Thursday, November 14, 2024
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फैबइंडिया ने ‘जश्न-ए-रिवाज’ वाला कलेक्शन वापस लिया, हिंदू त्योहार के ‘इस्लामीकरण’ पर नेटिजन्स ने लगाई थी लताड़

हिंदुओं के त्योहार को इस तरह से उर्दू में पेश फैबइंडिया ने अपने ट्वीट में भी किया था जिसे अब वह डिलीट कर चुके हैं। नेटीजन्स के भारी विरोध के बाद इस ट्वीट को हटाया गया। वहीं अब खबर आ रही है कि फैबइंडिया ने लोगों के भारी विरोध को देखते हुए यह विज्ञापन हटा लिया है।

पारंपरिक परिधानों का कारोबार करने वाले फैबइंडिया (Fabindia) ने दिवाली के मौके पर जारी किए गए कलेक्शन को ‘जश्न-ए-रिवाज’ का नाम दिया है। हिंदुओं के त्योहार को इस तरह से उर्दू में पेश फैबइंडिया ने अपने ट्वीट में भी किया था जिसे अब वह डिलीट कर चुके हैं। नेटीजन्स के भारी विरोध के बाद इस ट्वीट को हटाया गया। वहीं अब खबर आ रही है कि फैबइंडिया ने लोगों के भारी विरोध को देखते हुए यह विज्ञापन हटा लिया है।

फैबइंडिया ने लिखा था, “जैसा कि हम प्यार और प्रकाश के त्योहार का स्वागत कर रहे हैं। जश्न-ए-रिवाज फैबइंडिया का कलेक्शन है जो बेहद खूबसूरती से अपना सम्मान भारतीय परंपरा को देता है।”

इस ट्वीट में जश्न-ए-रिवाज शब्द को देख यूजर्स भड़क गए। भाजपा युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या ने मामले को उठाते हुए लिखा दीपावली कोई जश्न-ए-रिवाज नहीं है। हिंदू त्योहार का इब्राहिमीकरण, ऐसी मॉडलों का प्रदर्शन जिन्होंने हिंदू परिधान न पहने हों, सबका बहिष्कार होना चाहिए और फैबइंडिया न्यूज जैसे ब्रांड को ऐसी हरकत के लिए आर्थिक हर्जाना चुकाना चाहिए।

पत्रकार शेफाली वैद्य लिखती हैं, “वाह फैबइंडिया न्यूज बहुत बढ़िया काम कर रहे हो दिवाली में से हिंदुत्व निकालने के लिए। इसे प्रेम और प्रकाश का त्योहार कहते हैं, टाइटल देते हो- जश्न ए रिवाज, मॉडल्स बिंदी नहीं पहनतीं लेकिन चाहते हो कि इतने मंहगे प्रोडक्ट खरीदें वो भी हिंदू परंपरा के सम्मान के नाम पर।”

नागेश अडप्पा कहते हैं, “फैब इंडिया मैं तुम्हारा ईमानदार ग्राहक था, लेकिन आज तुमने एक ग्राहक को खो दिया। ये गिनती यही नहीं रुकेगी, दिन पर दिन बढ़ेगी। आखिर जश्न-ए-रिवाज हिंदू त्योहार में आया कैसे। इसे या तो बदलो वरना मार्केट शेयर गिराने के लिए तैयार रहो।”

फैब इंडिया की इस हरकत पर तंज कसते हुए विवेक कहते हैं कि फैब इंडिया ने मिलाद उन नबी को जश्न-ए-रिवाज का नाम दिया है…उन्हें अच्छी बिक्री के लिए शुभकामनाएँ लेकिन मुझे लगता है कि रंग बहुत भड़कीले हैं….हरा रंग शायद ठीक रहेगा।

जेएनयू प्रोफेसर आनंद रंगनाथन लिखते हैं, “बड़ी अच्छी बात है। लेकिन क्या आप इस बात को बता सकते हैं कि कौन से त्योहार के बारे में बात हो रही है और कौन से धर्म से ये संबंध रखता है, यह देखते हुए कि सभी त्योहार प्रेम और प्रकाश का उत्सव हैं, न कि घृणा और अंधकार के? अगर आप बहुत भयभीत हैं तो आप मुझे त्योहार का नाम सीधे मैसेज कर सकते हैं। धन्यवाद। ” इसके बाद एक यूजर ने इस तरह की हरकत को हिंदू त्योहारों का इस्लामीकरण कहा। कई यूजर्स ने प्रण लिया कि वो दोबारा इस ब्रांड की चीजें नहीं खरीदेंगे।

गौरतलब है कि सोशल मीडिया पर फैबइंडिया का विरोध बेबुनियाद नहीं है। उन्होंने दिवाली जैसे पावन पर्व के मौके पर एक कलेक्शन निकाला जिसका नाम उर्दू में है। ऐसे में यूजर्स का पूछना बस यही है कि इसकी जरूरत क्या थी। मालूम हो कि फैबइंडिया की शुरुआत 1960 में जॉन बिस्सेल ने की थी। वह फोर्ड फाउंडेशन ग्रांट पर कॉटेज इंडस्ट्रीज एम्पोरियम के सलाहकार के रूप में भारत आए थे।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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