिया और तुर्की से पूंजी खींच ली है, जिसके कारण उन देशों में पहले से ही ख़राब हो रहा मुद्रा विमूल्यन (Currency Depreciation) और गहरा हो गया है। इस कारण ये देश 2019 में यूएस डॉलर वाले ऋण पर काम करने में कठिनाई महसूस करेंगे।
इसके अलावा रिपोर्ट में बताया गया है कि 2018 में भारत और चीन में तरल प्राकृतिक गैस (LNG) की काफ़ी माँग रही। बता दें कि भारतीय रेलवे भी अब एलएनजी के इस्तेमाल करने की योजना तैयार कर रहा है।