“हॉं, हम साम्प्रदायिक हैं, क्योंकि हम वन्दे मातरम् गाने की वकालत करते हैं। हम साम्प्रदायिक हैं, क्योंकि राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान के लिए लड़ते हैं। हम साम्प्रदायिक हैं, क्योंकि धारा 370 को समाप्त करने की मॉंग करते हैं। हम साम्प्रदायिक हैं, क्योंकि हिन्दुस्तान में गोरक्षा के वंश और वर्धन की बात करते हैं। हम साम्प्रदायिक हैं, क्योंकि हिन्दुस्तान में समान नागरिक संहिता बनाने की मॉंग करते हैं। हम साम्प्रदायिक हैं, क्योंकि काश्मीरी शरणार्थियों के दर्द को जुबान देने का काम करते हैं।”
11 जून 1996 को सुषमा स्वराज ने संयुक्त मोर्चा सरकार के विश्वास मत का विरोध करते हुए लोकसभा में यह बात कही थी। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता पर राष्ट्रीय बहस की जरूरत पर जोर देते हुए कहा था, “इस देश के संविधान निर्माताओं ने धर्म निरपेक्षता की क्या कल्पना की थी और इस देश के शासकों ने उसे किस स्वरुप में ढाल दिया इस पर राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए।”
और अनंत यात्रा पर निकलने से महज तीन घंटे पहले उन्होंने आखिरी ट्वीट भी धारा 370 हटाने के लेकर ही किया था। ट्वीट में उन्होंने कहा था, “प्रधानमंत्री जी-आपका हार्दिक अभिनंदन। मैं अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी।”
प्रधान मंत्री जी – आपका हार्दिक अभिनन्दन. मैं अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी. @narendramodi ji – Thank you Prime Minister. Thank you very much. I was waiting to see this day in my lifetime.
— Sushma Swaraj (@SushmaSwaraj) August 6, 2019
यह बताता है कि अपने विचारों के प्रति सुषमा स्वराज कितनी प्रतिबद्ध थीं। खराब स्वास्थ्य के कारण वो भले कुछ दिनों से सक्रिय राजनीति से दूर थीं, लेकिन अपने विचारों को लेकर अंतिम क्षण तक सक्रिय बनी रहीं।
प्रखर वक्ता सुषमा स्वराज ने चार दशक से ज्यादा लंबे अपने राजनीतिक जीवन में हमेशा कठिन मोर्चे ही चुने। 4 राज्यों से 11 चुनाव लड़ने वाली इस नेत्री ने 1999 में कर्नाटक की बेल्लारी में जाकर सोनिया गॉंधी को चुनौती दी थी। उस समय बेल्लारी कॉन्ग्रेस का सुरक्षित गढ़ माना जाता था और भाजपा को विरोधी ‘काउ बेल्ट’ पार्टी कहते थे।
उस चुनाव में सुषमा स्वराज भले हार गईं, लेकिन अपने सहज संवाद के कारण वहॉं के मतदाताओं के दिल में न केवल खुद उतरीं, बल्कि भाजपा को भी बसा दिया। अब बेल्लारी का कॉन्ग्रेसी गढ़ होना अतीत की बात है। 1999 के बाद से हुए संसदीय चुनावों में बेल्लारी से भाजपा 2018 के लोकसभा उपचुनाव को छोड़ कभी नहीं हारी। यह था सुषमा स्वराज का असर। उन्होंने अपनी जुझारू छवि से कर्नाटक में ऐसी नींव रखी कि दक्षिण का दरवाजा भी भाजपा के लिए खुल गया।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वे विदेश मंत्री रहीं। ट्विटर डिप्लोमेसी का उन्होंने दरवाजा खोला। ट्विटर पर सक्रिय रहते हुए लोगों की मदद करना इतना चर्चित हुआ कि वाशिंगटन पोस्ट ने उन्हें ‘सुपरमॉम ऑफ द स्टेट’ कहा। उनके देहांत के साथ ही भारतीय राजनीति का एक शालीन अध्याय समाप्त हो गया है।