राजधानी दिल्ली में वसंत विहार स्थित टैगोर इंटरनेशनल स्कूल काफी सुर्ख़ियों में छात्रों का ब्रेनवॉश करने के लिए ‘जेंडर आइडेंटिटी पॉलिटिक्स’ पर एक सत्र का आयोजन कराया गया था, जिसमें छात्रों को एक्टिविटी के नाम पर ऐसी कलरिंग बुक दी गई हैं, जिनमें सेक्स टॉय पहने, हस्तमैथुन करती नग्न युवतियाँ दिखाई गई हैं।
जैसे ही इस सत्र की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर सामने आईं, वैसे ही लोग हैरान रह गए। यह सत्र Nazariya- Queer Feminist Resource Group (Nazariya QFRG) नाम के समूह द्वारा आयोजित कराया गया था।
Nazariya QFRG की एक और पोस्ट से सोशल मीडिया पर खूब बहस छिड़ी हुई है। इस विवादित पोस्ट में यह समूह बच्चों के लिए एक प्लैनर/कलरिंग बुक का विज्ञापन कर रहा था, जिसमें एक बिना कपड़ों की औरत ‘डिल्डो’ (महिलाओं के लिए सेक्स टॉय) पहन कर खड़ी है। इसके अलावा कलरिंग के निचले हिस्से में बाईं तरफ मास्टरबेट (हस्तक्रिया) करती हुई युवती नज़र आ रही है। इस तस्वीर के साथ लिखा है – “छात्रों के लिए 100 रूपए का डिस्काउंट।”
जिस तरह का डरावनी जागरूकता Nazariya QFRG फैला रहा था, हमने उसकी पृष्ठभूमि तलाशनी शुरू की। फिर हमें पता चला कि यह कोई सतही लोग नहीं हैं, बल्कि एलजीबीटी (LGBT) से जुड़े मामलों पर काम करने वाले मुख्यधारा के लोग हैं। Nazariya QFRG की शुरुआत तीन लोगों ने मिल कर की थी – ऋतुपर्णा बोरा, ऋतंभरा मेहता और पूर्णिमा गुप्ता।
इस समूह की वेबसाइट के मुताबिक, ऋतुपर्णा आईसीटी की मदद से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मुस्लिम लड़कियों के लिए लीडरशिप प्रोग्राम भी चला रही हैं। इसके अलावा ऋतुपर्णा ने एनसीआरटी द्वारा प्रकाशित ‘किशोरावस्था प्रशिक्षण कार्यक्रम’ संबंधी विषयवस्तु में भी सहयोग किया है।
इतना ही नहीं, वह दिल्ली की ‘क्वीर (queer) परेड’ में भी शामिल होती हैं। वहीं, ऋतंभरा Nazariya QFRG की उपनिदेशक हैं। वह समूह के संपर्क, समूह के लिए फंड्स, नई योजनाएँ और उन्हें लागू कराने से जुड़े काम करती है। इसके अलावा पूर्णिमा, लिंग, जाति और सेक्सुअलिटी संबंधी मुद्दों पर प्रशिक्षण देती हैं।
रितुपर्णा और ऋतंभरा ने हाल ही में दिए एक साक्षात्कार में कई बातें कही थीं। उन्होंने कहा था वो तमाम कॉलेज, विश्वविद्यालय और समूहों में लिंग, सेक्सुअलिटी और एलजीबीटी समेत तमाम विषयों पर वर्कशॉप कराते हैं।
यानी, इन लोगों का मुस्लिम एलजीबीटी समुदाय से बराबर संवाद है। इसके बाद Nazariya QFRG के सदस्यों ने कहा, “अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन और आर्थिक सहयोग करने वाले लोग छोटे स्तर पर काम करने वाले सामुदायिक समूहों के लिए आसानी से फंड इकट्ठा कर सकते हैं।”
बड़े पैमाने पर आर्थिक सहयोग करने वालों के प्रोटोकोल्स की वजह से कम संसाधनों वाले छोटे सामुदायिक समूहों के लिए चीज़ें मुश्किल हो जाती हैं। वहीँ दूसरी तरफ बड़े संपर्क वालों से आर्थिक मुनाफा भी ज़्यादा होता है। इसके बाद उन्होंने कहा- “कुछ फंडिंग करने वाले ऐसे भी होते हैं, जिनके लिए लोगों के वेतन से ज़्यादा ज़रूरी कार्यक्रम होते हैं। जिसके चलते कम कर्मचारियों के साथ काम करने में परेशानी भी होती है। छोटे सामुदायिक समूहों को कई मामलों में मदद करने पर फंड को ऐसी जगहों पर ले जाना आसान हो जाता है, जहाँ इसका ज़्यादा फ़ायदा हो सके। ”
Nazariya QFRG की एलजीबीटी समुदाय में स्वीकार्यता के आधार पर एक बात और साफ़ हो जाती है, ट्वीटर पर इनके 1 लाख, 80 हज़ार से ज़्यादा फॉलोअर्स हैं। यानी, सोशल मीडिया पर इनके पास अच्छा भला मंच है।
इसके अलावा Nazariya QFRG के सदस्य अक्सर मशहूर समाचार समूहों की चर्चाओं में भी नज़र आते हैं।
साथ ही ‘नज़रिया’ को नीति आयोग द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों में भी बुलाया जाता है।
इन सारी बातों के आधार पर इतना कहा जा सकता है कि ‘एलजीबीटी’ के क्षेत्र में Nazariya QFRG विश्वसनीयता और मशहूर नाम है। लेकिन जिस तरह इन लोगों ने बच्चों का ब्रेनवाश करने का प्रयास किया उससे समाज में इनके खिलाफ काफी रोष व्याप्त है।
आखिर जागरूकता के नाम पर बच्चों के सामने इस तरह की चीज़ रखना किसी भी सूरत में जागरूकता नहीं कहा जा सकता है। छात्रों के सामने ऐसी तस्वीर रखना, जिसमें महिला के पास सेक्स टॉय है, इससे बच्चों का किसी भी तरह का विकास होने से रहा!
इस बात पर गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है कि अगर बच्चों के सामने इतनी छोटी उम्र में ऐसी चीज़ें रखी जाएँगी, तो उनके दिमाग पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? Nazariya QFRG ने उसी कलरिंग बुक में ऐसी तस्वीर भी लगाई, जिसमें एक आदमी की छाती का आकार बढ़ा हुआ था और वह एक बच्चे को दूध पिला रहा था। इस तस्वीर की भी सोशल मीडिया पर खूब आलोचना हो रही है।
हमने इसके पहले भी कई अलग-अलग लेखों में बताया है कि कैसे जेंडर आइडेंटिटी पॉलिटिक्स का बच्चों पर बुरा असर पड़ता है। प्रदेश और राज्य दोनों सरकारों को इस मामले पर सक्रिय होकर ठोस कदम उठाने चाहिए। जिससे बच्चों के बीच इस तरह की नकारात्मक जागरूकता का प्रचार न हो।
हैरानी की बात यह है कि इस तरह की चीज़ों पर आम लोगों का ध्यान नहीं जाता है, या नजरअंदाज कर दिया जाता है, जबकि ऐसी संस्थाओं के ऐसे कार्यक्रमों से बच्चों के ब्रेनवाश की प्रक्रिया जारी है। स्कूलों पर इतने छोटे स्तर पर इस तरह के समूहों का प्रभाव की वजह से समाज की नींव बहुत कमज़ोर हो रही है।